उपसद् नामक कर्म से सम्बद्ध तानूनप्त्र घृत का स्पर्श नामक कर्म औपसद कर्म है। यह औपसद कर्म उपसद् दीक्षा नामक यज्ञांग से सम्बद्ध है। आतिथ्या इष्टि में ध्रौव पात्र से सुक् या चमस में रखा हुआ घृत तानूनप्त्र है। उस घृत का स्पर्श यजमान के साथ सोलह ऋत्विक् करते हैं। उन ऋत्विजों में यजमान जिसे चाहेगा, वही पहले उस घृत का स्पर्श करेगा। यह यजमान की इच्छा पर निर्भर है। इसी प्रकार अक्षर ब्रह्म के उपासकों में भगवान् जिसे चाहेगा, उसे उस अक्षर ब्रह्म में ही लय कर देगा और जिसे चाहेगा, उसे परप्राप्ति का साधन भूत भक्ति का लाभ करा देगा। यह भगवान् की इच्छा के अधीन है (अ.भा. 3/3/33)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)
औपपादिक देह
माता-पिता से उत्पन्न न होकर जो शरीर स्वतः प्रकट होता है, वह औपपादिक देह कहलाता है (व्यासभाष्य 3/26)। यह दिव्य शरीर है। पालिबौद्धशास्त्र में 'औपपातिक' शब्द इन महासत्त्वशाली जीवों के लिए प्रयुक्त होता है। कुछ विद्धान समझते हैं कि पालि शब्द का मूल संस्कृत शब्द उपपादुक या औपपादुक है। 'औपपादुक' शब्द चरकसंहिता (शारीर 3/33; 3/19) में मिलता है।