बुद्धि के चार सात्त्विक रूपों में से एक (सांख्यकारिका, 23) ऐश्वर्य (ईश्वरता) का स्वरूप है - इच्छा का बाधाहीन होना। अतः सभी सिद्धियों का अन्तर्भाव ऐश्वर्य में हो जाता है।
यह ऐश्वर्य आवश्यक भी है, अनावश्यक भी। इन ऐश्वर्यों (=सिद्धियों) से यह ज्ञात होता है कि योग का अभ्यास यथोचित्त रूप से किया जा रहा है क्योंकि योगांग-अभ्यास के फलस्वरूप सिद्धियों का आविर्भाव होना स्वाभाविक है।