अकल है, बुद्धि है, परंतु पैसा न होने से कुछ भी नहीं है।
कई ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनके पास अक्ल और बुद्धि रहती है, परंतु पैसा नहीं होने के कारण कुछ नहीं कर पाते।
पैसे के अभाव में कुछ न कर सकने की असमर्थता दिखाते हुए यह कहावत कही जाती है।
बुध-बुद्धि, कुछ-कुछ
अकिल बड़े के भैंस।
अक्ल बड़ी या भैंस।
अक्ल के सम्मुख शक्तिशाली भी अपनी हार स्वीकार कर लेता है।
यदि कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि से किसी शक्तिशाली व्यक्ति पर विजय प्राप्त कर लेता है, तो शारीरिक शक्ति से बुद्धि की शक्ति को श्रेष्ठ बताने के लिए यह लोकोक्ति कही जाती है।
अकिल -अक्ल
अक्का काहत बक्का निकरे।
अकार कहते-कहते बकार कह पड़ना।
बातचीत का विषयवस्तु ठीक चल रही हो, पर अचानक सम्मुख व्यक्ति के डर के कारण कुछ का कुछ कह डालना।
जब कोई व्यक्ति जिससे बातचीत करता हो, उससे डरने के कारण कुछ का कुछ बोलता है, तब उस के संबंध में यह लोकोक्ति कही जाती है।
अक्का-अकार, बक्का-बकार
अट के बनिया नवसेरा।
गरजमंद व्यक्ति को बनिए से ऊल-जलूल भाव पर सौदा प्राप्त होता है।
मजबूरी का लाभ हर बदमाश व्यक्ति ले लेता है।
यदि किसी व्यक्ति को किसी वस्तु की आवश्यकता हो और दूसरा कोई उसकी आवश्यकता को समझ जाए, तो वह उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के लिए उसे दबाता है। गरजमंद व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा दबाए जाते देखकर यह कहावत कही जाती है।
अटके-अटक जाना
एक जाकीरदार का घोड़ा बीमार हो गया। उसने हर प्रकार का इलाज किया, परंतु घोड़ा अच्छा नहीं हुआ। एक बूढ़े वैद्य ने उसके इलाज के लिए इमली का बीज मँगाया। बहुत खोजने के बाद इमली का बीज एक बनिए के पास मिला। चालाक बनिया समझ गया कि जागीरदार का नौकर किसी भी भाव से सौदा खरीदेगा। बनिए ने जरूरतमंद नौकर को बताया कि इमली का बीज रूपए का नौ सेर मिलेगा। बनिए द्वारा गरजमंद को तेज भाव से सौदा दिए जाने से यह कहावत प्रचलित हो गई।
अड़की जनिक आदमी, अउ मूते बर आगी।
इतना छोटा व्यक्ति और आग मूतता है।
किसी भी क्षेत्र विशेष में अल्प व्यक्ति ही ज्यादा बढ़-चढ़ कर बात करता है।
सामान्य हैसियत का कोई व्यक्ति किसी बड़े आदमी की मुँहजोरी करे, तो उसका ऐसा करना बड़े आदमी को चुभ जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
अपढ़ व्यक्ति किसी लेख के अक्षरों में भेद नहीं कर पाता, जिससे सभी अक्षरों को एक-जैसा समझता है।
किसी कार्य को न समझने वाला व्यक्ति जब उसकी सूक्ष्मता को न जान सके, तब उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
अड़हा-निरक्षर, लेखे-लेख
अड़हा वैद प्रानघातका।
अनाड़ी वैद्य प्राण लेने वाला होता है।
झोलाझाप डॉक्टर का ईलाज प्राणलेवा भी होता है। कोई अनाड़ी वैद्य रोग को न समझकर कुछ-का-कुछ दवाई दे देता है, जिससे रोगी को लाभ होने के बदले हानि हो जाती है।
इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य को जिसे वह नहीं समझता,अपने अज्ञान के कारण बनाने के बदले बिगाड़ डाले, तब यह कहावत कही जाती है।
अड़हा-अनाड़ी
अदरा बरसै पुनरबस तपै, तेखर अन्न कोउ खा न सकै।
आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो, पुनबर्सु नक्षत्र में गर्मी पड़े, तो अनाज इतना होता है कि कोई खा नहीं सकता।
आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा होने से धान की फसल को ठीक समय में पानी मिल जाता है तथा पुनबर्सु नक्षत्र में गर्मी पड़ने से धान के पौथे पानी मिलने के बाद धूप पाने से अधिक पुष्टता से बढ़ते हैं।
अनुकूल वर्षा और धूप मिलने से खूब धान पैदा होता है। धान की उपज के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
सामान्यतः जब परिवार में सभी कमाने वाले हो जाते हैं और सम्मिलित रूप से घर का खर्चा चलते तो रहता है, परंतु खटपट भी होने लगता है। ऐसे समय में अपने-अपने कमाई से खर्चा चलाने की नसीहत बुर्जुग देते हैं।
सम्मिलित परिवार में कमाने वाले कम तथा खाने वाले अधिक होते हैं। काम को बिना बाँटे करने में उस के प्रति कार्यकर्ताओं का आकर्षण कम हो जाता है, इसलिए कार्य का बँटवारा करने तथा उससे मिलने वाला लाभ भी अलग-अलग होने के लिए यह लोकोक्ति कही जाती है, ताकि न तो किसी का लेना पड़े और न किसी को देना पड़े।
अपन-अपना, कमाय-कमाना, खाय-खाना
अपन आँखी माँ नींद आथे।
अपनी आँखों में नींद आती है।
नींद लगती है, तो आँखें भी बंद होने लगती हैं। जिसे नींद आती है, उसी की आँखें बंद होती है। आँख और नींद का संबंध एक ही व्यक्त पर लागू होता है।
अपना कार्य जब दूसरे व्यक्ति नहीं कर पाते, तब स्वयं के करने से होता है। जब कोई व्यक्ति अपना काम दूसरे को सौंप दे और वह उसे न कर पाए, तब अपना कार्य स्वयं करने से होता है, यह बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।