हर प्रकार से निश्चिंत रहना। न किसी व्यक्ति से कुछ लेना है औरन किसी को कुछ जाती है।
जिसको किसी से कुछ लेना देना न हो, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
न-न तो
न कर्रा घर जाँव, न कटारी के मार खाँव।
न तो कर्रा के घर जाना है, न कटारी की मार खाना है।
कर्रा लोग कटारी से बाँस छीलकर टोकरी आदि बनाते हैं। कर्रा के हाथ में प्रायः सदैव कटारी होती है। यदि उससे किसी का झगड़ा हो जाए, तो वह कटारी से मारता है। न गलत काम करना, न नुकसान उठाना। पहले से ही सावधानी बरतना।
किसी चक्कर में न पड़कर अपना काम करने वाला इस कहावत का प्रयोग करता है।
कर्रा - एक जाति, जो बाँस से टोकनी आदि बनाने का कार्य करती है। खांव-खाना
न खाहौं, न खान देहौं।
न खाऊँगा, न खाने दूँगा।
न तो कोई काम स्वयं करना और नही दूसरों को करने देना।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता है, जो स्वयं तो कोई काम नहीं करते हैं, उल्टे दूसरों के काम में अड़ंगा लगाते हैं।
खाहौं-खाऊंगा, खान देहौं-खाने दूंगा
न गाँव माँ घर, न खार माँ खेत।
न गाँव मे घर, न खार मे खेत।
जिसका गाँव में घर न हो तथा बाहर खेत न हो, ऐसा व्यक्ति प्रायः गाँव का मजदूर होता है, जो अपने मालिक के दिए घर में रहकर मजदूरी करता है।
निर्धन व्यक्ति की स्थति बतलाने के लिए कि उसका घर, खेत आदि कुछ भी नहीं है, यह कहावत कही जाती है।
खार-गाँव के बाहर की भूमि
न जीव छूटब, न चटपटी जाय।
न प्राण छूटता है, न कष्ट दूर होता है।
जब किसी बीमारी ग्रस्त व्यक्ति को खूब कष्ट मिल रहा हो, तब वह कष्ट से मुक्ति पाने के लिए मर जाना ही उचित समझता है।
उसी प्रकार, जब कोई किसी मुसीबत से मुक्त होने के लिए प्रयत्न करता है, पर कामयाब नहीं हो पता, तब इस कहावत का वह प्रयोग करता है।
चटपटी जाय-कष्ट दूर होना
न धरे बर पूछी, न खजुवाय बर कान।
न पकड़ने के लिए पूँछ और न खुजलाने के लिए कान।
यदि किसी के पास मवेशी हो, तभी वह उसकी पूँछ पकड़ सकता है और उसे प्यार करने के बहाने उसका कान खुजला सकता है, अन्यथा नहीं, इसी प्रकार जिस व्यक्ति के पास न तो रहने के लिए मकान हो और न काम प्रारंभ करने के लिए पूँजी, तो वह इनके अभाव में कुछ नहीं कर सकता।
ऐसे व्यक्ति को जब कोई आदमी व्यापार आदि करने कीबात कहता है, तब वह अपनी परिस्थिति को बताते हुए इस कहावत का प्रयोग करता है।
पूछी-पूंछ, खजुवाय-खुजलाना, बर-के कारण
न दाई के जन, न दादा के सँगोड़।
न माता-पक्ष का कोई संबंधी और न पिता पक्ष का।
जब किसी से उसकी रिश्ते दारी के संबंध में कुछ पूछा जाता है, तब वह कहावत कहकर अपने एकाकीपन को स्पष्ट करता है।
जो व्यक्ति पारिवारिक दृष्टि से बिलकुल निराश्रित होता है, वह अपने संबंध में इस कहावत का प्रयोग करता है।
सँगोड़-संबंधी, जन-स्वजन, दाई-मां
न मरै न मोटाय।
न मरता है, न मोटा होता है।
न जीता है और न मरता है। न लाभ है और न ही हानि।
जो व्यक्ति लगातार बीमार रहे, किसी भी उपचार से अच्छा न हो, उससे तंग आकर उसकी सेवा करने वाले इस कहावत का प्रयोग करते है।
मोटाय-मोटा होना
न सावन सूखा, न भादो हरियर।
न सावन सूखा, न भादो हरा।
सावन के महीने में भादो की अपेक्षा कम वर्षा होती है, परंतु सावन में यदि सूखा न रहा हो अर्थात् अच्छी वर्षा हुई हो, तो भादो में अधिक हरियाली दिखाई पड़नी चाहिए, परंतु सावन और भादो की हरियाली में कोई अंतर नहीं मिला। सावन के बाद आने वाले माह भादो में हरियाली में वृद्धि होना स्वाभाविक है।
इसी प्रकार जिसकी आर्थिक या अन्य स्थिति में तब और अब में कोई अन्तर नहीं पड़ा हो, वह इस कहावत के द्वारा अपनी स्थिति एक-समान रहने, अर्थात् न बिगड़ने और न बनने, की बात को स्पष्ट करता है।
हरियर-हरा भरा
न हँसे लाज, न थूँके लाज।
न हँसी से लज्जा, न थूकने से लज्जा।
ऐसा व्यक्ति जिस पर लोग हँसते हों तथा थूकते हों और तब भी वह लज्जित न होता हो, वह बहुत बेशर्म व्यक्ति होता है।