गुनिया अन्य लोगों की स्त्रियों को अपने मंत्रादि से ठीक करता है, जिससे उनको बच्चे हो जाते हैं, परंतु उसका इलाज अपनी पत्नी पर कोई असर नहीं करता।
जब कोई व्यक्ति औरों की सहायता करता है, परंतु अपने लिए कुछ नहीं कर सकता, तब यह कहावत कही जाती है।
बइगा -बैगा, डौकी-पत्नी, परै-पड़ना
बइठे बिगारी सही।
बैठे से बेगार ही सही।
निठल्ला रहने की अपेक्षा कुछ न कुछ काम करना अच्छा होता है।
जब कोई व्यक्ति खाली न बैठकर कोई छोटा-मोटा काम कर लेता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
बइठे-बैठे ही, बिगारी -बेकारी
बइला अउ बेटी के घर नइ ए।
बैल और बेटी का घर नहीं होता।
बैल को जिसे बेच दिया जाए, उसी के साथ उसे जाना पड़ता है तथा बेटी की शादी जिससे कर दी जाए, उसी के साथ उसे रहना पड़ता है।
लड़कियाँ पराया धन होती हैं यह बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
बइला-बैल, अउ-और, नइ-नहीं, ए-है
बइला के ओधा माँ बगुला चरै।
बैल की आड़ में बगुले चरे।
बैल के आड़ में बगुले छिप जाते हैं, जिससे उन के ऊपर लोगों की दृष्टि नहीं जाती।
जब कोई व्यक्ति किसी की ओट में शिकार करता ह, तब यह कहावत कही जाती है।
बइला-बैल, ओधा-आड़, चरै-चरना
बखत परे बाँका, त गदहा ल कहे काका।
वक्त पड़ने पर गधे को भी काका कहना पड़ता है।
आवश्यकता पड़ने पर क्षुद्र व्यक्ति की भी खुशामद करनी पड़ती है। नीच व्यक्ति से काम निकालने के लिए उसे सिर पर चढ़ाना पड़ता है, उसकी बातों को शिरोर्धाय करना पड़ता है।
किसी अच्छे व्यक्ति को निम्न व्यक्ति की खुशामद करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
बखत-वक्त, परे-पड़ने पर, गदहा-गधा, ल-को
बड़ तिस मार खाँ के बेटा आय।
बड़ा तीस मार खाँ का बेटा है।
ऐसा सामान्य व्यक्ति जो अन्य लोगों पर रोब जमाता है, उसकी हरकतों से तंग आकर लोग उससे कहते हैं कि बड़ा आया है रोब जमाने वाला।
उसके चले जाने पर उसके रोब जमाने की चर्चा करते हुए यह कहावत कही जाती है कि वह ऐसे बहादुर का बेटा है, जिसने तीस मक्खियाँ मार डाली हों।
बड़-बड़ा, तिस-तीस, आय-है
बड़का के लात मूँड़ माँ।
बड़े आदमी का पैर सिर पर।
बड़े आदमियों के मार भी बड़ी होती है।
जब कोई धनी व्यक्ति किसी से नाराज होता है, तो वह उसे तबाह कर देता है, ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
बड़का-बड़ा, मूंड़-सिर
बड़का मारै रोन न देय।
बड़ा आदमी मारता है और रोने भी नहीं देता।
बड़े आदमी जिस किसी व्यक्ति को परेशान करते हैं, वह अपनी व्यथा दूसरों को बता भी नहीं सकता, क्योंकि इससे और अधिक परेशानी में पड़ने का उसे भय रहता ह।
सामथ्यर्वान का क्रोध सामान्य लोगों के लिए बहुत दुखद होता है, यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
बड़का-बड़ा, मारै-मारना, रोन-रोना, देय-देना
बड़वा बइला, तरेंगा के खेती।
बिना पूँछ का बैल, तरेंगा की खेती।
तरेंगा गाँव की खेती बहुत अधिक जमीन में होती है, जिसके लिए अनेक बैलों की आवश्यकता होती है। अकेले पूँछ कटे बैल से क्या हो सकता है?
बहुत बड़े कार्य के लिए बहुत लोगों की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में थोड़े से व्यक्तियों को देखकर यह कहावत कही जाती है।
तरेंग-एक गाँव, जहाँ का मालिक हजारों एकड़ भूमि का स्वामी था, बड़वा-ऐसा बैल जिसकी पूंछ न हो, बइला-बैल
बड़े संग माँ खाय बीरो पान, छोटे संग माँ कटाय दूनों कान।
बड़े के साथ पान खाना, छोटे के साथ कान कटाना।
बड़ों के साथ रहने से प्रतिष्ठा बढ़ती है तथा छोटों के साथ रहने से बेइज्जती होती है।
छोटों से मिलकर न रहकर बड़ों के साथ रहने के लिए सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।