कौवा और नाई चतुर होते हैं। मनुष्यों में नाई तथा पक्षियों में कौवा चतुर होते हैं।
यह कहावत नाई की चतुराई को लक्ष्य करके कही जाती है।
नौंवां-नाई
पठेरा कस कौड़ी दाँत निपौरे।
आले की कौड़ी के समान दाँत निकालता है।
कोई व्यक्ति हर समय दांत निकाल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है
जब कोई व्यक्ति बात-बात में अकारण दाँत निकाला करता है, तब उसे अपमानित करने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
पठेरा-आला, कस-उसी जैसा, निपौरे-निपोरना
पढ़े फारसी बेचे तेल।
फारसी पढ़कर भी तेल बेचता है।
ज्यादा पढ़-लिख कर भी छोटा काम करता है।
जब अधिक पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपनी पढ़ाई के अनुकूल कार्य नहीं कर के कोई निम्न स्तर का कार्य करता है, तब लोग उसके लिए इस कहावत का प्रयोग करते है।
मेहरिया-पत्नी, अउ-और, दू-दो, साध-इच्छा करना
पर भरोसा कंचन बाई।
कंचन बाई को दूसरों का भरोसा।
हमेशा दूसरों पर भरोसा करना।
जो व्यक्ति दूसरों पर अवलंबित रहकर अपना कार्य करता है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
पर-दूसरा
पराय के धन अउ मँगनी के एँहवात।
दूसरे का धन और माँगा हुआ सौभाग्य।
दूसरे का धन और माँगा हुआ सौभाग्य किसी व्यक्ति को नहीं लगता। व्यक्ति को अपने ही भाग्य के अनुसार भोगना पड़ता है।
दूसरों पर भरोसा करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
एँहवात-सौभाग्य, पराय-दूसरे का, अउ-और, मंगनी-मांगा हुआ
पराय के भरोसा माँ तीन परोसा।
दूसरों के भरोसे तीन परोसे खाता है।
जो व्यक्ति स्वयं काम न करके दूसरे की कमाई खाता है, यह परावलंबी होता है।
ऐसा व्यक्ति जिसे स्वयं कोई अधिकार न हो तथा जो दूसरे के अधिकारों का दूरूपयोगग करे, उसपर टिप्पणी करते हुए यह कहावत कही जाती है।
पराय-दसूरे का
परै चक्कर भोलानाथ के, त कंडा बिनत दिन जाय।
किसी फक्कड़ के चक्कर में पड़कर कंडे इकट्ठो करते हुए दिन बिताना।
बेकार आदमी के चक्कर में पड़ जाना।
जो स्त्री किसी फक्कड़ व्यक्ति के बहकावे में आ जाती है, उसे भोजन तक नसीब नहीं होता। ऐसी स्त्रियों की दुर्दशा को देखकर यह कहावत कही जाती है।
बिनत-बिनना, जाय-जाना
परोसी के बूती साँप नइ मरै।
पड़ोसी के बल-बूते पर साँप नहीं मरता।
अपना काम स्वयं करने से होता है। पड़ोसी के द्वारा अपनी कोई कार्य नहीं होता।
जब किसी व्यक्ति से कोई काम करने के लिए कहा जाए और वह उसे न करे, तब यह कहावत कही जाती है।
परोसी -पड़ोसी, बूती-बूते, नइ-नहीं, मरे-मरना
पलोप पानी अउ सिखोय बुधह के दिन पूरही।
सींचा हुआ पानी और सिखाई गई बुद्धि कितने दिन चलेगी।
वर्षा के पानी से सिंचाई होती है तथा अपनी बुद्धि से काम करने से अनुभव मिलता है। सींचा हुआ पानी जल्दी सूख जाता है, इसलिए वह फसल के लिए वर्षा के पानी की तुलना में कम काम आता है। दूसरों के कहने से कोई काम करते रहने से अपनी बुद्धि कुंठित हो जाती है। खेती को वर्षा का पानी चाहिए तथा व्यक्ति के विकास के लिए अपनी बुद्धि से काम करने की आदत होनी चाहिए।
जब कोई व्यक्ति किसी के बहकावे में आकर काम करता है, तब उस के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
पहाड़ से गिरने वाले व्यक्ति को ऊँचाई से गिरने के कारण चोट लगती है। यदि वह नीचे पत्थर से टकरा जाए, तो दुहरी चोट पड़ती है।
बाहर से परेशान होकर लौटे हुए किसी व्यक्ति को घर में भी किसी मुसीबत का सामना करना पड़े, तो यह पहाड़ से गिरने और पत्थर से टकराने के समान हो जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।