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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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माँगता के का खँगता।
माँगने वाले को किस बात की कमी।
माँगने वाला व्यक्ति अपना समय माँगने में बिताता है। कई जगह से माँगने पर उसे बहुत-कुछ मिल जाता है, इसलिए उसके पास किसी वस्तु की कमी नहीं होती।
अपनी आवश्यकता की वस्तु जहाँ दिखलाई पड़ती है, वहाँ से माँगकर लाता है, ऐसे लोगों के लिए यह कथन कही जाती ह।
मांगता-मांगने वाला, खंगता-कमी

मँगता घर मँगता जाय, मरत ले मार खाय।
माँगने के घर माँगने वाला जाए और मरते तक मार खाए।
यदि किसी माँगने वाले के पास कोई दूसरा माँगने वाला व्यक्ति जाकर कुछ माँगे, तो वह उसे कुछ नहीं देता, बल्कि उसे मार-पीट कर अपने घर से ही नहीं, गाँव से भी भगा देता है। वह ऐसा इसलिए करता है कि यदि माँगने वाले बढ़ जावेंगे, तो उसका हिस्सा बँट जाएगा।
जब किसी स्थान में कोई व्यवसाय करने वाला व्यक्ति किसी दूसरे अपने ही प्रकार के व्यवसायी को वही व्यवसाय शुरू करते देखा है, तो उसे लड़कर भगाने की चेष्टा करता है। उस के इस कार्य को देखकर यह कहावत कही जाती है।
मंगता-मांगने वाला, मरत-मरना, खाय-खाना

मँगनी के बइला घरजिया दमाद, मरे के बाचै जोते के काम।
माँगकर लाए हुए बैल और घर में रहने वाले दामाद से मरते दम तक काम लिया जाता है।
अपने काम के लिए किसी व्यक्ति से बैल माँगकर लाने वाला व्यक्ति उस बैल से अधिक से अधिक काम लेता है, जिससे उसका काम जल्दी पूरा हो जाए। वह उस के खाने-पीने तथा आराम की चिंता न करके केवल अपने काम की चिंता करता है। घर में रहने वाले दामाद से भी खाना देने के बदले में खूब काम कराया जाता है।
दूसरों की वस्तु पर अपना खर्च होने पर उसका बेरहमी से उपयोग करने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
मंगनी-मांगकर लाया हुआ, बइला-बैल, घरजिया-घर में रहने वाला, दमाद-दामांद, मरे-मरना, बाचै-बचना, जोते-जुताई

मँगनी के नाव मनोहर।
माँगने का नाम मनोहर।
माँगने वाले को कुछ न कुछ मिल जाता है।
उसे पाते देखकर माँगने के कार्य को बढ़िया मान कर लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
मंगनी-मांगने वाला, नाव-नाम

मँगनी के पान माँ मुँह नइ रचै।
माँगे हुए पान से मुँह लाल नहीं होता।
दूसरों से माँगकर काम चलाए जाने वाले की उन्नति नहीं हो सकती। हो सकता है कि कोई आवश्यक वस्तु समय पर न मिले, जिससे काम बिगड़ जाए।
अपनी उन्नति करने के लिए अपने को ही सामर्थ्यवान बनाने की सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
मंगनी-मांगा हुआ, नइ-नहीं, रचै-रचना

मँड़वा माँ नाचै, दमदवा के भाई।
मंडप में दामाद का भाई नाचता है।
मंडप में दामाद की आवश्यकता रहती है, उसका भाई वहाँ के लिए अनावश्यक व्यक्ति होता है।
जहाँ जिसकी आवश्यकता होती है, वहाँ उसके बदले किसी दूसरे अनावश्यक व्यक्ति को देखकर यह कहावत कही जाती है।
मंड़वा-मंडप, नाचै-नाचना, दमदवा-दामांद

मटासी माँ बापपूत कन्हार माँ कोनो नहिं।
मटासी में बाप-बेटे, कन्हार में कोई नहीं।
मटासी में खेती करना कन्हार की अपेक्षा कम कष्ट साध्य है, अतः वहाँ हर कोई काम करने के लिए तैयार रहता है और कन्हार जमीन में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए वहाँ काम करने के लिए हिचक होती है।
कृषि-संबंधी यह कहावत जमीन के भेद को बताने के लिए कही जाती है।
मटासी-एक प्रकार की उपजाउ मिट्टी, बापपूत-बाप और बेटा, कन्हार-एक प्रकार की काली मिट्टी जिसमें उपज ज्यादा होती है, कोनो-कोई, नहिं-नहीं

मन करै कृतिया त बाघ धरै, नहिं त छेनहरा तरी ले नइ टरै।
कृतिया की इच्छा हो, तो बाघ को पकड़े अन्यथा कंडों के ढेर से न हिले।
कुतिया अपनी इच्छा के अनुसार काम करती है। यदि उसकी इच्छा हुई, तो वह बाघ को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ती है तथा इच्छा न होने पर कंडों के ढेर के पास बैठी रह जाती है।
जो व्यक्ति इच्छा होने पर खूब काम करे अन्यथा इधर-उधर भटकते रहे उसे कार्य करने की प्रेरणा देने हेतु यह कहावत कही जाती है।
छेनहरा-कडों की ढेरी, धरै-पकड़ना, नहिं-नहीं, तरी-नीचे, नइ-नहीं, टरे-हटना

मन के बात गड़रिया जाने।
मन की बात गड़रिया जाने।
भेंड़ चराने वाला गड़रिया है तो मूर्ख, इसी प्रकार कोई धूर्त व्यक्ति जो किसी के चाल को समझने की बात कहता है, उस के लिए व्यंग्य में यह कहावत कही जाती है।
किसी व्यक्ति के मन की बात स्वयं वही जान सकता है, दूसरा। जब कोई व्यक्ति किसी बात को छिपा लेता है, तब यह कहावत कही जाती है।
गड़रिया-भेड़ चराने वाला

मन भर धावै, करम भर पावै।
इच्छानुसार दौड़े, कर्मानुसार पाए।
कोई ऐसा व्यक्ति, जो अधिक कमाने की इच्छा रखता है, खूब परिश्रम करता है तथा इधर-उधर भाग-दौड़ मचाता है, फिर भी यदि उसकी इच्छानुसार उसे कमाई नहीं हो, तो भाग्य के अनुसार फल मिलने की बात कही जाती है।
जो व्यक्ति इधर-उधर भटकने के बाद भी मनवांछित फल नहीं पाता, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
धावै-दौड़ना, पावै-प्रास करना


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