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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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ए अंधेर कब तक चलही।
यह अंधेर कब तक चलेगा।
गलत कार्य आखिर कब तक चलेगा ?
जब कोई सबल व्यक्ति लगातार अत्याचार किए जाता है, तब लोग उसके अत्याचार से तंग आकर उसी चर्चा करते हुए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
ए-यह, अंधेर-गलत कार्य, चलही-चलना

एक के एक्कइस करथे।
एक का इक्कीस करता है।
किसी बात को खूब बढ़ा-चढ़ाकर कहने वाले के लिए एक का इक्कीस करने की बात कही जाती है।
बढ़ा-चढ़ाकर बात करने वालों के लिए यह कहावत प्रयुक्त की जाती है।
एक्कइस-इक्कीस, करथे-करना

एक कोलिहा हुँआ-हुँआ, त सबो कोलिहा हुँआ-हुँआ।
एक सियार हुँआ बोला, तो सभी सियार हुँआ बोलने लगे।
किसी सियार की आवाज सुनकर दूसरे सियार भी आवाज करते हैं। उसकी आवाज एक-दूसरे की सहमति का द्योतक समझी जाती है।
कोई व्यक्ति कुछ बोले और अन्य व्यक्ति बिना कुछ सोचे-विचारे उसकी हाँ-में-हाँ मिलाने लग जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
कोलिहा-सियार, हुंआ-हुंआ-सियार के चिल्लाने की आवाज, त-तो, सबो-सब

एक गिरै सहर माँ, क गिरै पहर माँ।
या तो शहर में गिरता है या पहाड़ पर।
वर्षा शहर में या पहाड़ पर होने पर उसका विशेष उपयोग नहीं हो पाता। खेती के लिए जहाँ पानी अधिक चाहिए, वहाँ पर्याप्त वर्षा न होकर अन्यत्र भी हो जाता है।
किसी वस्तु की आवश्यकता एक स्थान पर हो, लेकिन वहाँ वह उपलब्ध न हो और अन्यत्र बरबाद होती रहे, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
पहर-पहाड़, गिरै-गिरना, सहर-शहर

एक घरही रहै, तेमाँ बइला चढ़ के आवै।
एक घर वाला व्यक्ति है, उस पर भी बैल पर चढ़कर आता है।
व्यक्ति अपनी जाति का गाँव में अकेला है, तब भी वह अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए बैल पर चढ़ कर आता है।
दुर्बल व्यक्ति के द्वारा झूठा प्रदर्शन करने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
घरही-घर, रहै-रहना, तेमां-उसमें, बइला-बैल, चढ़-चढ़ना, आवै-आना

एक छाक पिइस त मतवार, दू छाक पिइस त मतवार।
एक घूँट पीए तो भी मतवाले, दो घूँट पीए तो भी मतवाले।
कोई व्यक्ति शराब चाहे थोड़ी पीए या ज्यादा, देखने वाले तो उसे शराबी ही कहेंगे। उन्हें इससे क्या मतलब कि उसने शराब कितनी पी है?
जब कोई व्यक्ति उदाहरणार्थ यह कहता है कि उसने तो एकाध बार ही झगड़ा किया है, तब भी लोग उसे झगड़ालू कहते हैं। किसी भी कुकर्म का थोड़ा भी किया जाना आदमी को कुकर्मी बना देता है।
छाक-घूंट, पिइस-पीना, मतवार-शराबी, दू-दो

एक जंगल माँ दू ठिन बघवा नइ रहै।
एक जंगल में दो बाघ नहीं रहते।
दो शक्तिशाली आपस में मिलकर नहीं रह सकते। प्रत्येक एक दूसरे को समाप्त कर देने का प्रयत्न करता है, ताकि उसकी ही अधिकार रहे।
दो शक्तिशाली लोगों के विरोध को देखकर यह कहावत कही जाती है।
दू-दो, ठिन-नग, बघवा-बाघ, नइ-नहीं, रहै-रहना

एक ठन लइका, गांव भर टोनही।
अकेला बच्चा और गाँव भर जादूगरनी।
किसी एक बच्चे का नुकसान करने वाली अनेक जादूगरनियाँ हैं।
जब किसी एक वस्तु के अनेक ग्राहक हों, तब यह कहावत कही जाती है।
टोनही-जादूगरनी, ठन-नग, लइका-बच्चा, गांव भर-पूरे गांव में

एक ठन हर्रा गाँव भर खोंखी।
एक हर्रा, गाँव भर खाँसी।
एक वस्तु के अनेक ग्राहक।
जब किसी एक वस्तु को चाहने वाले अनेक लोग हो जाते हैं, तब यह कहावत कही जाती है। इसका आशय 'एक अनार, सौ बीमार'वाला है।
खोंखी-खाँसी, ठन-नग, गांव भर-पूरे गांव में

एक तो अइसने भैरी, तउन माँ बाजा बाजै।
एक तो ऐसे ही बहरी, ऊपर से बाजा बज रहा है।
बहरी स्त्री के कुछ न सुनने पर बाजा पर बाजा बजने का बहाना मिल जाए, उसी प्रकार स्वभाव से अकर्मण्य व्यक्ति को यदि कोई बहाना मिल जाए, तो फिर क्या कहना।
बहाना खोज लेने वाले कामचोर लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
भैरी-बहरी, अइसने-ऐसा ही, तउन-उसमें, मां-ही, बाजा-वाद्य यंत्र, बाजै-बजना


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