जिसकी आँखों में कीचड़ हो, तथा जिसके रहने का ढंग बेढंग हो, ऐसे व्यक्ति के साथ रहने से कोई लाभ नहीं होता।
जब कोई व्यक्ति किसी अयोग्य व्यक्ति के साथ मिलकर कोई कार्य करता है या उसके साथ निरंतर रहता है, तब यह कहावत कही जाती है।
चीपरा-जिसकी आँखों में कीचड़ हो
रखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त रखही कोन।
राम रखेगा, तो कौन ले जा सकता है, राम ले जाएगा, तो कौन रख सकता है।
सब कुछ ईश्वर की मर्जी के अनुसार होता है, ईश्वर की इच्छा के विरूद्ध मनुष्य की शक्ति व्यर्थ है।
जब मनुष्य किसी काम को बनाने के लिए पूरी शक्ति लगा देता है, फिर भी वह बिगड़ जाता है अथवा कोई काम अनिच्छा से किए जाने पर भी बन जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
कोन-कौन, रखही-रखना
रटंत विद्या, खोदंत पानी।
रटने से विद्या और खोदने से पानी।
रटने से विद्या आती है, खोदने से पानी मिलता है। मेहनत करने से किसी कार्य का अच्छा परिणाम मिलता है।
मेहनत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह कहावत कही जाती है।
रटंत-रटना, खोदंत-खोदना
रन माँ बाँभन, बन माँ पीपर।
युद्धभूमि में ब्राह्मण, जंगल में पीपल।
ब्राह्मण तथा पीपल पूज्य माने जाते हैं, परंतु युद्ध में ब्राह्मण को तथा जंगल काटते समय पीपल को नहीं छोड़ा जाता। युद्ध-भूमि में सब बराबर होते हैं।
देश, काल और परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
रन-युद्ध, बांझन-ब्राम्हण, पीपर-पीपल
ररूहा बेंदरा ला चीपरा अमोल।
दरिद्र बंदर को कीचड़ ही बहुमूल्य।
दरिद्र व्यक्ति के लिए बहुत सामान्य वस्तु भी कीमती होती है।
गरीबी में चीजों का मूल्य समझाने के उद्देश्य से यह कहावत कही जाती है।
ररूहा-दरिद्र, बेंदरा-बंदर, चीपरा-कीचड़
ररूहा ला कसार कलेवा।
कंगाल के लिए कसार ही कलेऊ है।
गरीब आदमी मामूली चीज को ही श्रेष्ठ समझता है।
गरीबी में चीजों के महत्व को समझाने के लिए यह कहावत उपयोग में लाया जाता है।
कसार-चांवल को भूनकर बनाया गया व्यंजन
ररूहा बैरागी डूमर के माला, खाही ओला त पहिरही काला।
दरिद्र योगी के गले में गूलर की माला है, यदि वह उसे खा जेगा, तो पहनेगा किसे।
गरीबी में एकाध वस्तु की महत्ता भी सर्वाधिक होती है।
इस कहावत का प्रयोग तब होता है, जब कोई व्यक्ति किसी छोटी-मोटी चीज के कारण प्रतिष्ठा पा रहा हो। यदि वह उसे छोड़ दे, तो उसकी इज्जत कौन करेगा।
डूमर-गूलर
रस्ता के खेती, राँड़ी के बेटी।
रास्ते की खेती, राँड़ की बेटी।
रास्ते की खेती राह चलते हुए व्यक्तियों और पशुओं द्वारा बरबाद हो जाती है तथा राँड़ की बेटी पर चरित्रहीन लोगों की कुदृष्टि पड़ती है। असुरक्षित वस्तु का लोग फायदा उठाते हैं।
जब कोई वस्तु देख-रेख के अभाव में बरबाद हो जाती है, तब यह कहावत कही जाती है। (इस कहावत को 'राँड़ी के बेटी, रस्ता के खेती' कर के भी बोला जाता है।)
रस्ता-रास्ता, रोड़ी-रोड़
राई के भाव रात के निकल गे।
राई का भाव रात में निकल गया।
सही समय पर सही निर्णय।
जब किसी लेन-देन के संबंध में कोई बात होती है और वह बात उस समय तय नहीं हो पाती, तब वह बात वहीं समाप्त हो जाती है। परंतु जब बात करने वालों में से कोई व्यक्ति लाभ की आशा से उस बात को पुनः छेड़ता है, तब दूसरा व्यक्ति अपनी हानि को समझकर उस बात को आगे न बढ़ाकर अपनी असहमति प्रकट करते हुए इस कहावत का प्रयोग होता है।
राई-सरसों, के-को, निकल-गुजर जाना
राँड़ के बेटा साँड़।
राँड़ का बेटा साँड़।
राँड़ का पुत्र साँड़ के समान स्वच्छंद होता है, क्योंकि उस पर अंकुश नहीं होता।
जब कोई निरंकुश व्यक्ति कोई काम न करके स्वतंत्रतापूर्वक इधर-उधर घूमता है, तब यह कहावत कही जाती है।