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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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कथरी ओढ़े, घीव खाय।
कत्थर ओढ़ना और घी खाना।
जो व्यक्ति फटे-पुराने वस्त्र पहनकर लोगों को भुलावे में डालता है कि गरीबी के कारण उसकी ऐसी स्थिति है, जबकि वास्तविकता इस के विरूद्ध हो, अर्थात् घी खाता हो, तब उसके लिए कहा जाएगा कि वह अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर लोगों को भुलावे में डालता है। ऐसे बहानेबाजों के लिए यह कहावत कही जाती है।
वास्तविकता को छुपाने वाले लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
कथरी-कत्थर, ओढ़े-ओढ़ना, घीव-घी, खाय-खाना

कतको करै, गुन के न जस के।
कितना भी करे, गुण का न यश का।
किसी व्यक्ति को मदद करते रहो पर वह अहसान भी नहीं मानता।
जब कोई व्यक्ति किसी की भलाई के लिए रात-दिन लगा रहता है, परन्तु दूसरा व्यक्ति उसकी परवाह नहीं करता, तब उसकी मनःस्थिति को स्पष्ट करने के लिए भलाई करने वाला व्यक्ति इस कहावत का प्रयोग करता है।
कतको-कितना ही, करै-करना, गुन-गुण, जस-जश

कन्हार जोतै, कुल बिहावै।
कन्हार जोतना, कुलीन वंश में विवाह करना।
अन्य प्रकार की भूमि की अपेक्षा कन्हार जमीन में खेती करने से फसल खराब होने की संभावना कम होती है तथा कुलीन वंश में शादी करने से प्रतिष्ठा घटने की संभावना कम रहती है।
शादी तय करते समय खानदान की छान-बीन करने के लिए तथा शादी के बाद लड़की खराब निकल जाने पर यह कहावत कही जाती है।
कन्हार-काली मिट्टी वाली जमीन, जिसमें उपज ज्यादा होती है, जोतै-जुताई, बिहावै-विवाह करना

कनखजूर के एक गोड़ टूट जाथे, तभो खोरवा नइ होय।
कानखजूरे का एक पैर टूट जाने पर भी वह लँगड़ा नहीं होता।
यदि बड़े आदमी का थोड़ा-बहुत नुकसान हो जाए, तो वह उसे नहीं अखरता।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे बड़े लोगों के लिए होता है, जिनका थोड़ा-मोड़ा नुकसान कुछ अर्थ नहीं रखता।
गोड़-पैर, खोरवा-लँगड़ा, कनखजूर-कानखजूर, जाथे-जाना, तभो-तब भी, नइ-नहीं, होय-होना

कनवा के रोटी ला कुकुर खाय।
काने की रोटी को कुत्ता खाता है।
काने व्यक्ति के न देख सकने के कारण उसकी रोटी को कुत्ता खा जाता है।
जो व्यक्ति अपनी वस्तुओं की निगरानी नहीं करता, उसकी वस्तुओं का उपभोग दूसरे लोग करते हैं, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
कनवा-काना, ला-को, कुकुर-कुत्ता, खाय-खाना

कनवा के सहे, फेर फूला पेर के झन सहे।
काने की बातें भले ही बर्दाश्त कर ले, किंतु फुल्ली पड़ी आँखों वाले की बातें कभी बर्दाश्त न करे।
पूर्ण अपराधी को फुल्ली पड़ी आँखों के समान तथा छोटे-मोटे अपराधी को काने के समान समझते हुए इस कहावत में कहा गया है कि व्यक्ति किसी सामान्य अपराधी को भले ही माफ कर दे, उसे भयंकर अपराधी को कभी माफ नहीं करना चाहिए।
अपराध की सजा मिलनी ही चाहिए, इस परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती ह।
फूला-आँख की पुतली पर का सफेद धब्बा, जिस के कारण कुछ दिखाई नहीं पड़ता, कनवा-काना, झन-लोग

कनवा राजा के नौ ठन कानून।
काने राजा के नौ कानून।
काने व्यक्ति धूर्त होते हैं, इसलिए अपनी मर्जी के अनुसार काना राजा भी कानून बदलता रहता है।
जो व्यक्ति अपनी मर्जी के अनुसार कुछ-का-कुछ कहता और करता है, वह काने राजा के समान है।
कनवा-काना, ठन-नग

कब के खेमइ घी खवइया।
खेमइ कब से घी खाने लगा है।
कंजूस व्यक्ति को घी खाते हुए देखकर आश्चर्य होता है।
कोई व्यक्ति जब अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करते हुए दिखलाई पड़ता है, तब आश्चर्य के साथ उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
खेमइ-कंजूस व्यक्ति, खवइया-खाने वाला

कब के टिटही, कब के छचाँद।
कभी की टिटही, कभी का छचाँद।
टिटही जैसा सामान्य पक्षी कब से छचाँद जैसा शक्तिशाली हो गया।
कोई सामान्य व्यक्ति धन या पद आदि पा जाने पर यदि अपना रोब जमाने लगे, तो लोग आश्चर्य के साथ उस के लिए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
टिटही-टिटिहरी, तालाब में रहने वाला एक पक्षी, छचाँद-बाज, एक शक्तितशाली पक्षी, जो अन्य पक्षियों को मार खाता है, कब-कभी

कब बबा मरही त कब बरा खाबो।
कब बाबा मरेगा, कब बड़े खाएँगे।
मृत्यु-भोज में बड़ा नामक व्यंजन छत्तीसगढ़ में अनिवार्य रूप से बनाया जाता है। बाबा बूढ़ा हो गया है, अतः उसके जल्दी मरने की संभावना है।
बड़े खाने की इच्छा बाबा के मरने पर पूरी हो सकती है, परंतु बाबा के मरने के कोई लक्षण न होने से बड़े खाने की इच्छा भी पूरी नहीं हो सकती। इस प्रकार की निराशापूर्ण स्थिति में यह कहावत कही जाती है कि कब बाबा मरेगा और कब बड़े खाएँगे।
बबा-बुर्जुग व्यक्ति, मरही-मरना, बरा-बड़ा, खाबो-खाना


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