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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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दइ लेगे-लेगे, दमाद-लेगे।
ईश्वर ले गया, तो ले गया, दामाद ले गया तो ले गया।
लड़की पराया धन होती है, उस के मरने पर यह कहते हैं कि उसे तो जाना ही था, चाहे भगवान के घर जाए या दामाद के घर।
परंपरा पर आधारित कहावत है।
दइ-ईश्वर, दमाद-दामांद, लेगे-ले गया

दगा कहूँ के सगा नहिं।
धोखा किसी का सगा नहीं होता।
प्रत्येक व्यक्ति धोखा खा सकता है।
किसी व्यक्ति के धोखे में पड़ जाने पर यह कहावत कही जाती है कि वह किसी का भी अपना नहीं है, अर्थात् उससे कोई भी व्यक्ति नहीं छूटता।
दगा-धोखा, कहूं-किसी का, सगा-मेहमान

दहरा के भरोसा माँ, केवट बाढ़ी खाय।
दहरे के भरोसे केवट उधार ले कर खाता है।
केवट दहरे में से मछली मारकर अपना जीविकोपार्जन करता है। दहरे के भरोसे से उधार ले कर खा जाए और उसे मछली न मिले, तो उसकी मुसीबत हो जाती है।
जब कोई व्यक्ति अनिश्चित भविष्य के सहारे कार्य करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
बाढ़ी-उधार

दहरा माँ मछरी, भाँठा माँ मोल।
दहरे में मछली, जमीन में मूल्य।
अथाह जल में रहने वाली उस मछली का मूल्य पानी से दूर सूखी जमीन पर आँका जा रहा हो, जिसके संबंध में खरीददारों को कुछ पता नहीं है।
जब बिना देखे किसी वस्तु का सौदा किया जाता हो, तक इस कहावत का प्रयोग होता है।
भाँठा-विशेष प्रकार की मिट्टी वाली जमीन, मछरी-मछली

दही के भोरहा माँ कपसा लीलै।
दही के धोखे में कपास निगल जाता है।
मिलते-जुलते चीजों से धोखा खा जाना।
जब कोई व्यक्ति कुछ मिलती जुलती बातों के कारण धोखा खाकर नुकसान उठाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
साखी-साक्षी, बिलइया-बिल्ली

दाँत हे त चना नहिं, चना हे त दाँत नहिं।
दाँत है तो चने नहीं, चने हैं तो दाँत नहीं।
जब जिस चीज की आवश्यकता होती है, तब वह चीज उपलब्ध नहीं होती।
काल-परिवर्तन के कारण जब स्थिति परिवर्तित हो जाए, जिससे अवसरोचित साधनों का अभाव हो जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
नहिं-नहीं

दाँते टूटिस, मुँहे बनिस।
दाँत टूटे, मुँह बना।
यदि कुछ दाँत टूट जाएँ तथा कुछ बने रहें, तो इससे मुँह का आकार बिगड़ जाता है। पूरे दाँत टूट जाने पर मुँह का आकार नकली दाँतों से पुनः बन जाता है।
जब किसी कार्य में नुकसान होता है, परन्तु उस नुकसान से आगे चलकर लाभ होने की संभावना हो जाती है, तब यह कहावत कही जाती है।
बनिस - बनना

दाई - ददा आन, तेखर लइका कइसन।
माँ - बाप दूसरे हों, उनके बच्चे कैसे होंगे?
माँ एक प्रकार की हो और बाप बिल्कुल दूसरे प्रकार का, तब उनसे उत्पन्न बालक भी भिन्न प्रकार का होगा।
बेमेल कार्यों का परिणाम कैसा होगा, यह बतलाने के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
दाई - मां, ददा - पिता, तेखर - उसका, लइका - बच्चा, कइसन - कैसा

दाइ मरै धिया बर, धिया मरै पिया बर।
माँ अपनी पुत्री के लिए चिंतित रहती है, पुत्री अपने पति के लिए चिंतित रहती है।
सामान्यता मां अपनी पुत्री के लिए और पुत्री अपने पति की चिंता में ही व्यस्त रहती है।
जब कोई व्यक्ति किसी के लिए बहुत कुछ करता है, परंतु बदले में वह उस के लिए कुछ न कर के किसी और के लिए करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
दाई-मां, धिया-पुत्री, बर-के कारण, पिया-पति

दारी के धन हो जाथे, तभो बाई नइ कहाय।
वेश्या के पास धन हो जाए, तब भी वह कुलीन नारी नहीं कहला सकती।
नीच व्यक्ति धनी बन जाने पर भी कुलीन व्यक्तियों के समान प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता।
अनैतिक कार्य करने वाले व्यक्ति कभी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकते, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
दारी -वैश्या, तभो-तब भी


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