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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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टठिया न लोटिया, फोकट के गौंटिया।
थाली न लोटा मुफ्त के गौंटिया।
घर में कुछ है नहीं, अपने को झूठ-मूठ ही मालगुजार कहता है। किसी गाँव का मालगुजार उस गाँव का संपन्न व्यक्ति होता था। ऐसा व्यक्ति, जो अपने को मालगुजार कहे, उस के पास थाली, लोटा आदि ढेर सारी वस्तुएँ होनी चाहिए। यदि उस के पास थाली, लोटा जैसी आवश्यक वस्तुएँ भी न हो, तो वह झूठा व्यक्ति है।
झूठी तड़क-भड़क दिखाने वालों के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
टठिया-कटोरा, लोटिया-लोटा, फोकट-मुफ्त

टेटका के चिन्हारी बारी ले।
गिरगिट की पहचान बाड़ी तक।
जिस प्रकार सताए जाने पर गिरगिट भाग कर बाड़ी में अपनी प्राण-रक्षा करता है, उसी प्रकार आवश्यकता पड़ने पर सामान्य व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति की शरण में पहुँच जाता है।
उसे बार - बार एक ही व्यक्ति की शरण में जाते देखकर यह कहावत कही जाती है।
टेटका-गिरगिट, चिन्हारी-पहचान, बारी-बाड़ी


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