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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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लंका माँ सोना के भूती।
लंका में सोने की मजदूरी।
लंका में सोना अधिक है, तो उसे मजदूरी में नहीं दिया जाता।
यदि किसी व्यक्ति के पास कोई अच्छी वस्तु अधिक मात्रा में होती है, तो वह उसे बहुत सामान्य कार्यों में खर्च नहीं कर डालता। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
भूती-मजदूरी

लइका जाँघ माँ हग देथे, त जाँघ ला थोरे काट देबे।
बच्चा यदि जाँघ पर मल-त्याग कर दे, तो जाँघ को थोड़े ही काट देंगे।
यदि किसी काम में थोड़ी त्रुटि हो जाए, तो भी काम बंद नहीं कर दिया जाता, यह बात इस कहावत के माध्यम से कही जाती है।
गलती पर भी काम को जारी रखने की सीख देते हुए यह कहावत कही जाती है।
लइका-बच्चा, थोरे-थोड़े

लपर-लंड चार दुवार, तेखर मान होय अगाड़ी-अगाड़।
इधर-उधर की भिड़ाने वाला चार लोगों के दरवाजे जाता है, जहाँ उसकी आगे-आगे इज्जत होती है।
चुगलखोर स्वयं का हर काम साध लेता है।
किसी चुगलखोर को इज्जत मिलने पर उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
दुवार-द्वार, तेखर-उसका, होय-होना

लबरा के नौ नागर, देखबे त एको नहिं।
झूठे के नौ हल, परंतु देखने पर एक भी नहीं।
झूठ बोलने वाला व्यक्ति अपनी प्रशंसा में अपने पास नौ हल होने की बात कहता है, परंतु उसके घर जाकर देखने पर उसके पास एक भी हल नहीं मिलता।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता है, जो झूठ बोलने में माहिर होते हैं।
लबरा-झूठ बोलने वाला, देखने-देखना, नहिं-नहीं

लबरा के खाय, तभे परियाय।
झूठे की खाए, तभी विश्वास करे।
झूठा व्यक्ति जो कुछ बोलता है, वह अविश्वसनीय होता है, यदि वह अपनी बात सिद्ध कर दे, तभी उस पर विश्वास किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।
झूठे व्यक्ति पर तभी विश्वास किया जा सकता है, जब वह कार्य संपन्न करे दे, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
लबरा - झूठा, पतियाय - विश्वास करना।

लबरा के मुँह ला बजार माँ मारै।
झूठ बोलने वाले के मुँह को बाजार में बंद कर देना चाहिए।
झूठ बोलने वाले व्यक्ति को अनेक लोगों के बीच लज्जित करना चाहिए।
दूसरों का अहित करने वाले व्यक्ति की बेइज्जती अनेक लोगों के बीच करनी चाहिए, जिससे अन्य लोग उसकी हरकतों से वाकिफ हो जाएँ और उससे धोखा न खाएँ। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
बजार - बाजार, लबरा - झूठा व्यक्ति

लबरा देवता खरी के अठवाही।
झूठा देव, खल्ली का भोग।
जैसे झूठे देव हैं, वैसा ही उसका भोग है। जो जैसा होता है, उसके अनुसार ही लोग व्यवहार करते हैं।
ऐसे सामथ्यर्वान व्यक्ति जो दूसरों को उल्लू बनाते हैं, अन्य लोग भी उनका अप्रत्यक्ष रूप से अनादर करते हैं। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
खरी - खल्ली, अठवाही - नवरात्री पक्ष में आठवें दिन लगाए जाने वाला भोग

लरगर माँ ऊँट बदनाम।
लश्कर में ऊँट बदनाम।
लश्कर में ऊँट अपनी ऊँचाई के लिए बदनाम होता है। वह दूर से दिखाई पड़ जाता है। पर घर में परिवार के प्रमुख को किसी काम के बिगड़ जाने पर दोषी ठहराया जाता है।
जब परिवार के किसी व्यक्ति की कोई शिकायत होती है, तब परिवार के प्रमुख को दोष दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
लस्गर-लश्कर, मां-में

लहर के मारे डहर नइ मिलै।
लालच में पड़ जाने पर रास्ता नहीं मिलता।
किसी लालच में पड़ जाने के कारण फल-प्राप्ति के अन्य उपाय नहीं सूझते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी को किसी वस्तु के मिलने का लालाच दे, तो वह व्यक्ति उस के बताए हुए मार्ग के अनुसार ही काम करता है औऱ अन्य कार्यों को छोड़ देता है।
जब कोई व्यक्ति किसी लालच में पड़कर कोई कार्य बहुत तल्लीनतापूर्वक करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
डहर-रास्ता, नइ-नहीं

लहुटे बराती, अउ गुजरे गवाही।
लौटा हुआ बराती और अदालत में गवाही देकर आया हुआ व्यक्ति।
बरात से लौटे बराती और अदालत से गवाही देकर आए हुए गवाह की इज्जत नहीं होती। जब तक उससे गरज रहती है, तभी तक उसकी इज्जत होती है, गरज समाप्त हो जाने पर उसकी कोई इज्जत नहीं करता।
जब किसी व्यक्ति का काम कोई अन्य व्यक्ति पूरा कर देता है, तब काम करने वाले की इज्जत काम लेने वाले के द्वारा न किए जाने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
बराती-बाराती, लहुटे-लौटना


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