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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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डहर के खेती, अउ राँड़ी के बेटी।
रास्ते की खेती, और राँड़ की बेटी।
रास्ते की खेती सुरक्षित नहीं रहती, क्योंकि उसे रास्ता चलते मनुष्य तथा पशुओं से प्रायः नुकसान हो जाता है। इसी प्रकार रांड़ की बेटी भी होती है, जिसके घर के बाहर सुरक्षा के लिए उसका पिता नहीं होता।
सांस्कृतिक कहावत है।
डहर-रास्ता, अउ-और

डहर माँ हागै, अउ आँखी गुड़ैरै।
रास्ते में मल्य त्याग करना और आंख दिखाना।
गलती स्वयं की, पर टोकने वाले को आंख दिखाना।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो स्वयं अपराध करते हैं, परंतु पकड़े जाने पर पकड़ने वाले को डाँटते हैं।
हागै-मल त्याग करना, आँखी गुड़ैरै-गुस्सा से आँख दिखाना, अउ-और

डाँगी कस बोकरा बँधाए हे।
खंभे से बँधे बकरे के समान बँधा है।
ऐसे बकरे को जिसकी बलि देनी होती है, किसी खंभे से बाँधकर रखा जाता है। इसी प्रकार, जो मनुष्य किसी ऐसे जाल में फंसा हुआ होता है, जिसमें से निकलने का कोई रास्ता नहीं होता, तो वह खंभे से बँधे बकरे के समान असहाय हो जाता है।
जब कोई व्यक्ति किसी के चंगुल में फँस जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
डाँगी-बाँस का खंभा, कस-जैसे, बोकरा-बकरी, बंधाए-बंधाना

डाढ़ी वाले बोकरा गै, त एक मूँठा नून अउरो जाय।
दाढ़ी वाला बकरा गया, तो मुट्ठी भर नमक और चला जाए।
दाढ़ी वाला बकरा खो गया, तो उसको खोजने के लिए मुट्ठी भर नमक और खर्च करके उसे खोज लिया जाए। यदि वह मिल जाए, तो अच्छा है, अन्यथा मुट्ठी भर नमक का नुकसान सही।
जब कोई काम बिगड़ जाए और उसके सुधरने की आशा कम हो, तब भी उसे सुधारने के लिए थोड़ा धन और लगाकर देख लेने के लिए यह कहावत कही जाती है।
मूँठा-मुट्ठी, नून-नमक, डाढ़ी-दाढ़ी, अउलो-और

डार के चू के बेदरा, अउ असाढ़ के चू के किसान।
डाल से चूकने वाला बंदर और असाढ़ में चूकरने वाला किसान।
बंदर एक डाल से दूसरी डाल पर उछलते समय चूक जाए और असाढ़ महीने में किसान खेती का काम करने में चूक जाए, तो फिर उनका सँभलना मुश्किल हो जाता है।
समय में काम न करने से चूक जाने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
डार-डाल, चूके-चूकना, बेंदरा-बंदर, अउ-और, असाढ़-आषाढ़

डिड़वा घर माँ चिड़वा बासी।
डिड़वे के घर अधप के चांवल की बासी होती है।
स्त्री के न होने से भोजन बनाने में पुरूष को कठिनाई होती है, जिससे उसे अधप के चावल की बासी खानी पड़ती है।
जिसकी स्त्री न हो और उसे भोजन की दिक्कत हो उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
डिंड़वा-जिसकी स्त्री न हो (कुवाँरा भी और भी रँडुआ भी), चिड़वा-अधपका चावल

डेढ़ बोड़ के चाकरी, बकायन तरी डेरा।
डेढ़ बोड़ की नौकरी, बकायन के नीचे डेरा।
डेढ़ बोड़ की नौकरी करने वाले व्यक्ति को बहुत कम पैसे मिलते हैं और काम बहुत कष्ट का करना पड़ता है।
जब किसी व्यक्ति को थोड़े से पैसे में दूर-दूर भटक कर खूब मेहनत का काम करना पड़े, तब उस नौकरी को खराब बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
बोड़-किसी जमाने में प्रचलित एक प्रकार का सिक्का, बकायन-एक प्रकार का छोटा वृक्ष, तरी-नीचे

डोंगा के अगाड़ी, गाड़ी के पिछाड़ी।
नाव के अगले भाग में, गाड़ी के पिछले भाग में।
नदी पार करते समय नाव में आगे की ओर बैठना चाहिए। यदि नाव नदी में डूबने लगे, तो आगे बैठने वाले को पीछे वाले की अपेक्षा नदी का दूसरा किनारा जल्दी मिलेगा। गाड़ी में पीछे बैठने वाला व्यक्ति किसी दुघर्टना में बच सकता है, क्योंकि गाड़ी का अगला भाग ही दुघर्टना से अधिक प्रभावित होता है।
नियम की बात कहते हुउ उपरोक्त परिस्थिति की कहावत है।
डोंगा-नाव, पिछाड़ी-पिछला हिस्सा

डोकरी मरिस छोकरी होइस, बरोबर के बरोबर।
बूढ़ी मरी, बच्ची हुई, बराबर की बराबर।
बूढ़ी मर गई और बच्ची पैदा हो गई, जिससे घर में परिवार वालों की संख्या बराबर ही रही।
जब आने और जाने वालों की संख्या बराबर रहती है, तब यह कहावत कही जाती है।
डोकरी-बूढ़ी, छोकरी-बच्ची, मरिस-मरना, होइस-होना, बरोबर-बराबर

डौकी के बुध नाक माँ।
स्त्री की बुद्धि नाक में।
औरतों में बुद्धि की कमी होती है।
इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब औरत कोई गलत कार्य कर बैठती है।
डौकी-स्त्री, बुध-बुद्धि


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