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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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छाती के डाह बुतागे।
क्रोध शांत हो गया।
दो विरोधी व्यक्तियों में से किसी एक का अहित हो जाने पर दूसरे का प्रसन्न हो जाना एक सामान्य सांसारिक बात है।
दुश्मन का अहित होने से व्यक्ति को होने वाली प्रसन्नता को देखकर यह कहावत कही जाती है।
डाह-क्रोध, बुतागे-बुझना

छान्ही माँ चढ़ के होरा भूँजे।
छप्पर पर चढ़कर होला भूनता है।
यदि कोई व्यक्ति छप्पर पर चढ़कर होला भूने, तो इससे छप्पर पर आग लगने से किसी का घर बरबाद हो सकता है।
जब कोई व्यक्ति अत्याचार करता है, तब उसकी ज्यादती को देखकर इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
होरा-चना, गेहूँ आदि को पौधे सहित उखाड़कर भूनना, छान्ही-खप्पर

छिन माँ घर जरै, अढ़ई घरी के भदर।
क्षण भर की देरी में घर जल जाएगा, भद्रा नक्षत्र तो अढ़ाई घड़ी तक बना रहेगा।
थोड़े से विलंब से कार्य बिगड़ जाता है, इसलिए सोच-विचार करते हुए समय बिताने से क्या लाभ।
ज्यादा सोचने वालों के लिए यह कहावत उपयोग में लायी जाती है।
छिन-क्षण, जरै-जलना, अढ़ई-अढ़ाई, भदरा-भद्रा

छींकत माँ नाक कटाय।
छींकने में नाक कटाता है।
छींकने में बेइज्जती होगी, ऐसा सोच कर कोई छींक रोकने का प्रयत्न करे, तो यह मूखर्ता है।
जब कोई व्यक्ति बात-बात में संकोच दिखाता है, तब उस के संकोच से ऊबकर यह कहावत कही जाती है।
कटाय-कटाना

छींचे बर न कोड़े बर, धरे बर खोखसा।
न तो पानी सींचना और न जमीन खोदकर बाँध बनाना, परंतु खोखसा पकड़ने के लिए तैयार रहना।
काम न करना, कामचोरी।
काम न कर के फल पाने के लिए पहुँच जाने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
छींचे-सिंचाई, बर-के कराण, कोड़े-खुदाई, धरे-पकड़ाना

छी ! छी ! करै, अउ छितका अकन खाय।
छि ! छि ! करता है और टोकरी भर खाता है।
उसी चीज से घृणा करना और उसी चीज को अपना लेना।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो किसी वस्तु के लिए पहले तो ना-ना करते हैं, परंतु उस के मिल जाने पर उसे निःसंकोच ग्रहण कर लेते हैं।
छितका-टोकरी

छेरिया के मूँड़ मां खड़फड़ी।
बकरी के सिर पर खड़फड़ी।
बकरी अधिक नहीं भागती, यदि उसके भाग जाने की आशंका से उसकी गर्दन पर लकड़ी का बोझ डाल दिया जाए, तो उसे आसानी से पकड़ा जा सकता है।
किसी स्वतंत्र व्यक्ति के जिम्मे कोई काम डाल दिया जाए, तो उसकी स्वतंत्रता घट जाती है, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
खड़फड़ी-लकड़ी का बोझ, छेरिया-बकरी, मूंड़-सिर

छेरिया छाटा मारत हे।
बकरी अपने पिछले पैर से मारती है।
बकरी यदि किसी व्यक्ति को अपने पिछले पैर से मारना चाहती है, तो उससे किसी व्यक्ति का कोई नुकसान नहीं होता।
ऐसा व्यक्ति जिससे लाभ की कोई आशा न हो, यदि वह कड़ी बात करे, तो लोग व्यंग्य कसने के लिए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
छाटा-पिछले पैर से मारना, छेरिया-बकरी

छेरिया बियावै बिधवा बर।
बकरी चीते के लिये बच्चे उत्पन्न करती है।
बकरी के परिश्रम के फल अर्थात् उसके बच्चों को चीता हड़प लेता है।
यदि किसी के परिश्रम का फल कोई दूसरा हड़प ले, तो यह कहावत कही जाती है।
बिघवा-चीता, छेरिया-बकरी, बर-के कारण

छै-पाँच नइ जानै।
छल-कपट से दूर रहता है।
छल कपट से दूर रहने वाला।
जब किसी व्यक्ति के विषय में यह बात प्रसिद्ध हो जाती है कि वह सज्जन और छल-कपट से कोसों दूर रहने वाला है, किन्तु कोई व्यक्ति उसे उकसा कर उससे धूतर्तापूर्ण कार्य कराना चाहता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
नइ-नहीं


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