इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो किसी वस्तु के लिए पहले तो ना-ना करते हैं, परंतु उस के मिल जाने पर उसे निःसंकोच ग्रहण कर लेते हैं।
छितका-टोकरी
छेरिया के मूँड़ मां खड़फड़ी।
बकरी के सिर पर खड़फड़ी।
बकरी अधिक नहीं भागती, यदि उसके भाग जाने की आशंका से उसकी गर्दन पर लकड़ी का बोझ डाल दिया जाए, तो उसे आसानी से पकड़ा जा सकता है।
किसी स्वतंत्र व्यक्ति के जिम्मे कोई काम डाल दिया जाए, तो उसकी स्वतंत्रता घट जाती है, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
खड़फड़ी-लकड़ी का बोझ, छेरिया-बकरी, मूंड़-सिर
छेरिया छाटा मारत हे।
बकरी अपने पिछले पैर से मारती है।
बकरी यदि किसी व्यक्ति को अपने पिछले पैर से मारना चाहती है, तो उससे किसी व्यक्ति का कोई नुकसान नहीं होता।
ऐसा व्यक्ति जिससे लाभ की कोई आशा न हो, यदि वह कड़ी बात करे, तो लोग व्यंग्य कसने के लिए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
छाटा-पिछले पैर से मारना, छेरिया-बकरी
छेरिया बियावै बिधवा बर।
बकरी चीते के लिये बच्चे उत्पन्न करती है।
बकरी के परिश्रम के फल अर्थात् उसके बच्चों को चीता हड़प लेता है।
यदि किसी के परिश्रम का फल कोई दूसरा हड़प ले, तो यह कहावत कही जाती है।
बिघवा-चीता, छेरिया-बकरी, बर-के कारण
छै-पाँच नइ जानै।
छल-कपट से दूर रहता है।
छल कपट से दूर रहने वाला।
जब किसी व्यक्ति के विषय में यह बात प्रसिद्ध हो जाती है कि वह सज्जन और छल-कपट से कोसों दूर रहने वाला है, किन्तु कोई व्यक्ति उसे उकसा कर उससे धूतर्तापूर्ण कार्य कराना चाहता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।