किसी बात की उतावली करने या काम बहुत शीघ्र कर डालने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
बिहाव-विवाह
चटकन के का उधार।
थप्पड़ की क्या उधार।
जब किसी कारणवश किसी को मारने का अवसर आ पड़ता है, तब उसे मारा ही जाता है, 'बाद में मार लूँगा' कहकर छोड़ा नहीं जाता। जब किसी बात के कहने का समय हो, तो उसे उसी समय कहना चाहिए।
किसी बात का तुरंत जवाब देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
चटकन-थप्पड़
चढ़ाय बहुरिया चिंगरी माँ झोर माँगै।
सिर चढ़ाई हुई बहू चिंगरी में शोरवा माँगती है।
ज्यादती करना।
किसी व्यक्ति को अधिक बढ़ावा देने पर उसके द्वारा ज्यादती होते देखकर यह कहावत कही जाती है।
चिंगरी-एक प्रकर की मछली, बहुरिया-बहू, झोर-शोरवा
चढ़ौ पाँडे चड़ौ तिवारी, घोड़वा गइस पराय।
पांडे चढ़ौ, तिवारी चढ़ो, घोड़ा भाग गया।
पांडे जी चढ़िए तिवारी जी चढ़िए' कहते रहने में घोड़ा भाग चला।
जब कोई व्यक्ति झूठे शिष्टाचार में "आप पहले, आप पहले" कहता रहता है उससे समय तथा वस्तु की बरबादी होती है, तब यह कहावत कही जाती है।
गइस-गया, पराय-दूसरा
गइस-गया, पराय-दूसरा
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चतुरा के चातर, के राँचर।
चतुर की हानि, घर के किवाड़ को खलिहान के दरवाजे में लगाना।
अधिक चतुराई करने से लाभ होने के बजाय हानि हो जाती है।
चतुर व्यक्ति ने बचत के लिए घर का फाटक खलिहान में लगवा दिया, जिससे उसे फसल काटने पर फाटक छोटा पड़ने के कारण दूसरा लगवाना पड़ा। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
चतुरा-चतुर, चातर-हानि, फरिका-किवाड़, रांचर-खलिहान का दरवाजा
चमड़ी जाय, फेर दमड़ी झन जाय।
चमड़ी जाए, पर दमड़ी न जाए।
अत्याधिक लालची होना।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता है, जो अपने शरीर की हानि की चिंता न करते हुए पैसों की चिंता करते हैं।
जाय-जाना, झन_ नहीं
चलनी माँ गाय दूहै, करम ला दोस दै।
चलनी में गाय दुहता है और भाग्य को दोष देता है।
स्पष्ट रूप से गलत कार्य कर के भाग्य का दोष बतलाना।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो बिना सोचे-समझे कोई कार्य करतें हैं और विपरीत फल मिलने पर भाग्य को दोष देते हैं।
दूहै-दुहना, करम कर्म, दोस दोष
चार आना के कुकरी, बारा आना फुदगौनी।
चार आने की मुर्गी, बारह आने की सफाई।
मूल वस्तु की कीमत से उँसकी मरम्मत आदि ----खर्च करना।
किसी सस्ती चीज की देख भाल या मरम्मत अधिक कीमत लगने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
कुकरी मुर्गी बारा बारह फुदगौनी सफाई
चार ठन बरतन रइथे, तिहाँ ठिक्की लागबे करथे।
चार बर्तन होने पर टकराएँगे ही
जहाँ चार आदमी इकट्ठे रहते हैं, वहाँ आपस में खटपट हो ही जाया करती है।
परिवार के व्यक्तियों में झगड़ा हो जाने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।