फसल की मिंजाई करने के लिए बैलों को रस्सी से एक साथ जोड़कर गोल घुमाते हुए मिंजाई करते हैं। इसमें प्रयुक्त बैलों में कमजोर और शक्तिशाली बैलों का महत्व बराबर होता है।
जब कभी अच्छे-बुरे लोगों को बराबर महत्व दिया जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
दौरी-मिंजाई के लिए प्रयुक्त बैलों को एक में जोड़ने वाली विशेष प्रकार की रस्सी, हांकत-हांकना
एक बूँद मही माँ छीर सागर नइ कल्थय।
एक बूँद मठे से क्षीर सागर का कुछ नहीं बिगड़ता।
दूध के समुद्र में एक बूँद मठा डाल दिया जाए, तो उसमें का दूध फटता नहीं है।
अच्छाइयों की खान में छुटपुट-बुराई यों ही छिप जाती है। सौ सज्जनों का एक दुर्जन कुछ नहीं बिगाड़ पाता। एक किलो शहद में नीम की एक पत्ती कडुवाहट नहीं ला सकती। ऐसे ही प्रसंगों में इस कहावत का प्रयोग होता है।
कल्थय-बिगड़ना, मही-मट्ठा, छीर-क्षीर, नइ-नहीं
एक राज करै राजा, के दूसर करै परजा।
एक तो राजा राज्य करता है, दूसरे प्रजा राज्य करती है।
राजा तो राज्य करता है, परंतु प्रजा की बात राजा मानता है, इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रजा का राज्य होता है।
जहाँ सभी की बात चलती है और सभी को संतोष होता है, वहाँ के लिए यह कहावत कही जाती है।
दूसर-दूसरा, करै-करना, परजा-प्रजा
एक रात के अढ़इ हर्रा बेचागे।
एक रात में अढ़ाई हर्रा बिक गया।
हर्रे की आवश्यकता अचानक इतनी अधिक हो गई कि उसका मूल्य खूब चढ़ गया, परंतु थोड़ी देर बाद ही उसकी आवश्यकता समाप्त हो गई, अचानक किसी रात में यह घटना घटित हो गई।
इसी प्रकार यदि कोई असामान्य बात हो जाए, तो उसे बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
अढ़इ-अढ़ाई, बेचागे-बिक गया
एक लाँघन, पाँच फरहार।
एक लंघन, पाँच फलाहार।
किसी व्यक्ति के पास खाद्य पदार्थ का अभाव है। वह अपने अभाव की पूर्ति के लिए मजदूरी करता है। मजदूरी से प्राप्त पैसों से वह कभी अनाज खरीद पाता है और कभी नहीं, जिससे वह कभी खाना पा जाता है और कभी नहीं पाता।
किसी ऐसे गरीब व्यक्ति की स्थिति जिसे खाने के विषय में "एक बार उपवास करना पड़ता है और पाँच बार अपूर्ण पेट रहना पड़ता है।" यह कहावत कहकर स्पष्ट की जाती है।
लांघन-लंघन, फरहार-फाहार
लांघन-लंघन, फरहार-फाहार
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एक ला माँय, एक ला मोसी।
एक को माँ, एक को मौसी।
समान रूप से सक्षम दो व्यक्ति के साथ कोई व्यक्ति एक के साथ अधिक प्यार और दूसरे के साथ कम करता है।
जब कोई व्यक्ति किन्हीं दो व्यक्तियों में से एक के प्रति सगा तथा दूसरे के प्रति सौतेला व्यवहार करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
मांय-मां, ला-को, मोसी-मौसी
एक सिकहर हालै, त सौ घर ला घालै।
एक सींक हिले, तो सौ घर को नुकसान करे।
सींक के समान किसी छोटी सी वस्तु से बहुतों का नुकसान हो जाना।
यों तो आश्र्चयर्जनक है, किंतु किसी सामान्य सी बात या छोटे से आदमी के कारण कभी-कभी बड़ा भारी नुकसान हो जाता है, जैसे छोटा सा छेद बड़े-से-बड़े जहाज को डुबो सकता है। ऐसा होने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
सिकहर-सींक, हालै-हिलना, त-तो, ला-को, घालै-नुकसान करना