सभी अपनी चीजों को अच्छा बताते हैं, इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
टेड़गा-टेढ़ा, कुकुर-कुत्ता, अपन-अपना, पूछी-पूंछ
कुकुर के पूछी जब रइहीं टेड़गा।
कुत्ते की पूंछ जब भी रहेगी टेढ़ी।
बुरा मनुष्य कभी सुधर नहीं सकता। इसके लिए कबीर की यह उक्ति प्रसिद्ध है 'कोयला होय न उजला, सौ मन साबुन धोए'। आदत मनुष्य का अंग बन जाती है, अतः जानते हुए भी, उससे बचना संभव नहीं होता।
ऐसे व्यक्ति जो समझाने पर भी नहीं समझते, उन के लिए किंचित रोष के साथ यह कहावत कही जाती है।
कुकुर-कुत्ता, पूछी-पूंछ, टेड़गा-टेड़ा
कुकुर गुह लीपे के न पोते के।
कुत्ते का गू, न लीपने का और न पोतने का। सवर्था अनुपयोगी एवं घृणास्पद वस्तु।
गुऊ के गोबर को पवित्र एवं कृमिनाशक मानते हैं। हिंदू लोग इससे चौके की लिपाई करते हैं। परंतु कुत्ता जो सहज ही अपावन है, उसका गू उससे अधिक अपवित्र होता है, जिससे कोई उपयोग नहीं होता।
कोई व्यक्ति जब किसी काम में हाथ नहीं बँटाता, तब उसकी अकर्मण्यता को लक्ष्य कर के इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
कुकुर-कुत्ता, गुह-मल
कुकुर भूँ के हजार, हाथी चलै बाजार।
कुत्ता कितना भी भौंके, हाथी अपने मार्ग पर ही चलता है।
प्रभुता-संपन्न व्यक्ति छोटे-मोटे लोगों की बातों से घबड़ाकर अपने दायित्व का परित्याग नहीं करता।
सामर्थ्यवान व्यक्ति अपनी आलोचनाओं से नहीं घबराता और अपना काम करते ही रहता है, इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।