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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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कोदो-राहेर के का संग?
कोदो और अरहर का क्या साथ?
कोदो और अरहर एक ही खेत में साथ-साथ बोए जाते हैं, परंतु कोदो जल्दी पक जाता है और अरहर काफी समय के बाद पकता है, इसलिए इनका साथ छूट जाता है।
दो व्यक्तियों में से यदि एक पैदल चले तथा दूसरा साइकिल पर हो, तो उनका साथ नहीं हो सकता। ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
राहेर-अरहर

कोदो लुवत ले भाँटो, नहिं त ठेंगवा चाँटो।
कोदो काटते तक जीजाजी, बाद में अँगूठा चाटो।
काम निकालना।
काम होते तक खुशामद करने तथा काम हो जाने पर परवाह न करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
लुवत-काटना, भांटो-जीजाजी, नहिं-नहीं, ठेंगवा-अंगूठा, चांटो-चाटना

कोनो के गर भर माला, कोनो के सुमरनी बर नहिं।
किसी के लिए गले भर माला और किसी के लिए भगवान का स्मरण करने के लिए भी माला नहीं।
असमान वितरण।
यदि कोई आवश्यक वस्तु किसी के पास बहुत अधिक हो तथा किसी के पास बिलकुल न हो, तो यह कहावत कही जाती है।
सुमरनी-भगवान का नाम स्मरण, कोनो-कोई, गर-गला, बर-के कारण, नहिं-नहीं

कोनो मरै लाज के मारे, कोनो कहै डेरात ह।
कोई व्यक्ति लज्जा के कारण संकोच करता है, परंतु अन्य कोई कहता है कि वह डर रहा है।
शर्मदार ने तो दूसरे का लिहाज किया, परंतु बेशर्म ने समझा कि यह मुझसे डर गया।
जब किसी व्यक्ति के मौन हो जाने पर उस के मौन होने के वास्तविक कारण को न समझ कर कुछ अन्य अर्थ लगाया जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
कोनो-कोई, मरै-मरना, लाज-शर्म, कहै-कहना, डेरात-डराना

कोनो ल भाँटा पथ, कोनो ल भाँटा बैर।
किसी को बैंगन पथ्य तथा किसी को हानिप्रद।
एक ही वस्तु किसी के लिए हानिकारक और किसी के लिए गुणकारी होती है।
किसी भी चीज के लाभ और हानि के पहलू को दर्शाते हुए यह कहावत कही जाती है।
भांटा-बैंगन, पथ-पथ्य, बैर-अपथ्य

कोरा माँ लइका, गाँव गोहार।
गोद में लड़का और गाँव में शोर।
समीप में रखी हुई वस्तु पर ध्यान न देकर उसे अन्यत्र ढूँढ़ना।
पास में रखी हुई वस्तु को पास ही न खोजकर इधर-उधर खोजने पर इसका प्रयोग किया जाता है।
कोरा-गोद, गोहा-शोर, लइका-बच्चा

कोरे गाँथे, बेटी, नीदे कोड़े खेती।
कंघी करके सँवारे हुए बालों वाली बेटी तथा साफ-सुथरी खेती।
कंघी करके सजाई हुई बेटी और निंदाई-खुदाई की गई खेती आकर्षक लगती है। किसी बच्ची को साफ-सुथरी देखकर उसी प्रकार प्रसन्नता होती है, जिस प्रकार कृषक अपने खेती की घास-फूस निकाल देने के बाद लहलहाते पौधों को देखकर प्रसन्न होता है।
स्वच्छ चीजों की प्रशंसा करते हुए यह कहावत प्रयोग में लायी जाती है।
कोरे गाँथे-कंघी करके बालों को सजाकर बांधे हुए, नीदे कोड़े-निंदाई कोड़ाई किया हुआ

कोरी के बल माँ गाड़ा जोते।
कोड़े के भरोसे गाड़ी चलाना।
कोड़े से बैलों को पीट-पीट कर गाड़ी चलाने वाला चालक अच्छा नहीं कहा जाता। गाड़ी चलाने के लिए बैलों को पीटने के बदले अन्य बातों की ओर ध्यान अधिक देना आवश्यक होता है। बैलों की चाल गाड़ी के वजन पर भी निर्भर करती है, जिसे चालक को सोचना चाहिए।
जो बिना सोचे-विचारे दूसरों के भरोसे कार्य करते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
कोरी-कोड़े

कोलिहा बुढ़ावै त फेकारी होय, गँड़वा बुढ़ावै त बैद होय।
गीदड़ बूढ़ा होने पर फे-फे की आवाज करता है, तथा गाँड़ा बूढ़ा होने पर वैद्य हो जाता है।
गीदड़ बूढ़ा हो जाने पर एक विशेष प्रकार की आवाज करता है, जिससे धोखा खाकर उसके लिए कोई शिकार फँस जाए। गँड़वा बूढ़ा होने पर जीवन में इधर-उधर घूमने के कारण प्राप्त अनुभव के आधार पर वैद्य बन जाता है। वस्तुतः गीदड़ और गँड़वे का ऐसा कार्य केवल ढोंग है।
ढोंग कर के अपना उल्लू सीधा करने वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
कोलिहा-गीदड़, बुढ़ावै-बुढ़ापा, गंड़वा-गांड़ा, बैद-वैद्य

कौंवा कान ला लेगे, त कान टमर के देख।
कौवा कान ले गया, तो कान छूकर देख लो।
यदि कोई व्यक्ति बात करता है, तो उसकी असलियत जानकर ही उस पर विश्वास करना चाहिए।
जो दूसरों की बात को बिना जाने-बूझे मान लेते हैं, ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
ला-को, लेगे-ले गया, टमर-छूकर


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