एक ही वस्तु किसी के लिए हानिकारक और किसी के लिए गुणकारी होती है।
किसी भी चीज के लाभ और हानि के पहलू को दर्शाते हुए यह कहावत कही जाती है।
भांटा-बैंगन, पथ-पथ्य, बैर-अपथ्य
कोरा माँ लइका, गाँव गोहार।
गोद में लड़का और गाँव में शोर।
समीप में रखी हुई वस्तु पर ध्यान न देकर उसे अन्यत्र ढूँढ़ना।
पास में रखी हुई वस्तु को पास ही न खोजकर इधर-उधर खोजने पर इसका प्रयोग किया जाता है।
कोरा-गोद, गोहा-शोर, लइका-बच्चा
कोरे गाँथे, बेटी, नीदे कोड़े खेती।
कंघी करके सँवारे हुए बालों वाली बेटी तथा साफ-सुथरी खेती।
कंघी करके सजाई हुई बेटी और निंदाई-खुदाई की गई खेती आकर्षक लगती है। किसी बच्ची को साफ-सुथरी देखकर उसी प्रकार प्रसन्नता होती है, जिस प्रकार कृषक अपने खेती की घास-फूस निकाल देने के बाद लहलहाते पौधों को देखकर प्रसन्न होता है।
स्वच्छ चीजों की प्रशंसा करते हुए यह कहावत प्रयोग में लायी जाती है।
कोरे गाँथे-कंघी करके बालों को सजाकर बांधे हुए, नीदे कोड़े-निंदाई कोड़ाई किया हुआ
कोरी के बल माँ गाड़ा जोते।
कोड़े के भरोसे गाड़ी चलाना।
कोड़े से बैलों को पीट-पीट कर गाड़ी चलाने वाला चालक अच्छा नहीं कहा जाता। गाड़ी चलाने के लिए बैलों को पीटने के बदले अन्य बातों की ओर ध्यान अधिक देना आवश्यक होता है। बैलों की चाल गाड़ी के वजन पर भी निर्भर करती है, जिसे चालक को सोचना चाहिए।
जो बिना सोचे-विचारे दूसरों के भरोसे कार्य करते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
कोरी-कोड़े
कोलिहा बुढ़ावै त फेकारी होय, गँड़वा बुढ़ावै त बैद होय।
गीदड़ बूढ़ा होने पर फे-फे की आवाज करता है, तथा गाँड़ा बूढ़ा होने पर वैद्य हो जाता है।
गीदड़ बूढ़ा हो जाने पर एक विशेष प्रकार की आवाज करता है, जिससे धोखा खाकर उसके लिए कोई शिकार फँस जाए। गँड़वा बूढ़ा होने पर जीवन में इधर-उधर घूमने के कारण प्राप्त अनुभव के आधार पर वैद्य बन जाता है। वस्तुतः गीदड़ और गँड़वे का ऐसा कार्य केवल ढोंग है।
ढोंग कर के अपना उल्लू सीधा करने वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।