logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Chhattisgarhi Kahawat Kosh

Please click here to read PDF file Chhattisgarhi Kahawat Kosh

कुकुर सहराय अपन पूछी।
कुत्ता अपनी पूँछ की प्रशंसा करता है।
यद्यपि कुत्ते की पूँछ टेढ़ी रहती है, तथापि वह अपनी पूँछ को टेढ़ा न कहते हुए उसकी प्रशंसा करता है।
व्यक्ति अपनी खराब वस्तु को भी अच्छा कहता है, इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
सहराय-प्रशंसा करना, कुकुर-कुत्ता, पूछी-पूंछ

कुधरा के पेरे ले तैल नइ निकलै।
रेत को पेरने से तेल नहीं निकलता।
कोई कितना भी प्रयत्न करे रेत से तेल नहीं निकल सकता।
जब लाख प्रयत्न करने पर भी कंजूस व्यक्ति से कानी कौड़ी भी नहीं मिलती, तब यह कहावत कही जाती है।
कुधरा-रेत, पेरे-पेरना, तैल-तेल, नइ-नहीं, निकलै-निकलना

कुल बिहावै, कन्हार जोतै।
अच्छे कुल में शादी और कन्हार की खेती।
विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए तथा खेती कन्हार जमीन में करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को धोखा नहीं मिलता।
सोच समझकर कार्य करने के लिए यह कहावत प्रयोग में लायी जाती है।
बिहावै-विवाह करना, कन्हार-खेती किसानी हेतु एक प्रकार की अच्छी उपजाऊ मिट्टी, जोतै-जोतना

कुँवार करेला, कातिक दही, मरही नहिं न परही सही।
क्वाँर में करेला और कार्तिक में दही खाने वाला यदि मरेगा नहीं तो बीमार अवश्य पड़ेगा।
क्वाँर में करेला और कार्तिक में दही खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
स्वास्थ्य संबंधी सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
कुँवार-क्वांर, कातिक-कार्तिक, मरही-मरना, नहिं-नहीं तो,परही-पड़ना

कुसियार ह जादा मिठाथे, त जरी ल नई चुहकैं।
गन्ना खूब मीठा लगता है, तो उसकी जड़ को नहीं चूसते।
यदि कोई व्यक्ति अधिक मदद करता है, तो उससे बार-बार लाभ उठाना उचित नहीं है।
मदद देने वाले को लोग ज्यादा शोषण करते हैं, ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
कुसियार-गन्ना, जादा-ज्यादा, मिठाथे-स्वाद लगना, जरी-जड़, नई-नहीं, चुहकैं-चूसना

केरा पान कस हालत हे।
केले के पत्ते के समान हिल रहा है।
दम न होना।
ऐसा व्यक्ति जो जरा सा दबाव पड़ने पर इधर-उधर होता रहता है, उस के मन की अस्थिरता को लक्ष्य करके यह कहावत कही जाती है।
केरा-केला, पान-पत्ता, कस-जैसे, हालत-हिलना

केहे माँ धोबी गदहा माँ नइ चढ़ै।
कहने से धोबी गदहे पर नहीं चढ़ता।
धोबी गदहे पर कपड़े लाद कर चलता है। यदि कोई उसे गदहे पर बैठने के लिए कहता है, तो नहीं बैठता, किसी के न कहने पर वह स्वयं बैठ जाया करता है।
किसी की सलाह पर अमल न करके उसे महत्वहीन मानने, लेकिन उसीके अनुसार स्वेच्छा से काम करने वाले व्यक्ति पर यह कहावत कही जाती है।
केहे-कहने से, गदहा-गधा, नइ-नहीं

कोचइ छोलौं के कुला खजुवावौं।
घुइयाँ छिलूँ या चूतड़ खुजलाऊँ।
घुइयाँ छिलने में लगे हुए व्यक्ति को चूतड़ खुजलाने के कारण छिलने का कार्य बंद करना पड़ता है, क्योंकि एक समय में एक ही काम हो सकना संभव है।
जब कोई व्यक्ति किसी काम में व्यस्त हो तब वह दूसरा काम नहीं कर सकता। ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
कोच-घुइयाँ, कुला-चूतड़, छोलौं-छिलना, खजुवावों-खुजाना

कोठी माँ धान नहिं, बरमत नाव।
कोठी में धान नहीं है, परन्तु नाम बरमत है।
घर में खाने को नहीं है, परंतु नाम ' धनी ' अर्थ का द्योतक है।
नाम के धनी, पर काम के नहीं, ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
कोठी-जिसमें धान रखा जाता है, नहिं-नहीं, नाव-नाम

कोड़हा के रोटी दूसर के मुँह माँ खूब मिठाथे।
कोड़हे की रोटी दूसरों को मीठी लगती है।
कोड़हे की रोटी अच्छी नहीं लगती, इसलिए खाने वाला व्यक्ति उसे दूसरों को दे देता है। घटिया वस्तु दूसरों के लिए अच्छी होती है, लेकिन स्वयं के लिए नहीं।
यदि कोई व्यक्ति घटिया किस्म का काम स्वयं न करे और उसे दूसरों के लिए अच्छा कहे, तो उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
मिठाथे-स्वाद लगना


logo