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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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खेढ़ा साग बुढ़वा मन के।
खेढ़े की सब्जी बूढ़ों की।
दाँत न होने पर भी बूढ़े लोग खेढ़े को चूस सकते हैं। यह सब्जी शक्तिवर्धक नहीं होती, अतः इसे लोग पसंद न करते हुए कह देते हैं कि यह बूढों के लिए है।
किसी घटिया वस्तु को स्वयं पसंद न कर के परिवार के अन्य लोगों को देने पर यह कहावत कही जाती है।
खेढ़ा-एक प्रकार की सब्जी, साग-सब्जी, बुढ़वा-बूढ़ा

खेत चरे गदहा, मार खाय जोलहा।
गदहा खेत चरता है और जुलाहे को मार पड़ती है।
हानि कोई और करे तथा दंड कोई और भोगे।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे अवसर पर होता है, जब अनुचित कार्य कोई और करता है तथा उसका दंड किसी और को भोगना पड़ता है।
गदहा-गधा, जोलहा-जुलाहा

खेती अपन सेती।
खेती अपने बूते पर होती है।
यदि खेती करने वाला व्यक्ति नौकरों पर आश्रित रहे, तो उसका काम ठीक समय पर न होने से बिगड़ जाता है। उसे स्वयं देख-भाल करनी पड़ती है।
दूसरे पर आश्रित रहने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
अपन-अपना, सेती-कारण

खेती करै न बनिजै जाय, विद्या के बल बैठे खाय।
न तो खेती करता है और न व्यापर, विद्या के भरोसे बैठे-बैठे खाता है।
पढ़े-लिखे व्यक्ति को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। वह अपने ज्ञान के भरोसे जहाँ रहता है, वहाँ कमा लेता है।
विद्या को खेती तथा व्यापार से श्रेष्ठ बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
बनिजै-व्यापार

खेलाय-कुदाय के नाव नहीं, गिराय-पराय के नाव।
खेलाने-कुदाने का नाम नहीं, गिराने का नाम।
दूसरे किसी के बच्चे को कोई व्यक्ति कितना भी प्यार करे, उस के माँ-बाप तथा अन्य लोग प्यार करने वाले व्यक्ति की प्रशंसा नहीं करते। परंतु उसे यदि कोई चोट लग जाए, तो लोग उसकी निंदा करने लग जाते हैं।
जब कोई व्यक्ति किसी का बहुत सारा काम कर देता है, तब उसकी प्रशंसा न करके थोड़ा सा काम न करने पर यदि वह उसकी बुराई करे, तब यह कहावत कही जाती है।
खेलाय-खेलना, कुदाय-कूदाना, नाव-नाम, गिराय-गिराना, पराय-पड़ाय

खेलो न जुवां, झाँको न कुँवा।
जुआ मत खेलो तथा कुँआ मत झाँको।
जिस व्यक्ति को जुआं खेलने की आदत पड़ जाए, वह जुए में अपनी सारी पूंजी भी हार सकता है। कुएँ में झाँकने वाला व्यक्ति धोखे से कुएँ में गिर सकता है।
बच्चों को सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
जुवां-जुआं, कुंवा-कुंआ

खोंटनी भाजी कस खोंट-खोंट खाय।
खोंटनी भाजी के समान तोड़-तोड़ कर खाता है।
खोंटनी भाजी से पत्ते तोड़ने पर उसमें शीघ्र नए-नए पत्ते लग जाते हैं, जिससे उसके पत्तों की सब्जी खाने के लिए बार-बार मिलती रहती है।
जब कोई व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार अथवा हितैषी से बार-बार पैसे माँगकर अपना खर्च पूरा करता है, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
खोंटनी भाजी-एक प्रकार की भाजी, खोंट-तोड़, खाय-खाना

खाये बर करछूल नहिं, हेर मारे तलवार।
खाना बनाने के लिए करछी तक नहीं है और तलवार निकाल कर मारता है।
लोहे के नाम पर घर में करछी तक तो है नहीं, परंतु बात करता है, तलवार निकाल कर मारने की।
अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर डींग मारने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
करछूल-करछी, खाये बर-खाने के लिए, नहिं-नहीं, हेर-निकालना

खोरवा कनवा बड़ा उपाई।
लँगड़े तथा काने बड़े उपद्रवी होते हैं।
लँगड़े तथा काने व्यक्ति का मन विध्वंसात्मक कायों में अधिक लगता है। उनका अंग-भंग होने के कराण उनकी शक्ति संभवतः अन्यों को अपने जैसा बनाने के मनोविज्ञान के कारण तोड़-फोड़ वाले कामों में खर्च होती है।
गलत कार्यों में मन लगाने वाले व्यक्ति को ताना देते हुए यह कहावत कही जाती है।
खोरवा-लँगड़ा

खोरी के एक गोड़ उठेच हे।
लँगड़ी का एक पैर उठा ही रहता है।
किसी स्त्री के लँगड़ी होने के कारण उसका एक पैर हमेशा उठा ही रहता है, जिससे वह हमेशा चलने को तैयार दिखती है।
जो व्यक्ति हर काम के लिए हमेशा तैयार रहे, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
खोरी-लँगड़ी, गोड़-पैर, उठेच-उठा ही


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