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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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करिया आखर भैंस बरोबर।
काला अक्षर भैंस बराबर।
निरक्षर होना।
इस कहावत का प्रयोग अशिक्षित व्यक्तियों के लिए होता है, जो भैंस की परख कर उसे समझ सकते हैं, किंतु अक्षरों को समझ नहीं पाते। उनकी मोटी बुद्धि में भैंस जैसा विशालकाय जानवर आ जाता है, परंतु छोटे-छोटे अक्षर नहीं आते।
करिया-काला, बरोबर-बराबर

करेला तेमाँ लीम चढ़े।
एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा।
करेला कड़वा होता है। यदि वह नीम जैसे कड़वे वृक्ष पर चढ़ जाए, तो और भी कड़वा हो जाता है।
जब किसी में कोई बुरी आदत हो तथा वह कुसंगत में पड़कर दूसरी बुरी आदत का भी शिकार हो जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
लीम-नीम, तेमां-उसमें, चढ़े-चढ़ना

करै कूदै तउन उपरी, नून डारै तउन बपरी।
करने-कूदने वाली अलग रह गई, नमक डालने वाली बेचारी (सहानुभूति की पात्रा) हो गई।
मेहनत कर के खाना बनाने वाली थी का नाम नहीं लिया गया और नमक डालने वाली का नाम हो गया।
जब परिश्रम कर के किसी कार्य को संपन्न करने वाले व्यक्ति को यश न मिले, किन्तु उस कार्य के अंत में किंचित योग देने वाले को यश मिल जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
करै-करना, कूदै-कूदना, तउन-वह, उपरी-अलग हो जाना, नून-नमक, डारै-डालना, बपरी-बेचारी।

करे खेत के, सुने खलियान के।
करना खेत की और सुनना खलिहान की।
खेत की बात सुनने से काम नहीं चलता, उसे तो सुनकर तुरंत करना पड़ता है, अन्यथा खेती बरबाद हो सकती है। फसल पैदा होने के संबंध में बातें खलिहान की सुनी जा सकती है, क्योंकि खेती कट चुकी होती है और काम करने को कम बच जाता है।
खेती की बात मात्र सुनकर मान लेने वालों के लिए सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
करे-करना

कलजुग के बेटा करे कछेरी, बाप ला खेत जोंतावत हे। ओखर बाई रानी होगे, डोकरी ला पानी भरावत हे।
कलयुग का बेटा कचहरी में, पिता खेत में। पत्नी रानी है, मां पानी भर रही है।
कलियुगी लड़का स्वयं कचहरी का काम करता है और अपने बाप को खेती का काम कराता है, वह अपनी पत्नी को रानी बनाकर अपनी माँ से पानी भराता है।
आजकल के लड़के स्वयं आमोद-प्रमोद में समय बिताते हैं तथा माँ-बाप से काम लेते हैं। जवान लड़कों को मस्ती करते तथा माँ-बाप को काम करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
कलजुग-कलयुग, कछेरी-कचहरी, जोंतावत-रगड़ के काम करना

कलजुग के लइका करे कछेरी, बुढ़वा जोते नांगर।
कलयुग का लड़का कचहरी में पिता खेत में।
कलियुग का लड़का स्वयं कचहरी का काम करता है अर्थात् परिश्रम का काम नहीं करता, तथा उसका बूढ़ा बाप हल चलाता है।
आजकल के विलासी नवयुवकों पर व्यंग्य कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
कलजुग-कलयुग, लइका-लड़का, कछेरी-कचहरी, बुढ़वा-बूढ़ा, नागर-हल

कलेवा माँ लाडू, सगा माँ साढू।
पकवान में लड्डू, रिश्तेदारों में साढू।
पकवान में लड्डू को श्रेष्ठ माना जाता है तथा रिश्तेदार में साढू को।
अपने परिवार वालों को छोड़कर ससुराल वालों की ओर झुकने वाले व्यक्ति के लेए यह कहावत कही जाती है।
साढू-साली का पति, कलेवा-पकवान, सगा-मेहमान

कहाँ गेए, कहूँ नहीं, का लाए, कुछु नहीं।
कहाँ गए, कहीं नहीं, क्या लाए, कुछ नहीं।
काम के लिए तो निकले थे, पर काम ही नहीं किए।
जो व्यक्ति बाहर जाकर भी कुछ कार्य कर के नहीं लौटता, उस के लिए यह कहावत प्रयक्त होती है।
गेए-गए, कहूं-कहीं, कुछु-कुछ

कहाँ जाबे भागे, करम जाही आगे।
भाग कर कहाँ जाओगे, भाग्य वहाँ पहले पहुँच जाएगा।
जो व्यक्ति चिंतित अवस्था में इधर-उधर मारा-मारा फिरता है और कहीं सहारा नहीं पाता, वह अभागा है।
जहाँ कहीं भी वह जाता है, उसका भाग्य उससे पहले वहाँ उपस्थित होकर उसका दुख दूर नहीं होने देता। दुर्दिन में हर कार्य में हानि होते देख कर यह कहावत कही जाती है।
जाबे-जाएगा, करम-कर्म

कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा तेली।
कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा तेली।
विशेष व्यक्ति या वस्तु की समानता साधारण व्यक्ति या वस्तु से नहीं हो सकती।
राजा भोज जैसे बड़े राजा की बराबरी सामान्य सा भोजवा तेली कैसे कर सकता है। जब दो व्यक्तियों अथवा दो वस्तुओं में कोई समानता न हो, तब यह कहावत कही जाती है।
तेली-एक प्रकार की तेल निकाल कर आजीविका चलाने वाली जाति


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