logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Chhattisgarhi Kahawat Kosh

Please click here to read PDF file Chhattisgarhi Kahawat Kosh

कहाँ सिवरी नरायन, अउ कहाँ दूल्हा देव।
कहाँ शिवरीनारायण और कहाँ दूल्हा देव।
शिवरीनारायण नामक तीर्थ स्थान की बराबरी दूल्हा देव जैसा छोटा देव नहीं किया जा सकता।
जब कोई व्यक्ति किसी सामान्य कार्य की तुलना किसी बड़े कार्य से करता है, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
सिवरी नरायन-शिवरीनारायण, अउ-और

कहे त माय मारे जाय, नहिं त बाप कुत्ता खाय।
सच्चाई बता देने से माँ मारी जाएगी, नहीं तो बाप को कुत्ता खाना पड़ेगा।
यदि किसी की पत्नी ने कुत्ते का माँस पकाया हो, जिसे उसका पुत्र जानता हो, तो वह इस बात को अपने पिता को बताने या न बताने की उलझन में पड़ जाता है। यदि वह इसे बताता है, तो माँ पर फटकार पड़ेगी और यदि नहीं बताता है, तो बाप को कुत्ते की सब्जी खानी होती है।
द्विविधापूर्ण स्थिति में जब किसी का नुकसान दोनों तरफ से हो रहा हो, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
माय-मां, नहिं-नहीं, खाय-खाना

का ओढ़र बैठे जाँव, छेना दे आगी ले आँव।
किस बहाने से बैठने जाऊँ, कंडे दो, आग ले लाऊँ।
ऐसी औरत जिसे पड़ोस के घर में बैठने के लिए जाना हो, वह उस के यहाँ से आग लाने का बहाना करती है।
जब कोई व्यक्ति बहाना बनाकर कहीं जाना चाहता है, तब उस के बहाने को समझकर उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
ओढ़र-बहाना, जांव-जाऊं, छेना-कंडा, आगी-आग, आंव-ले आउं

का कहत का होगे, मूंड़ माँ घाव होगे।
क्या कहते-कहते क्या हो गया, सिर में घाव हो गया।
सिर में हुई छोटी फुंसी को अनुष्टकारी न समझकर इलाज नहीं किया गया, जिससे उसने बढ़कर बहुत बड़े फोड़े का रूप धारण कर लिया और अनिष्ट का कराण बन गया। उसके संबंध में पहले से ही ध्यान दिया गया होता , तो ऐसी नौबत न आती।
किसी बाँध में छोटा सा छेद हो जाए और उसे ठीक करने के लिए बात टाल दी जाए, जिससे वह बढ़कर इतना बड़ा हो जाए कि उसका ठीक करना मुश्किल हो जाए, तो ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
होगे-होना, मूंड़-सिर

का कानी के सूते, अऊ का भैरी के जागे।
कानी औ बहरी का क्या सोना और क्या जागना।
कानी स्त्री के जागते हरने पर उसके न देख पाने के कारण भी चोरी हो सकती है तथा बहरी स्त्री के जागते रहने पर भी तोड़-फोड़ का कोई काम किया जा सकता है। इनकी उपस्थिति से किसी वस्तु की सुरक्षा संभव नहीं है।
यदि किसी आलसी व्यक्ति की उपस्थिति में कोई काम बिगड़ जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
कानी-एक आंख से अंधी स्त्री, अऊ-और, भैरी-बहरी स्त्री

का नंगरा के नहाय, का नंगरा के निचोय।
नंगे का क्या नहाना और क्या निचोड़ना।
ऐसा व्यक्ति जिसके पास कपड़े न हों, वह क्या नहाएगा और क्या निचोड़ेगा। इसी प्रकार, ऐसा व्यक्ति जिसकी कोई प्रतिष्ठा न हो, यदि वह कोई खराब कार्य करे, तो इससे उसकी प्रतिष्ठा क्या घटेगी।
किसी अप्रतिष्ठित व्यक्ति के असम्मानित कार्य करने पर यह कहावत कही जाती है।
नगरा-नंगा, निचोय-निचोड़ना

का माछी मारे, का हाथ गन्धाय।
क्या मक्खी मारे, क्या हाथ गंधाय।
मक्खी मारने से उसे मारने वाले के ही हाथ में बदबू होगी। इससे मारने वाले की प्रतिष्ठा बढ़ने के बदले घटती है।
यदि कोई सामर्थ्यहीन व्यक्ति से किसी सामर्थ्यहीन व्यक्ति को परेशान करने के लिए कहे, तो यह कहावत कही जाती है।
माछी-मक्खी, गंधाय-बदबू मारना

काँचा नीक के आदमी।
व्यक्ति जिसे कोई बात काँटे के समान चुभ जाए।
काँटे के चुभने से काफी तकलीफ होती है। ऐसी ही तकलीफ किसी-किसी व्यक्ति को बात लग जाने से होती है।
यदि कोई व्यक्ति दूसरों की छोटी-मोटी त्रुटियों को बर्दाशत न कर सके, तो यह कहावत कही जाती है।
कांटा-शूल

काँड़ी नहीं मूसर, तैं नहीं दूसर।
काँड़ी नहीं तो मूसल, तुम नहीं, तो दूसरा कोई।
धान कूटने के लिए यदि कोई व्यक्ति काँड़ी नहीं देता, तो दूसरे से मूसल माँगकर धान कूट लिया जाता है।
यदि कोई सामर्थ्यवान व्यक्ति किसी व्यक्ति का कोई कार्य न करे, तो किसी दूसरे व्यक्ति से काम पूरा करा लिया जाता है। इस तरीके से यद्यपि काम विलंब से होता है, तथापि उस सामर्थ्यवान व्यक्ति की खुशामद नहीं करनी पड़ती।
काँड़ी-मूसल के बदले धान कूटने का एक विशेष प्रकार का उपकरण, मूसर-मूसल, तैं-तुम, दूसर-दूसरा

काँद ल खनै त ओखर चेचरा ल घलो खनै।
यदि कंद को खोदकर निकालना हो, तो उसे जड़ से खोदकर निकालना चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति का अहित करना हो, तो उसे सपरिवार नष्ट कर देना चाहिए, ताकि उस के बचे हुए संबंधी बदला न ले सकें।
किसी शत्रु को निर्मूल नष्ट कर देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
चेचरा-कंद के नीचे की अनेक पतली-पतली जड़ें, खनै-खनना, ओखर-उसका, घला-उसको भी


logo