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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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कभू काल के करिस उधवा, तेखर कूला ला चाबिस घुघवा।
कभी कोई कार्य किया भी तो उस के चूतड़ को उल्लू ने काट खाया।
किसी व्यक्ति ने ले-दे कर कोई कार्य प्रारंभ किया। कार्य प्रारंभ करते ही उस के चूतड़ को उल्लू ने काट लिया, जिससे उसका कार्य रूक गया।
यदि व्यक्ति कोई कार्य प्रारंभ करे और प्रारंभ करते ही उसमें अनेक विध्न-बाधाएँ पड़ जाएँ, तो इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
घुघवा-उल्लू, कभू-कभी, करिस-किया, कूला-चूतड़, चाबिस-चाबना, घुघवा-उल्लू

कभू काल के खाइस, दाँत निपोरिस गइस परान।
कभी पान खाया भी तो दाँत निपोर कर मर गया।
ऐसा व्यक्ति जिसने कभी पान न खाया हो, वह पान खाने के तरीके से अनभिज्ञ होता है।
अकस्मात् यदि उसे खाने के लिए मिल जाए, तो वह उसे चांवल, रोटी आदि परिचित खाद्य पदार्थ के समान खाते हुए पान में पड़ी हुई नशीली वस्तुओं की पीक घुटक जाने से उसकी स्थिति असामान्य हो जाती है। उससे कभी-कभी बेहोशी की स्थिति भी आ जाती है। इसी प्रकार किसी कार्य के रहस्य को न समझने वाला व्यक्ति उस कार्य मे हाथ डालने पर खतरे में पड़ जाता है। ऐसे में यह कहावत कही जाती है।
कभू-कभी, खाइस-खाना, निपोरिस-निपोरना, परान-प्राण

कभू घी घना, कभू मुट्ठी भर चना, कभू उहू मना।
कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना।
समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। कभी तो उपभोग के लिए अच्छी वस्तु पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है, कभी सामान्य वस्तु भी अल्प मात्रा में ही मिलती है, और कभी कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
विपरीत परिस्थितियों में भी संतोष करना पड़ता है। प्रतिकूल परिस्थिति में इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
कभू-कभी, घना-घनघोर, उहू-वो भी

कमाय निंगोटी वाले, खाय टोपी वाले।
कमाए लँगोट वाले, खाए टोपी वाले।
कमावे कोई और तथा खाए कोई और। लँगोट पहनने वाले ग्रामीण कृषक कमाते हैं तथा टोपीधारी नेतागण खाते हैं।
नेताओं के ऐश-आराम को देखकर यह कहावत कही जाती है।
कमाय-कमाना, निंगोटी-लंगोट, खाय-खाना

करथस रिस त, सील लोढ़ा ल पिस।
क्रोध करते हो, तो सिल-लोढ़े को घिसो।
क्रोध करने वाले व्यक्ति के लिए क्रोध-शमन करने के लिए सिल-लोढ़े को घिसने के लिए कहा गया है।
क्रोध करने से स्वयं की हानि होती है। सिल लोढ़े को घिसने से हाथ थकने पर क्रोध शांत हो जाएना तथा बुद्धि ठिकाने आ जाएगी। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
रिस-क्रोध, करथस-करते हो, पिस-पीसना

करनी करैया बाँच गे, फरिका उघरैया के नाव।
अनुचित कार्य का कर्ता कोई और हो, किन्तु फल किसी और के सिर पड़े।
जिसने अपराध किया, वह पकड़ में नहीं आया। अपने पकड़े जाने का संदेह होने पर वह भाग खड़ा हुआ, परंतु फाटक खोलने वाला अपने को अपराधी न मानने के कारण वहाँ खड़ा रहा, जिससे वह पकड़े में आ गया और दोषी माना गया।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे समय में होता है, जब असली व्यक्ति गिरफ्त में नहीं आता और निर्देष व्यक्ति पकड़ा जाता है।
करनी-किया हुआ, करैया-करने वाला, बांच-बचना, फरिका-फाटक, उघरैया-खोलने वाला, नाव-नाम

करनी दिखै, मरनी के बेर।
करतूत मरते वक्त दिखलाई पड़ती है।
बुरे कर्म मरने के समय याद आते हैं।
कुकर्म करने वाला व्यक्ति खाट में पड़कर अनेक कष्टों को भोगते हुए मरता है। मनुष्य को अपना किया गलत कार्य विपत्ति के समय याद आता है, सुख के दिनों में उसे अपने द्वारा किए कुकर्म याद नहीं आते।
दिखै-दिखाई देना, मरनी-मरना, बेर-वक्त

करनी ना कूत, बाँहना माँ मूत।
करनी कुछ नहीं, बाँहने में पेशाब करना
ऐसा व्यक्ति जो काम कुछ नहीं करता तथा अपनी लंबी-चौड़ी फरमाइशें पेश करता है, जब माँग पूरी नहीं होती, तो वह क्रोध दिखाने के लिए बाँहने में पेशाब कर देता है।
जब व्यक्ति की क्षमता न हो और बड़ी चीज की मांग करें, ऐसे समय में यह कहावत कही जाती है।
करनी-कर्म, कूत-औकात, बांहना-बांहना, मूत-मूतना

करम करै बैजू, बाँधे जाय बैजनाथ।
बैजू कुकर्म करता है, बैजनाथ पकड़ा जाता है।
अपराध कोई और करता है, पकड़ में कोई दूसरा आता है।
जब कुकर्म करने वाला व्यक्ति बच जाता है और उस के धोखे में निर्दोष व्यक्ति को दंड मिलता है, तब यह कहावत कही जाती है।
करम-कर्म, करै-करना, जाय-जाना

करम के नांगर ला भूत जोतै।
कर्म के हल को भूत जोतता है।
भाग्यवान व्यक्ति के खेत में भूत हल चला देते हैं, जिससे उसका कार्य औरों से पहले हो जाता है।
जिसका काम आप-ही-आप बन जाता है, उसके बने हुए काम को देख कर यह कहावत कही जाती है।
करम-भाग्य, नांगर-हल


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