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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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ऊँट के चोरी अउ सूपा के ओधा।
ऊँट की चोरी और सूप की आड़।
बड़े काम चोरी-छिपे नहीं होते
कोई व्यक्ति जब यह तरकीब सुझाता है कि मैं यह कार्य लोगों के देखते-देखते इस प्रकार कर दूँगा कि किसी को पता नहीं चलेगा, तो उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
सूपा-सूप, ओधा-आड़

ऊँट के मुँहू मा जीरा।
ऊँट के मुँह में जीरा।
यदि ऊँट जैसे बड़े जानवर को खाने के लिए जीरा दिया जाए, तो इससे उसका पेट नहीं भरता। अधिक भोजन करने वाले किसी व्यक्ति को यदि कम मात्रा में भोजन दिया जाए, तो उससे उस व्यक्ति को तृप्ति नहीं होती।
जब किसी व्यक्ति को कोई चीज अधिक मात्रा में चाहिए और यदि उसे वह थोड़ी मात्रा में मिले, तो यह कहावत कही जाती है।
मुंहूं-मुख, मा-में

ऊँट चरावै खाल्हे-खाल्हे।
ऊँट नीची जमीन में चराना।
ऊँट जैसे जानवर को नीची भूमि पर कितना भी छिपा कर चराया जाए, छिप नहीं सकता।
कोई व्यक्ति जब कोई काम बड़े पैमाने पर गुप्त रूप से करता है, परंतु प्रगट हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
चरावै-चरना, खाल्हे-नीचे

ए अंधेर कब तक चलही।
यह अंधेर कब तक चलेगा।
गलत कार्य आखिर कब तक चलेगा ?
जब कोई सबल व्यक्ति लगातार अत्याचार किए जाता है, तब लोग उसके अत्याचार से तंग आकर उसी चर्चा करते हुए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
ए-यह, अंधेर-गलत कार्य, चलही-चलना

एक के एक्कइस करथे।
एक का इक्कीस करता है।
किसी बात को खूब बढ़ा-चढ़ाकर कहने वाले के लिए एक का इक्कीस करने की बात कही जाती है।
बढ़ा-चढ़ाकर बात करने वालों के लिए यह कहावत प्रयुक्त की जाती है।
एक्कइस-इक्कीस, करथे-करना

एक कोलिहा हुँआ-हुँआ, त सबो कोलिहा हुँआ-हुँआ।
एक सियार हुँआ बोला, तो सभी सियार हुँआ बोलने लगे।
किसी सियार की आवाज सुनकर दूसरे सियार भी आवाज करते हैं। उसकी आवाज एक-दूसरे की सहमति का द्योतक समझी जाती है।
कोई व्यक्ति कुछ बोले और अन्य व्यक्ति बिना कुछ सोचे-विचारे उसकी हाँ-में-हाँ मिलाने लग जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
कोलिहा-सियार, हुंआ-हुंआ-सियार के चिल्लाने की आवाज, त-तो, सबो-सब

एक गिरै सहर माँ, क गिरै पहर माँ।
या तो शहर में गिरता है या पहाड़ पर।
वर्षा शहर में या पहाड़ पर होने पर उसका विशेष उपयोग नहीं हो पाता। खेती के लिए जहाँ पानी अधिक चाहिए, वहाँ पर्याप्त वर्षा न होकर अन्यत्र भी हो जाता है।
किसी वस्तु की आवश्यकता एक स्थान पर हो, लेकिन वहाँ वह उपलब्ध न हो और अन्यत्र बरबाद होती रहे, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
पहर-पहाड़, गिरै-गिरना, सहर-शहर

एक घरही रहै, तेमाँ बइला चढ़ के आवै।
एक घर वाला व्यक्ति है, उस पर भी बैल पर चढ़कर आता है।
व्यक्ति अपनी जाति का गाँव में अकेला है, तब भी वह अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए बैल पर चढ़ कर आता है।
दुर्बल व्यक्ति के द्वारा झूठा प्रदर्शन करने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
घरही-घर, रहै-रहना, तेमां-उसमें, बइला-बैल, चढ़-चढ़ना, आवै-आना

एक छाक पिइस त मतवार, दू छाक पिइस त मतवार।
एक घूँट पीए तो भी मतवाले, दो घूँट पीए तो भी मतवाले।
कोई व्यक्ति शराब चाहे थोड़ी पीए या ज्यादा, देखने वाले तो उसे शराबी ही कहेंगे। उन्हें इससे क्या मतलब कि उसने शराब कितनी पी है?
जब कोई व्यक्ति उदाहरणार्थ यह कहता है कि उसने तो एकाध बार ही झगड़ा किया है, तब भी लोग उसे झगड़ालू कहते हैं। किसी भी कुकर्म का थोड़ा भी किया जाना आदमी को कुकर्मी बना देता है।
छाक-घूंट, पिइस-पीना, मतवार-शराबी, दू-दो

एक जंगल माँ दू ठिन बघवा नइ रहै।
एक जंगल में दो बाघ नहीं रहते।
दो शक्तिशाली आपस में मिलकर नहीं रह सकते। प्रत्येक एक दूसरे को समाप्त कर देने का प्रयत्न करता है, ताकि उसकी ही अधिकार रहे।
दो शक्तिशाली लोगों के विरोध को देखकर यह कहावत कही जाती है।
दू-दो, ठिन-नग, बघवा-बाघ, नइ-नहीं, रहै-रहना


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