एक हाथ लंबी ककड़ी का बीज नौ हाथ लंबा नहीं हो सकता।
यह बात केवल बढ़ा-चढ़ाकर कही गई है, जो असंभव है। इसी प्रकार, कोई व्यक्ति जब किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहता है, तब यह कहावत कही जाती है।
हांत-हाथ, बीजा-बीज
एक हाँत माँ रोटी नइ पोवाय।
एक हाथ से रोटी नहीं बनती।
जिस प्रकार एक हाथ से रोटी नहीं बन सकती, उसी प्रकार दो पक्षों के बिना झगडा नहीं हो सकता।
झगड़ा दोनों ओर से होता है, ऐसी ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
हाँत-हाथ, पोवाय-बनती
ओखी के खोखी, नकटी के जूड़ी।
बहाने की खाँसी, नकटी की सर्दी।
नकटी स्त्री सर्दी होने का बहाना कर के खांसती है।
जब कोई व्यक्ति झूठ-मूठ का बहाना बनाकर अपना प्रयोजन सिद्ध करना चाहता है, तब यह कहावत कही जाती है।
ओखी-बहाना, खोखी-खाँसी, जूड़ी-सर्दी
ओढ़े बर ओढ़ना नहिं, बिछाय बर बिछौना।
बिहाव बर बाट देखै, रतनपुर के कैना।
ओढ़ने-बिछाने के लिए तो वस्त्र नहीं है और रतनपुर की कन्या शादी का बाट जोह रही है। घर में गरीबी है, तब भी लड़की बड़े शहर में बसने के कारण शहरी बड़प्पन मानते हुए शादी का इंतजार करती है।
जब कोई गरीब व्यक्ति अपने बड़प्पन की बातें (वंश, जाति, स्थान, आदि की) करता है, तो यह कहावत कही जाती है। किन्हीं दिनों शादी-ब्याह में कुलीन वंश में शादी करने की बात कही जाती थी, किंतु इधर पैसों का महत्व बढ़ जाने से कुल आदि की बातों की ओर लोग ध्यान नहीं देते।
ओढ़े-ओढ़ना, बर-के लिए, ओढ़ना-ओढ़ने का चादर, बिछाय-बिछाना, बिछौना-बिछाने का चादर
ओतिहा ला धोतिया गरू।
आलसी को धोती भी वजनी।
आलसी व्यक्ति को अपने पहनने के लिए धोती भी भारस्वरूप लगती है।
आलसी व्यक्ति के लिए हर काम भारी पड़ता है, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
ओतिहा-आलसी, गरू-वजनी
ओरिया के पानी बरेंडी नइ चढ़ै।
ओलाती (छप्पर के नीचे का भाग) का पानी बरेंडी (छप्पर के ऊपर का भाग) पर नहीं चढ़ता।
छप्पर के ऊपरी हिस्से का पानी ढुलककर छप्पर के नीचे की ओर आता है। ओलाती नीची होने के कारण पानी ऊपर नहीं चढ़ सकता।
जो कार्य कदापि नहीं हो सकता, उसके होने के संबंध में यदि कोई कहे, तो उसकी बात को गलत सिद्ध करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
ओरिया-छप्पर का निचरला हिस्सा, जिससे वर्षा का पानी नीचे गिरता है, बरेंडी-छप्पर का ऊपरी भाग, नइ-नहीं, चढ़े-चढ़ना
ओले अइन, पोले गइन।
ओले के समान आए और घुल कर नष्ट हो गए।
ओले गिरते हैं, जिससे कई प्रकार की क्षति होती है, परंतु वे घुलकर जल्दी समाप्त भी हो जाते हैं।
जो जोर-शोर से कोई कार्य प्रारंभ करता है और कुछ दिनों बाद कार्य बंद कर देता है, उस के लिए यह कहावत प्रयक्त होती है।
अइन-आए, पोले-घुल जाना, गइन-जाना
ओस चटाय माँ लइका नइ जिए।
ओस चटने से बालक नहीं जीता।
किसी बालक को जीवित रखने के लिए दूध, पानी, आदि की आवश्यकता होती है, ओस चाटने से वह जीवित नहीं रह सकता।
वास्तविकता को छिपाकर कोई किसी को भुलावे में डालकर कोई काम करना चाहे, तो उसमें उसे सफलता नहीं मिल सकती।
चटाय-चटाना, लइका-बच्चा, नइ-नहीं, जिए-जीना
औंघात रहे जठना पागे।
ऊँघ रहा था, बिस्तर पा गया।
अनुकूल परिस्थिति अनायास ही मिल गई।
किसी व्यक्ति की इच्छा जिस काम को पूरा करने की हो, उस के लिए उसे यदि अनुकूल या उपयुक्त अवसर और साधन उपलब्ध हो जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
जठना-बिस्तर औंघात-उंघना, पागे-पा लिया
कथरी ओढ़े, घीव खाय।
कत्थर ओढ़ना और घी खाना।
जो व्यक्ति फटे-पुराने वस्त्र पहनकर लोगों को भुलावे में डालता है कि गरीबी के कारण उसकी ऐसी स्थिति है, जबकि वास्तविकता इस के विरूद्ध हो, अर्थात् घी खाता हो, तब उसके लिए कहा जाएगा कि वह अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर लोगों को भुलावे में डालता है। ऐसे बहानेबाजों के लिए यह कहावत कही जाती है।
वास्तविकता को छुपाने वाले लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।