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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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अंडा के लकड़ी ला हंडा फोरे माँ का लगे हे।
अंडी की लकड़ी को हंडा फोड़ने फोड़ने में क्या लगता है।
अंडी की लकड़ी बहुत ही कमजोर तथा पतली होती है। उससे फोड़ी जाने वाली वस्तु पीतल का बड़ा भारी गुंडी हो, तो उस पर उसके आघातों कोई असर नहीं होता, उल्टे वह लकड़ी ही टूट जाती है।
जब कोई सामान्य व्यक्ति किसी बहुत बड़े काम को संपन्न करने की बात करता है, तब उसे लज्जित करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
हंडा-पीतल का बड़ा गुंड, फोरे-फोड़ना।

अंडा बन माँ बिलरा बाघ।
अंडी के जंगल में बिलौटा ही बाघ।
मूर्खो के बीच अल्पज्ञानी भी श्रेष्ठ समझा जाता है।
जहाँ किसी बात को न समझने वाले लोग होते हैं ( जो उस बात को न समझने के कारण अंधों के समान हैं), वहाँ उसे थोड़ा-बहुत समझने वाला व्यक्ति अंधों के बीच काने समान हो जाता है। किसी बात को कुछ भी न समझने वालों के बीच उसे थोड़ा समझने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
बन-वन, बिलरा- बिलौटा

अँधरा पादै, भैरा जोहारै।
अंधा पादे, बहरा जुहार करे।
जब कोई व्यक्ति किसी की बात को कुछ का कुछ समझता है, तब यह कहावत कही जाती है।
जब कोई व्यक्ति किसी को अपनी बात समझाने का भरसक प्रयास करता है, परंतु सामने वाला उस बात को किसी दूसरे अर्थ में ले जाकर समझ लेता है, तब यह कहावत कही जाती है।
पादै-अधोवायु छोड़ना, जोहारै-नमस्ते करना

अँधरा बर दइ सहाय।
अंधे का ईश्वर सहायक।
ईश्वर निर्बल की सहायता करता है।
जब किसी असहाय व्यक्ति की समस्या हल हो जाती है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
अंधरा-अंधा, दइ-भगवान

अँधरी बछिया, पैरा के गोड़ाइत।
अंधी बछिया के लिए पैरे की रस्सी का बंधन।
यदि किसी अंधी बछिया के पैर में कमजोर रस्सी बँधी हुई हो, तो वह उसे न देख पाने के कारण मजबूत समझकर तोड़कर नहीं भागती।
जब कोई व्यक्ति इसी प्रकार भ्रमवश वास्तविकता को न समझकर अपने को बँधा हुआ अनुभव करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
पैरा-धान के सूखे डंठल, गोड़ाइत-पैर में लगाया गया रस्सी का बंधन

अँधरा खोजै, दू आँखी।
अंधा खोजे, दो आँखें।
मनचाही वस्तु मिल जाने पर अत्याधिक प्रसन्नता होती है।
किसी व्यक्ति को उस के लिए आवश्यक वस्तु सहज ही उपलब्ध हो जाने या उसकी आशा होने पर इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
अंधरा-अंधा, आंखी-आंख

अँधवा माँ, कनवा राजा।
अंधों में काना राजा।
मूर्खो के बीच अल्पज्ञानी भी श्रेष्ठ समझा जाता है।
जहाँ किसी बात को न समझने वाले लोग होते हैं ( जो उस बात को न समझने के कारण अंधों के समान हैं), वहाँ उसे थोड़ा-बहुत समझने वाला व्यक्ति अंधों के बीच काने समान हो जाता है। किसी बात को कुछ भी न समझने वालों के बीच उसे थोड़ा-मोड़ा समझने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
अंधवा-अंधा, कनवा-काना

अइस रे मुड़ढ़क्की रोग, बाढ़े बेटा ला लागे जोग।
सिर ढकने वाला रोग आने से पुत्र को योग लग गया।
शादी होने के बाद जवान पुत्र अपनी पत्नी के साथ अधिक रहने के कारण परिवार के अन्य सदस्यों को कम समय दे पाता है, जिससे वह अन्य लोगों की आलोचना का पात्र होता है।
पत्नी के प्रति विशेष आकर्षण होने से आगे चलकर ऐसे लोगों को 'पत्नी का गुलाम' कहा जाता है।
मुड़ढ़क्की-सिर ढकने वाला।

अइसन बहुरिया चटपट, खटिया ले उठै लटपट।
बहू ऐसी चंचल है कि वह खाट से मुश्किल से उठ पाती है।
ऐसी बहू, जो घर का कार्य समय में नहीं कर पाती, क्योंकि वह सुबह देर तक सोती रहती है, खाट से मुश्किल से उठ पाती है।
आलसी बहुओं पर व्यंग कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
अइसन-ऐसी, बहुरिया-बहू

अइसन होतिस कातन हारी, काहे फिरतिस टाँग उघारी।
ऐसी कातने वाली होती, तो नंगे बदन क्यों घूमती।
यदि काम करने में चतुर होते, तो लोग सम्मान करते।
यदि कोई किसी बात की जानकारी रखता हो, तो उसे उसके संबंध में किसी अन्य से कुछ पूछ्ने की आवश्यकता नहीं होती, परंतु उसे दूसरे व्यक्ति से उस बात की जानकारी लेते देखकर उसके अनजान होने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
अइसन-ऐसा ही, होतिस-होना, कातन-कातना, फिरतिस-फिरना, टांग-पैर, उघारी-नंगा बदन


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