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Bharatiya Itihas Kosh

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इब्न बतूता
एक विद्वान् अफ्रीकी यात्री, जो १३३३ ई. में सुल्तान मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में भारत आया। सुल्तान ने उसका स्वागत किया और उसे दिल्ली का प्रधान काजी नियुक्त कर दिया। १३४२ ई. में सुल्तान के राजदूत के रूप में चीन जाने तक वह इस पद पर बना रहा। उसने अपनी भारत-यात्रा का बहुमूल्य वर्णन लिखा है, जिससे सुल्तान मुहम्मद तुगलक के जीवन और काल के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। उसका वर्णन अतिशयोक्तियों से भरा होने पर भी सामान्य रीति से विश्वसनीय है। उसने, सुल्तान द्वारा जिन कारणों से राजधानी को दिल्ली से हटाकर दौलताबाद ले जाने का आदेश दिया गया और जिस रीति से दिल्ली को पूरी तरह से खाली कराया गया, उसका जो वर्णन किया है, उसे उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किया जा सकता है।

हब्राहीम
गोलकुंडा के कुतुबशाही वंश का तीसरा शासक, जिसने १५५० से १५८० ई. तक शासन किया। उसने विजयनगर साम्राज्य के विरुद्ध बीजापुर, बराड़ तथा अहमदनगर के सुल्तानों से समझौता कर लिया और तालीकोट की लड़ाई (१५५६ ई.) में उसे हरा देने तथा विजयनगर को उजाड़ देने के बाद लूट-खसोट में हिस्सा बँटाया। इब्राहीम अपनी प्रजा के साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करता था और अपने राज्य में उसने हिन्दुओं को भी ऊँचे पद दे रखे थे।

इब्राहीम
सैयद बंधुओं ने १७१९ ई. में जिन चार नाममात्र के मुगल बादशाहों को दिल्ली की गद्दी पर बिठाया था, उनमें अंतिम। वह बहादुरशाह प्रथम (१७०७-१२ ई.) के तीसरे पुत्र रफी-उस-शान का लड़का था। सैयद बंधुओँ ने कुछ समय बाद उसे गद्दी से उतार दिया और मार डाला। उस समय दिल्ली के बादशाहों को बनाना और बिगाड़ना सैयद बंधुओं के हाथ में था।

इब्राहीम आदिल शाह प्रथम, इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय
इब्राहीम आदिल शाह प्रथम- बीजापुर के आदिलशाही वंश का चौथा सुल्‍तान ((1534-57 ई.)। इस वंश के प्रथम सुल्‍तान ने शिया धर्म अंगीकार कर लिया था किंतु इसने शिया धर्म अस्‍वीकार कर दिया। वह फारस से आये अमीरों के स्‍थान पर दक्खिन से आए अमीरों को पसंद करता था। इसका वजीर असद खां अत्‍यंत योग्‍य था। उसने विजयनगर की एक सप्‍ताह की यात्रा की और बहुत से उपहारों के साथ वापस लौटा। उसने अपने राज्‍य पर बिदर, अहमदनगर तथा गोलकुंडा के सुल्‍तानों के संयुक्‍त हमले को विफल कर दिया। उसके शासनकाल में अनेकानेक षड्यंत्र रचे गए। बुढ़ापे में वह बहुत अधिक शराब पीने लगा और उसी से उसकी मृत्‍यु हो गई। इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय - बीजापुर के आदिलशाही वंश का छठा सुल्तान। उसने १५८० ई. से १६२६ ई. तक शासन किया। उसकी माँ अहमदनगर की प्रसिद्ध शाहजादी, चाँद बीबी थीं। इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय जिस समय गद्दी पर बैठा, नाबालिग था और राज्य का प्रबंध १५८४ ई. तक उसकी माँ देखती रही। १५८४ ई. में चाँद बीबी अहमदनगर वापस लौट गयी। १५९५ ई. में इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय ने अहमदनगर के सुल्तान को पराजित कर मार डाला। परंतु शीघ्र ही दोनों राज्यों को मुगल साम्राज्य द्वारा आत्मसात् कर लिये जाने की योजना का सामना करना पड़ा।
इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय बहुत ही उदार शासक था। उसने अपने राज्य में हिन्दू और ईसाई प्रजा को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दे रखी थी। उसने प्रशासन में कई सुधार किये; भूमि का बन्दोबस्त ठीक किया, गोआ के पुर्तगालियों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये, अपने राज्य का विस्तार मैसूर की सीमा तक किया, बीजापुर में कई सुंदर इमारतें बनवायीं और प्रसिद्ध इतिहासकार मुहम्मद कासिम को-जो फरिश्ता के उपनाम से प्रसिद्ध है-आश्रय दिया।

इब्राहीम खाँ
१६८९-९७ ई. के मध्य बंगाल का मुगल सूबेदार। वह शांत स्वभाव का बूढ़ा आदमी था और अंग्रेजों के प्रति मित्रता का भाव रखता था। उसके पहले के सूबेदार शाइस्ता खाँ (दे.) ने अंग्रेजों को बंगाल से निकाल दिया था। इब्राहीम खां ने उन्हें वापस बुला लिया और जाव चारनाक (दे.) को उस स्थान पर बसने की इजाजत दे दी जहाँ बाद में कलकत्ता नगर विकसित हुआ। इब्राहीम खाँ प्रशासन के कार्यों की बहुत उपेक्षा करता था, इसीलिए मिदनापुर जिले के जमींदार शोभासिंह को बगावत करने का मौका मिल गया। उसने इस बगावत को तत्काल नहीं दबाया। अंग्रेजों, फ्रांसीसियों और डच लोगों को बंगाल में अपनी बस्तियों की किलेबंदी करने की इजाजत देकर, ताकि वे शोभासिंह का मुकाबला कर सकें, उसने स्थिति को और शोचनीय बना दिया। इब्राहीम खाँ की इन गलतियों से बादशाह औरंगजेब नाखुश हो गया और उसने १६९७ ई. में उसे बंगाल की सूबेदारी से हटा दिया।

इब्राहीम खाँ गार्दी
एक भाड़े का सैनिक, जिसे व्रसी (दे.) ने स्वयं प्रशिक्षित किया और जो उसके तोपखाने का प्रधान हो गया। १७५७ ई. में उसने निजाम की नौकरी कर ली, परंतु अगले साल वह पेशवा की सेवा में चला गया। उसने १७६० ई. में उदगिर (दे.) की लड़ाई में निजाम की फौजों के खिलाफ मराठों को विजयी बनाने में भारी योगदान दिया। वह पानीपत (दे.) की तीसरी लड़ाई में ९००० सिपाहियों तथा ४० तोपों के साथ मराठों की ओर से लड़ा। यद्यपि शुरू में उसने शत्रु की फौजों को पछाड़ दिया, तथापि अंत में इस युद्ध में मराठों की पराजय हुई और विजयी अफगानों ने उसे बंदी बना लिया तथा मार डाला।

इब्राहीम लोदी
दिल्ली के लोदी वंश (दे.) का तीसरा सुल्तान (१५१७-२६ ई.)। अपने शासन काल के शुरू में उसने राजपूतों से ग्वालियर छीन लिया। परंतु उसने अफगान सरदारों को कड़े नियंत्रण में रखने की जो नीति अपनायी तथा उनके साथ जिस प्रकार का कठोर व्यवहार किया उससे वे उसके विरोधी बन गये। एक असंतुष्ट सरदार, पंजाब के हाकिम दौलत खाँ लोदी ने बाबर को, जो अफगानिस्तान का बादशाह बन बैठा था, आमंत्रित किया, कि वह आकर इब्राहीम की गद्दी छीन ले। बाबर ने २१ अप्रैल १५२६ ई. को यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उसने पानीपत (दे.) की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हरा दिया और मार डाला। इब्राहीम लोदी दिल्ली का अंतिम सुल्तान था।

इब्राहीम शाह शर्की
जौनपुर का सुल्तान (१४०२-३६ ई.) और शर्की वंश का सबसे योग्य शासक। हिन्दू धर्म के प्रति वह अत्यंत असहनशील था। वह एक सुसंस्कृत व्यक्ति था और कला और साहित्य का संरक्षक था। उसने जौनपुर को मुसलिम विद्या का महत्त्वपूर्ण केन्द्र बना दिया और बहुत-सी भव्य इमारतें बनवाकर शहर को सुंदर बनाया। उसने जो इमारतें बनवायीं, उनमें अटाला मसजिद सबसे मुख्य है जो १४०८ ई. में पूरी हुई।

इब्राहीम सूर
सूर वंश (दे.) का चौथा बादशाह, जिसने १५५५ ई. में बहुत थोड़े समय के लिए शासन किया। हुमायूं द्वारा दिल्ली पर फिर से मुगल शासन स्थापित किये जाने पर इब्राहीम सूर उड़ीसा भाग गया। वहाँ वह १५६७ ई. के आसपास मार डाला गया।

इमादशाही वंश
स्थापना लगभग १४९० ई.में बराड़ के फतहुल्ला (दे.) द्वारा जिसको इमादुलमुल्क कहते थे। बहमनी राज्य (दे.) से अपने को अलग कर वह स्वतंत्र शासक बन बैठा। इस वंश ने चार पीढ़ियों, १४९० ई. से १५७४ ई. तक राज्य किया। १५७४ ई. में बराड़ पर अहमदनगर ने कब्जा कर लिया।


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