एक उपाधि, जो १८७६ ई. में इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया को ब्रिटिश संसद (पार्लियामेण्ट) द्वारा प्रदान की गयी। १८५८ ई. में ब्रिटिश सरकार ने जब कम्पनी से शासन-सत्ता ग्रहण की, तब भारतीय जनता और भारतीय राजाओं को ब्रिटिश सिंहासन के प्रति राजभक्त बनाने के उद्देश्य से इंग्लैण्ड की महारानी को यह पदवी प्रदान की गयी।
सयाजी राव प्रथम
१७७१ से १८७६ ई.में इंग्लैण्डकी महारानी विक्टोरियाको ब्रिटिश संसद (पार्लियामेण्ट) द्वारा प्रदान की गयी। १८५८ ई.में ब्रिटिश सरकारने जब कम्पनीसे शासन-सत्ता ग्रहण की, तब भारतीय जनता और भारतीय राजाओंको ब्रिटिश सिंहासनके प्रति राजभक्त बनानेके उद्देश्यसे इंग्लैण्डकी महारानीको यह पदवी प्रदान की गयी।
सयाजी राव प्रथम
१७७१ से १७७८ ई. तक बड़ौदा रियासत का शासक। बड़ौदा की गद्दी के लिए उनके भाइयों ने विरोध खड़ा किया और इस पारस्परिक संघर्ष के फलस्वरूप वहाँ के शासन प्रबन्ध में अत्यधिक कुव्यवस्था फैल गयी।
सयाजी राव द्वितीय (गायकवाड)
१८१९ ई. से १८४७ ई. तक बड़ौदा का शासक।
सयाजी राव तृतीय (गायकवाड़)
१८७५ से १९३९ ई. तक बड़ौदा का शासक रहा। जब वह नितान्त बालक था, तभी १८७५ ई. में अंग्रेजी सरकार ने मल्हार राव गायकवाड़ को गद्दी से हटाकर उसको सिंहासनासीन किया। उसके शैशवकाल में सर टी. माधव राव ने राज्य का शासन भार संभाला। वयस्क होने पर सयाजीराव ने राज्य का सारा प्रबंध अपने हाथों में ले लिया। प्रशासकीय कुशलता के कारण उसकी गणना सबसे प्रतिभाशाली भारतीय नरेश के रूप में की जाती है। उसके कुशल निर्देशन में बड़ौदा समस्त देशी रियासतों में सबसे अधिक प्रगतिशील राज्य बन गया। उसने कई विख्यात भारतीयों को राज्य के सेवार्थ नियक्त किया जिनमें रमेशचन्द्र दत्त, जो कुछ वर्षों तक दीवान भी रहे, अरविन्द घोष, जो बड़ौदा कालेज के प्रधानाध्यापक थे, तथा सर कृष्णामाचारी जैसों के नाम उल्लेखनीय हैं। १९३९ ई. में सयाजी राव तृतीय की मृत्यु हुई।
सरकार
शेरशाह के शासनकाल की सबसे छोटी प्रशासकीय इकाई। शेरशाह ने अपने समस्त साम्राज्य को परगनों में विभक्त किया। अनेक परगनों को मिलाकर सरकार (जिला) बनती थी, जहाँ सेना रहती थी। सम्राट अकबर ने भी इस शासकीय इकाई को कायम रखा, किन्तु ऐसी कई इकाइयों अर्थात सरकारों को मिलाकर उसने सूबों का गठन किया। अंग्रेजों की शासकीय व्यवस्था में इन्हीं सरकारों को जिलों की संज्ञा दी गयी।
सरकार उत्तरी
कर्नाटक प्रदेश के एक जिले का नाम। निजाम सलावतजंग ने इसे फ्रांसीसियों के नियंत्रण में रख दिया था, पर १७५८ ई. में अंग्रेजों ने इस पर अधिकार लिया।
सरकार, सर जदुनाथ (१८७०-१९६१ ई.)
सुप्रसिद्ध इतिहासकार। वे बंगाल में पैदा हुए और उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कालेज में हुई थी। उन्होंने अध्यापन को ही अपने जीवन का मार्ग चुना और अपने जीवन का अधिकांश भाग पटना में इतिहास के प्राध्यापक पद पर आसीन रहकर व्यतीत किया। १९२६ ई. से एक सत्र तक वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। उनकी कृतियों में शिवाजी, औरंगजेब का जीवनचरित और मुगल साम्राज्य का पतन (सभी अंग्रेजी में) विद्वत्समाज में प्रामाणिक ग्रंथ माने जाते हैं। उनकी विद्वत्ता और पाण्डित्य से प्रभावित होकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की थी। उनकी मृत्यु कलकत्ते में १९६१ ई. में हुई।
सरगौली (सगौली) की संधि
द्वारा १८१६ ई. में गोरखा अथवा नेपाल युद्ध (दे.) की समाप्ति हुई। इस संधि के अनुसार गोरखा दरबार ने काठमाण्डू में एक अंग्रेज रेजीडेन्ट रखना स्वीकार कर लिया और उन्हें कुमायूँ तथा गढ़वाल के जिले अंग्रेजों को देने पड़े।