logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Bharatiya Itihas Kosh

Please click here to read PDF file Bharatiya Itihas Kosh

सोमेश्वर प्रथम
उपनाम आहवमल्ल, कल्याणी के चालुक्य वंश का पाँचवाँ शासक, जिसने १०४१ से १०७२ ई. तक राज्य किया। उसने कल्याणी की नींव डाली और उसे ही अपनी राजधानी बनाया। उसे चोल सम्राट् राजेन्द्र प्रथम (दे.) से संघर्ष करना पड़ा, जिसे उसे कोप्‍पल युद्ध (दे.) में पराजित किया। राजेन्द्र प्रथम के उत्तराधिकारी वीर राजेन्द्र ने भी उसे कूडल संगमम् के युद्ध में हराया। इन पराजयों के बावजूद उसने चालुक्य वंश की शक्ति को सुरक्षित रखा।

सोमेश्वर द्वितीय
कल्याणी के चालुक्य सम्राट् सोमेश्वर प्रथम का पुत्र और उत्तराधिकारी। उसने केवल चार वर्ष (१०७२-७६ ई.) राज्य किया और तदुपरान्त उसके भाई विक्रमादित्य षष्ठ (दे.) ने उसको अपदस्थ कर दिया।

सोमेश्वर तृतीय
कल्याणी के चालुक्य वंश का आठवाँ शासक और सातवें शासक विक्रमादित्य षष्ठ का पुत्र तथा उत्तराधिकारी। उसने ११२६ से ११३८ ई. तक राज्य किया और उसका शासनकाल शान्तिपूर्ण रहा। वह राजशास्त्र, न्याय व्यवस्था, वैद्यक, ज्योतिष, शस्त्रास्त्र, रसायन तथा पिंगल सदृश विषयों पर अनेक ग्रन्थों का रचयिता बताया जाता है। किन्तु उसकी बहुमुखी प्रतिभा एवं विद्वत्ता उसकी सैन्य संगठन शक्ति में सहायक न हो सकी। उसी के शासनकाल में अधीनस्थ सामन्तों ने चालुक्यों की प्रभुता त्यागकर स्वतन्त्र शासन करना प्रारम्भ कर दिया, फलस्वरूप चालुक्य शक्ति का ह्रास होने लगा।

सोलंकी
राजपूतों की एक शाखा, जिन्हें चालुक्य भी कहा जाता है। (दे. 'चालुक्य')।

सोलिंगर का युद्ध
यह द्वितीय मैसूर-युद्ध (दे.) (१७८०-८४ ई.) के दौरान १७८१ ई. में मैसूर के शासक हैदरअली तथा अंग्रेजों के बीच हुआ था। इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई।

सौराष्ट्र (सुराष्ट्र)
देखिये, 'काठियावाड़'।

स्‍कन्‍द गुप्‍त
गुप्तवंश का अन्तिम महान् सम्राट्। ४५५ ई. में वह अपने पिता कुमारगुप्त का उत्तराधिकारी हुआ। जब वह राजकुमार था, तभी उसने पुष्यमित्रों के आक्रमण को विफल कर दिया और तदुपरान्त सिंहासनासीन होने पर उसने हूण आक्रामकों को भी मार भगाया। अपने १३ वर्षों के शासन काल (४५५-६८ ई.) में वह निरन्तर युद्धों में व्यस्त रहा, क्योंकि हूणों ने बार-बार आक्रमण किये, जिन्हें विफल करने में राज्य की आर्थिक स्थिति को भारी आघात पहुँचा।
अपने राज्यकाल के आरंभिक दिनों में उसने कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल के अन्तिम वर्षों में प्रचलित कम तौल के सिक्के गलवा करके प्रामाणिक भार के शुद्ध सोने, चाँदी तथा ताँबे के सिक्के प्रचलित किये। किन्तु हूणों से निरन्तर युद्ध करने के कारण उसे भी राज्यकाल के अन्तिम वर्षों में मुद्राओं में भारी मात्रा में मिलावट करनी पड़ी। फिर भी उसने काठियावाड़ की सुदर्शन झील के विशाल बाँध को पुनः निर्मित कराने के लिए धन उपलब्ध किया। इस झील का निर्माण सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त मौर्य (दे.) ने कराया था, उसके पौत्र अशोक (दे.) ने उस झील से सिंचाई के लिए नालियाँ बनवायीं। तदुपरान्त शक महाक्षत्रप रुद्रदामन (दे.) ने इसका जीर्णोद्धार कराया। स्कन्दगुप्त के राज्यकाल में काठियावाड़ में उसके प्रान्तीय शासक पर्णदत्त ने ४५६ ई. में उक्त बाँध का जर्णोद्धार कराकर उसे दृढ़तर किया और दो वर्षों के उपरान्त पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित ने इस बाँध पर एक विष्णु मन्दिर का निर्माण कराया। महान् गुप्त सम्राटों में स्कन्दगुप्त अन्तिम प्रतापी राजा था।

स्काटमान्क्रीफ कमीशन
इस आयोग की स्थापना १९०० ई. में तत्कालीन वाइसराय लार्ड कर्जन ने की। इसका उद्देश्य सम्पूर्ण भारतवर्ष में सिंचाई की सुविधा के लिए योजना बनाना था। लार्ड कर्जन ने आयोग के इस प्रस्ताव पर स्वीकृति दे दी कि ३,००,००,००० पौण्ड (तीन करोड़ पौण्ड के अनुमानित व्यय से ६५ लाख एकड़ भूमि की सिंचाई-व्यवस्था की जाय।

स्काटिश चर्च कालेज
कलकत्ता स्थित यह विद्यालय भारतीय शिक्षा में रेवरेन्ड डॉं. अलेक्जेन्डर डफ (दे.) नामक पादरी के प्रयासों का स्मारक है। प्रारम्भ में इसका नाम डफ कालेज था और इसकी स्थापना १७३० ई. में हुई। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में इसका नाम स्काटिश चर्च कालेज पड़ा। भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसारार्थ ईसाई मिशनों और मिशनरियों के महत्त्वपूर्ण योगदान के ज्वलन्त उदाहरणों में यह विद्यालय भी है।

स्कूल बुक सोसाइटी
इस समिति की स्थापना १८१८ ई. में डेविड हेयर नामक अंग्रेज के प्रयास से कलकत्ता में हुई। इस समिति का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी पुस्तकों का भारत में ही मुद्रण, प्रकाशन तथा अल्प मूल्य में विक्रय करना था।


logo