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Bharatiya Itihas Kosh

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शम्सुद्दीन अतगा खाँ
इसको बादशाह अकबर ने १५६१ ई. में प्रधानमंत्री नियुक्त किया। किन्तु अकबर की दूध-माँ महम अनका और उसके पुत्र अदहम खाँ को यह नियुक्ति नागवार हुई। एक दिन अदहम खाँ आगा खाँ के कार्यालय में घुस गया और कटार से वार करके उसकी हत्या कर दी, पश्चात् उस दुष्ट ने स्वयं अकबर के ऊपर भी आक्रमण किया। किन्तु अकबर ने उसे एक ही मुक्के के प्रहार से धराशायी कर दिया। तदुपरान्त किले की दीवार से नीचे फेंक कर उसे मार डाला गया।

शम्सुद्दीन बहमनी
बहमनी वंश का सातवाँ सुल्तान। अपने भाई गयासुद्दीन के उपरान्त १३९७ ई. में वह सिंहासनासीन हुआ, किन्तु कुछ काल उपरान्त ही उसे गद्दी से उतार और अन्धा करके कारागार में डाल दिया गया।

शम्सुद्दीन मुजफ्फ़र शाह
अबीसीनिया का निवासी, जिसका मूल नाम सीदी बदर था। बंगाल में इलियास वंश के अन्तिम शासक नासिरुद्दीन महमूद द्वितीय के राज्यकाल में वह उच्च पदाधिकारी बना। १४९० ई. में अपने स्वामी नासिरुद्दीन द्वितीय की हत्या करके स्वयं गद्दी पर बैठा और उसने शम्सुद्दीन मुजफ्फर शाह की उपाधि धारण की। वह अत्याचारी शासक सिद्ध हुआ और समूचे राज्य में अराजता फैल गयी। स्थिति असह्य हो जाने पर बंगाल के सरदारों ने उसके मंत्री अलाउद्दीन हुसैन के नेतृत्व में शम्सुद्दीन को १४९३ ई. में लगभग चार महीने तक राजधानी गौड़ में घेरे रखा परन्तु इसी बीच उसकी मृत्यु हो गयी।

शम्से-सिराज, अफ़ीफ
फारसी में 'तारीखे फीरोजशाही' तुगलक (दे.) के राज्यकाल की ऐतिहासिक घटनाओं का समसामयिक वर्णन है। शम्से-‍िसराज फीरोजशाह की सेवा में उच्च पदाधिकारी था। उसका विवरण सुल्तान के राज्यकाल का आधिकारिक इतिहास माना जा सकता है।

शरत् चन्द्र दास (१८४९-१९१७)
बंगाल के एक निर्धन परिवार में जन्म और सामान्य स्कूल-अध्यापक की भाँति जीवनारंभ। उन्हें दुस्साहसिक कार्य करना और ज्ञान अर्जित करना बहुत प्रिय था। इसी का फल था कि उन्होंने १८७९ ई. में तिब्‍बत की यात्रा की। यह उस समय की बात है जब किसी भी गैर-तिब्बती का तिब्‍बत में प्रवेश निषिद्ध था। सर फ्रांसिस यंगहस्बैण्ड जब तिब्बत गये, उससे २५ वर्ष पहले की यह घटना है। इस प्रकार शरत् चन्द्र को ही यह सौभाग्य प्राप्त है कि उन्होंने आधुनिक युग में लोगों को तिब्बत और उसकी राजधानी ल्हासा के बारे में जानकारी दी। वे १८८१ ई. में पुनः तिब्बत गये। इसके बाद १८८४ में सिक्किम तथा १८८५ में पेकिंग भी गये। उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी और सुम्पा काहन लिखित 'पाग साम फोन जाग' पुस्तक का अनुवाद अंग्रेजी में किया। उन्होंने अंग्रेजी में सुप्रसिद्ध पुस्तक 'इंडियन पंडित्स इन लैण्ड आफ स्नो' (हिमाच्छादित देश में भारतीय पंडित) लिखी। इसी पुस्तक से दुनिया को मालूम हुआ कि मध्ययुग में किस प्रकार भारतीय बौद्ध भिक्षु तिब्बत गये और किस प्रकार वहाँ उन्होंने भारतीय धर्म एवं संस्कृति का प्रसार किया। शरत् चंद्र ने तिब्बती-अंग्रेजी कोश (१९०२) की भी रचना की जो एक मानक ग्रंथ माना जाता है।

शरिय तुल्ला, हाजी
बंगला देश के फरीदपुर जिले का मुसलमान नेता, जिसने १९ वीं शताब्दी के प्रारंभ में पूर्वी बंगाल में इस्लाम धर्म में सुधार करने के लिए आन्दोलन किया। उनका यह आन्दोलन फरायजी आन्दोलन के नाम से विख्यात हुआ। तदुपरांत इसने कृषक आन्दोलन का रूप धारण कर लिया, किन्तु साधारणतया यह शान्तिमय रहा। उनकी गणना पूर्वी बंगाल के मुसलमानों में सुधारवादी आन्दोलन के अग्रणी व्यक्तियों में की जाती है।

शशांक
बंगाल का यशस्वी शासक, जिसने उस प्रदेश की सीमाओं के बाहर अपना राज्य विस्तार किया। उसका वंश अज्ञात है और गुप्तवंश के साथ उसको सम्बन्धित करना केवल अनुमान मात्र है। उसकी उत्पत्ति चाहे जिस वंश में भी हुई हो, इतना निश्चय है कि ६०६ ई. के पूर्व ही वह गौड़ अथवा बंगाल का शासक बन चुका था और उसकी राजधानी कर्णसुवर्ण थी, जिसकी पहचान मुर्शिदाबाद जिले के अंतर्गत रांगामाटी नामक कसबे से की गयी है। यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि दक्षिणी और पूर्वी बंगाल उसके राज्य के अंतर्गत थे अथवा नहीं, पर पश्चिम में उसका राज्य मगध तक और दक्षिण में उड़ीसा की चिलका झील तक अवश्य था। पश्चिम की ओर साम्राज्य-विस्तार करने के प्रयास में शशांक को मौखरि शासकों से संघर्ष करना आवश्यक हो गया और उसने मौखरियों के शत्रु और मालवा के शासक देवगुप्त से संधि कर ली।
देवगुप्त ने अपने मौखरि प्रतिद्वन्द्वी ग्रहवर्मा को पराजित करके मार डाला और अपने मित्र के सहायतार्थ आगे बढ़कर शशांक ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। इसपर राजवर्धन (दे.) ने, जो उन्हीं दिनों थानेश्वर का शासक हुआ था और जिसकी बहन रायश्री ग्रहवर्मा के मारे जाने के फलस्वरूप विधवा हो गयी थी, शशांक पर आक्रमण कर दिया। घटनाओं का क्रम क्या रहा, निश्चय करना कठिन है, पर राज्यवर्धन को शशांक अथवा उसके अनुचरों ने मार डाला। राज्यवर्धन के इस प्रकार मारे जाने पर उसके भ्राता और उत्तराधिकारी हर्षवर्धन ने कामरूप के शासक भास्कर वर्मा से सन्धि कर ली, जो शशांक की शक्ति से भयभीत तथा और उसके विरुद्ध हर्षवर्धन की सहायता का आकांक्षी था। इस प्रकार दोनों ओर से आक्रमण की आशंका से शशांक को पीछे हटकर अपनी राजधानी वापस जाना पड़ा और दोनों शत्रुओं ने उसके विजित राज्य को विशेष क्षति पहुँचायी।
हर्ष और भास्कर वर्मा को भी शीघ्र ही अपने-अपने राज्यों की स्थिति सँभालने के लिए वापस जाना पड़ा और शशांक का गौड़, मगध और चिल्का झील तक उत्कल (उड़ीसा) पर अधिकार मृत्युपर्यन्त बना रहा। उसकी मृत्यु ६१९ ई. के उपरान्त किन्तु ६३७ ई. के पूर्व कभी हुई होगी। उसके सिक्कों से स्पष्ट है कि वह शिव का उपासक था किन्तु चीनी यात्री ह्युएनत्सांग द्वारा वर्णित उसके बौद्ध धर्म से विद्वेष और बौद्धों पर अत्याचार की कहानियों में कितनी सत्यता है, यह निश्चय कर पाना कठिन है। (र. च. मजूमदार कृत हिस्ट्री आफ बंगाल, प्रथम भाग)

शहरयार
सम्राट् जहाँगीर का सबसे छोटा पुत्र। उसने नूरजहाँ की, उसके प्रथम पति शेर अफगन से उत्पन्न पुत्री से विवाह किया था। इसी कारण नूरजहाँ ने १६२७ ई. में जहाँगीर की मृत्यु के उपरान्त उसे ही दिल्ली के सिंहासन पर बैठाना चाहा। यद्यपि जहाँगीर की मृत्यु के उपरान्त उसे लाहौर में बादशाह घोषित कर दिया गया तथापि शहरयार में व्यक्तिगत प्रतिभा एवं योग्यता का अभाव था। शाहजहाँ के श्वसुर आसफ खां ने शहरयार को शीघ्र ही पराजित करके बंदी बना लिया और शाहजहाँ के मार्ग का काँटा सदा के लिए दूर कर देने के विचार से अंधा कर दिया।

शहाबुद्दीन
देखिये, 'मुहम्मद गोरी'।

शहाबुद्दीन
अकबर की दूध-माँ, महम अनका का सम्बन्धी। अकबर के सिंहासनारोहण के समय वह दिल्ली का हाकिम था। वह उन दरबारियों में से एक था, जिन्होंने अकबर को बैरम खाँ के विरुद्ध भड़काया था, जिसके फलस्वरूप बैरम खाँ को १५६० ई. में पदच्युत कर दिया गया।


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