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Bharatiya Itihas Kosh

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बूसेस, फादर
एक ईसाई पादरी। भारत आने पर वह बादशाह शाहजहाँ के सबसे बड़े शाहजादे दाराशिकोह का अन्तरंग मित्र हो गया था।

बृहद्रथ
मगध के प्राचीनतम, राजवंश का प्रवर्तक। वह जरासन्ध का पिता था और उसके वंश ने मगध पर छठी शताब्दी ई. पू. तक शासन किया।

बृहद्रथ
मगध के मौर्यवंश का अन्तिम राजा, जिसे लगभग १८५ ई. पू. में ब्राह्मण मंत्री पुष्‍यमित्र ने अपदस्थ कर दिया था। फलस्वरूप मौर्य राजवंश का अन्त हो गया।

बृहस्पति
भारत का एक प्राचीन राजनयज्ञ एवं स्मृतिकार। उसकी कृति बृहस्पति स्मृति गुप्तकाल की रचना मानी जाती है, जो अभी तक अन्य ग्रन्थों में उद्धरण रूप में ही उपलब्ध है।

बृहस्पति मित्र
कलिङ्ग के राजा खारवेल के हाथी गुम्फा शिलालेख में यह नाम 'वहसतिमित' के रूप में मिलता है। शिलालेख में इसको राजगुह का राजा बताया गया है। कुछ विद्वानों ने उसकी पहचान मगध के राजा पुष्यमित्र से की है, जिसने १८५ ई. पू. के लगभग शुंग राजवंश संस्थापित किया। किन्तु यह मान्यता सन्देह से मुक्त नहीं हे। (रायचौधरी. पृष्ठ ३७३ तथा ४१८ के फुटनोट)

बूँदी
एक छोटी सी राजपूत रियासत, जो मेवाड़ के समीप है। इसके शासक ने काफी वर्षों तक अपने को स्वाधीन रखा, किन्तु बाद में अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। मुगल साम्राज्य के अधःपतन पर यह कुछ समय के लिए मराठा सरदार होल्कर के नियंत्रण में चली गयी, किन्तु द्वितीय मराठा-युद्ध (१८०३-०६ ई.) में होल्कर की पराजय हो जाने पर उसका नियंत्रण समाप्त हो गया। फिर भी मराठों का आतंक बना रहा। अतः १८१८ ई. में बूँदी ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से आश्रित-संधि कर ली। १९४७-४८ में भारतीय गणतंत्र में विलीन होने से पूर्व तक यह रियासत ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के अंतर्गत रही।

बूवूजी खानम
बीजापुर के सुल्तान यूसुफ आदिलशाह (१४८९-१५१० ई.) की मराठा पत्नी। वह मराठा सरदार मुकुन्दराव की बहिन थी, जिसे यूसुफ आदिलशाह ने अपने शासनकाल के आरम्भ में ही पराजित कर दिया था। तदनन्तर मुकुन्दराव ने आदिलशाह के साथ उसका विवाह कर दिया। वह द्वितीय आदिलशाही सुल्तान इस्माइल तथा तीन शाहजादियों की माँ बनी। इन शाहजादियों का विवाह पड़ोस के मुसलमान राज्यों के शाही परिवारों के साथ कर दिया गया।

बेगमें, अवध की
नवाब आसफउद्दौला की माँ और दादी। १७७५ ई. में अवध की गद्दी पर बैठने के बाद आसफउद्दौला ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ फैजाबाद की संधि की, जिसके अन्तर्गत उसने अवध में ब्रिटिश सेना रखने के लिए एक बड़ी धनराशि देना स्वीकार किया। अवध का प्रशासन भ्रष्ट और कमजोर था, अतः नियत धनराशि न दे सकने के कारण नवाब पर कम्पनी का बकाया चढ़ गया। १७८१ ई. तक मैसूर, मराठों तथा चेत सिंह से हुई लड़ाइयों के कारण कम्पनी को रुपये की बड़ी आवश्यकता थी। गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने नवाब अवध से बकाये की रकम को चुकता कर देने के लिए जोर डाला, लेकिन नवाब ने भुगतान करने में अपनी असमर्थता व्‍यक्त करते हुए कहा कि मैं भुगतान उस समय कर सकता हूँ जब मुझे उस बड़ी जागीर तथा दौलत पर अधिकार दिलवा दिया जाय जो मेरी माँ और दादी ने हथिया ली है।
अवध की बेगमें आसफउद्दौला को २५०,००० पौंड की धनराशि पहले दे चुकी थी, १७७५ ई. में ब्रिटिश रेजीडेन्ट मिडिल्टन के समझाने पर ३००,००० पौंड उन्होंने पुनः दिया। इससे कम्पनी का पावना अदा कर दिया गया। कलकत्ता स्थित कौंसिल ने बेगमों को आश्वासन था कि भविष्य में उनमें धन की माँग नहीं की जायेगी। वारेन होस्टिंग्स ने इस प्रकार का वचन देने का विरोध किया था, किन्तु कौंसिल के अन्दर मतदान में वह पराजित हो गया था। इसके बाद ही १७८० ई. में चेतसिंह कांड (दे.) हुआ।
हेस्टिंग्स अवध की बेगमों से नाराज था, क्योंकि १७७५ ई. में उन्होंने कौंसिल में उसके विरोधियों का समर्थन प्राप्त किया था। अतः १७८१ ई. में नवाब अवध ने जब बकाया भुगतान करने में उस समय तक अपनी असमर्थता व्यक्त की जब तक उसे अपनी माँ और दादी की दौलत न दिला दी जाय तो हेस्टिंग्स ने तत्काल उसके अनुरोध को स्वीकार कर ब्रिटिश रेजिडेन्ट मिडिल्टन को आदेश दिया कि वह बेगमों पर बकाये की धनराशि का भुगतान करने के लिए दवाव डाले। चूँकि रेजिडेन्ट मिडिल्टन ने जोर जबर्दस्ती करने में समुचित तत्परता नहीं दिखायी, अतः उसके स्थान पर ब्रिस्टो को नियुक्त कर दिया गया जिसने बेगमों के उच्च पदस्थ कर्मचारियों को कैद में डलवा दिया, उनको बेड़ियाँ डलवा दीं, उनका भोजन भी बन्द करवा दिया था और कदाचित उनको कोड़े भी लगवाये। उन्हें इतनी कठोर यातनाएँ दी गयीं कि उनकी दुर्दशा देखकर स्वयं नवाब भी विचलित होने लगा, किन्तु हेस्टिंग्स टस से मस नहीं हुआ और कोई समझौता-वार्ता चलाने अथवा दया प्रकट करने की मनाही कर दी। आखिर में बेगमों को बाध्य होकर रुपया देना पड़ा, जिसके सम्बन्ध में कलकत्ता स्थित कौंसिल ने १७७५ ई. में उन्हें गारन्टी दी थी कि अब उनसे धन की कोई माँग नहीं की जायगी। सारा मामला निःसन्देह घिनावना, क्षुद्रतापूर्ण और राज्य की आवश्यकताओं को देखते हुए भी अनुचित था। हेस्टिंग्स की बाद में दी गयी यह दलील बड़ी लचर थी कि चेतसिंह से साँठगाँठ के कारण बेगमों ने ब्रिटिश संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार खो दिया था, तथा कलकत्ता की कौंसिल द्वारा द्वारा दी गयी गारन्टी समाप्त हो गयी थी। वारेन हेस्टिंग्स ने बेगमों के खिलाफ द्वेषवश काररवाई की थी और यह विस्मयकारी है कि लार्ड सभा ने उसे बेगमों पर अत्याचार करने के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। उसने निःसन्देह उनपर अत्याचार किया था, यद्यपि इस प्रकार जोर-जबर्दस्ती से प्राप्त की गयी धनराशि का उपयोग कम्पनी की ही सेवा में किया गया था। (पी. ई. राबर्ट्स -हिस्ट्री आफ दि ब्रिटिश रूल इन इण्डिया, तथा सर अल्‍फ्रेड ल्याल-वारेन हेस्टिंग्‍स)

बेचर, रिचर्ड
अठारहवीं शताब्दी के छठे दशक में ईस्ट इंडिया कम्पनी का बंगाल स्थित एक अधिकारी, जिसने २४ मई, १७६४ ई. को कोर्ट आफ डाइरेक्टर्स, लन्दन की गुप्त समिति को एक रिपोर्ट भेजी। रिपोर्ट में १७७० ई. के भयावह अकाल के पूर्व बंगाल में व्याप्त शोचनीय स्थिति का व्यौरा दिया गया था। उसने लिखा था कि कम्पनी ने जबसे दीवानी के अधिकार प्राप्त किये हैं, लोगों की हालत पहले से ज्यादा खराब हो गयी है। जो बंगाल निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासन में भी फल-फूल रहा था, वह अब विनाश के कगार पर है। किन्तु रिपोर्ट की व्यावहारिक दृष्टि से उपेक्षा कर दी गयी।

बेडेन पावेल, लार्ड
संसार भर में बालचर (ब्वाय स्काउट्स) आन्दोलन का प्रतिष्ठापक। प्रारम्भ में इसमें भारतीयों को शामिल नहीं किया गया था, भारत की यात्रा करने के बाद बेडेन पावेल ने प्रयास करके इस आन्दोलन से रंगभेद की नीति को खत्म करा दिया।


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