logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Bharatiya Itihas Kosh

Please click here to read PDF file Bharatiya Itihas Kosh

बुद्धराज
कलचूरि वंश का एक राजकुमार। विश्वास किया जाता है कि वह राज्यवर्द्धन का समकालीन था और राज्यवर्द्धन ने उससे अपनी अधीनता स्वीकार करवा ली थी। उसके बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त है। (रायचौधरी, पृष्ठ ६०७ का फुटनोट)

बुद्धवर्मा
कांची का एक पल्लव नरेश, जिसने चोलों को पराजित किया। शिलालेखों में उसका उल्लेख हुआ है, जिससे अनुमान किया जाता है कि विष्णुगोप के बाद वह छठा राजा था। उसके बारे में अधिक कुछ जानकारी नहीं है। (राजचौधरी, पृष्ठ ५०१)

बुन्देलखण्ड
उस भूखण्ड का नाम, जिसके उत्तर में यमुना और दक्षिण में विन्ध्य पर्वतश्रुंखला, पूर्व में बेतवा और पश्चिम में होंस अथवा तमसा नदी है। बुन्देलों का नाम तब प्रसिद्धि में आया, जब उन लोगों ने यहाँ अपना राज्य चौदहवीं शताब्दी तक शासित होता रहा। राज्य के प्रमुख नगर थे--खजुराहो जिला छतरपुर; महोबा-जिला हमीरपुर तथा कालञ्जर, जिला बाँदा। खजुराहो में आज भी अनेक भव्य वास्तुकृतियाँ अवशिष्ट हैं। कालंजर में राज्य की सुरक्षा के लिए एक मजबूत किला था। शेरशाह इस किले की घेराबन्दी के समय १५४५ ई. में यहीं मारा गया था। बुन्देलखण्ड का अधिकांश भूभाग अब उत्तर प्रदेश में है, किन्तु कुछ भाग मध्यप्रदेश में भी मिला दिया गया है।

बुन्देला
देशज मूल के राजपूतों का एक गोत्र, जो चौदहवीं शताब्दी के मध्य में जमुना के दक्षि‍ण और विन्ध्य पर्वतश्रृंखला के उत्तर में पड़नेवाले प्रदेश में शक्तिसम्पन्न हो गये थे। इससे पहले यह क्षेत्र जेजाकभुक्ति के नाम से प्रसिद्ध था, जिस पर चन्देले शासन करते थे। बुन्देले युद्धप्रिय लोग थे और जिस भूमि पर वे शासन करते थे, वह उनके नाम से बुन्देलखण्ड कहलाने लगी। बुन्देलों ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी, किन्तु बाद में औरंगजेब के शासनकाल में बुन्देला सरदार छत्रसाल पूर्वी मालवा में अपने लिए एक स्वतंत्र राज्य कायम करने में सफल हो गया, जिसकी राजधानी पन्ना थी। बाद में इस राज्य ने अंग्रेजों को अपना प्रभु स्वीकार कर लिया।

बुरहान-ए-मासिर
बहमनी सल्तनत के सुल्तानों का एक इतिहास-वृत्तान्त है। फरिस्ता के इतिहास से इसमें अधिक प्रामाणिक विवरण है। इसे सईद अली तवातवा ने लिखा था। लेखक अहमदनगर के सुल्तान बुरहान निजाम शाह द्वितीय की सेवा में था, जिसके नाम पर ही पुस्तक का नामकरण किया गया है। इतिहास को पूरा करने में उसे छह वर्ष (१५९१-९६) लगे थे। इसमें बहमनी शाही खानदान तथा अहमदनगर के सुल्तानों का विवरण है।

बुरहान निजामशाह प्रथम
अहमदनगर के निजामशाही खानदान का दूसरा सुल्तान। ४५ वर्ष (१५०८-५३ ई.) के लम्बे शासनकाल में वह मुख्यतः पड़ोस के राज्यों, विशेषकर हिन्दू राज्य विजयनगर से युद्ध करने में व्यस्त रहा। १५३० ई. में उसने बीजापुर के मुसलमान शासक के विरुद्ध विजयनगर के हिन्दू राजा से संधि कर ली, लेकिन यह संधि अधिक दिनों तक नहीं टिकी। बुरहान मूलतः सुन्नी था, लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में वह शिया हो गया था।

बुलन्द दरवाजा
अकबर ने फतेहपुर सीकरी में १५७५-७६ ई. में इसका निर्माण कराया। यह तोरणद्वार कदाचित् उसकी गुजरात की विजय की स्मृति के रूप में बनाया गया था। संगमरमर और लाल पत्थर से निर्मित यह दरवाजा फतेहपुर सीकरी स्थित बड़ी मस्जिद के मार्ग पर विद्यमान है।

बून, चार्ल्स
बम्बई का गवर्नर (१७१५-२२), जिसने नगर के चारों तरफ एक दीवार बनवायी थी और व्यापारिक कोठी तथा व्यवसाय की सुरक्षा के लिए बन्दरगाह पर कम्पनी की ओर से तैनात सशस्त्र जहाजों की संख्या में वृद्धि कर दी थी।

बूढ़ा गोहाँई
आसाम के अहोम राजाओं के अधीन दो सर्वोच्च अधिकारियों में से एक का पदनाम। दूसरे अधिकारी का पदनाम बड़-गोहाँई था। अधिकारी का चयन अहोम राजा एक विशेष परिवार के सदस्यों में से करते थे और व्यावहारिक रूप में यह पद वंशानुक्रम से उत्तराधिकार में प्राप्त होता रहता था। (गेट-हिस्ट्री आफ आसाम, पृ. २३५-३६)

बूरन
पिण्डारियों (पेंढारियों) का एक सरदार, जो १८१२ ई. से १८१८ ई. तक लूटमार के कार्यों में प्रमुख भाग लेता रहा। लार्ड हेस्टिंग्स द्वारा १८१७-१८ ई. में पिण्डारियों के विरुद्ध आयोजित किये गये अभियान में वह मारा गया।


logo