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Bharatiya Itihas Kosh

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बादरायण
ब्राह्मण ग्रन्थों के बाद सूत्रकाल के प्रसिद्ध मनीषी और लेखक। उन्हीं के 'ब्रह्मसूत्र' के आधार पर शंकराचार्य ने अद्वैतवादी (एकेश्वरवाद) वेदान्त दर्शन की स्थापना की।

बादल
मेवाड़ का वीर राजपूत योद्धा, जिसका नाम दूसरे वीर योद्धा गोरा के साथ जुड़ गया है। बादल और गोरा ने थोड़े से राजपूत सैनिकों के साथ सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बहुत बड़ी सेना का बहादूरी से मुकाबला किया, जिसने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। अन्त में बादल ने युद्ध क्षेत्र में वीरगति पायी और सुल्तान की सेना चित्तौड़ पर चढ़ गयी। चित्तौड़ किले में राजपूत महिलाएँ रानी पद्मनी के साथ जलकर सती हो गयीं, मुसलमान सैनिक उनका स्पर्श न कर सके। पद्दिमनी की सुन्दरता से आकृष्ट होकर ही अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था।

बादशाहनामा
इस ऐतिहासिक ग्रंथ में औरंगजेब के राज्य का अधिकृत विवरण मिलता है, जिसे अब्दुल हमीद ने लिखा था।

बादामी
बीजापुर जिले के वातापी नामक प्राचीन नगर का आधुनिक नाम। यह चालुक्य राजाओं की राजधानी था। यहाँ अनेक गुप्त मन्दिर तथा पाषाण मन्दिर हैं, जो अपनी वास्तुशैली तथा भव्य मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

बापा
चित्तौड़ के प्रसिद्ध गुहिलौत राजवंश का प्रवर्तक। इसी वंश में राणा संग्राम सिंह तथा राणाप्रताप सिंह सहित मेवाड़ के अनेक प्रसिद्ध शुरूवीर शासक हुए हैं।

बाबर
दिल्ली का प्रथम मुगल बादशाह (१५२६-३० ई.)। उसका पितृकुल तैमूर जो तैमूरलंग के नाम से प्रसिद्ध है, और मातृकुल चंगेज खाँ से सम्बन्धित था। बाबर का जन्म १४८३ ई. में हुआ। ११ वर्ष की उम्र में ही वह फरगना में अपने पिता की छोटी-सी जागीर का मालिक बना। फरगना अब चीनी तुर्किस्तान में है। आरम्भ में बाबर को अनेक कष्ट झेलने पड़े, लेकिन वह महत्त्वाकांक्षी और साहसी था। यद्यपि वह फरगना से शीघ्र ही निकाल दिया गया, लेकिन १५०४ ई. में काबुल पर अधिकार जमाने में सफल हो गया। उस समय उसकी उम्र केवल २१ वर्ष की थी। इसके बाद बाबर ने समरकंद जीतने का निष्फल प्रयास किया, जो उसके पूर्वज तैमूर की राजधानी रह चुका था। इमके बाद बाबर ने समरकंद जीतने का निष्फल प्रयास किया, जो उसके पूर्वज तैमूर की राजधानी रह चुका था। इसके बाद उसने वहाँ से दक्षिण पूर्व की ओर भारत में अपना भाग्य आजमाने का निश्चय किया। उस समय भारत की राजनीतिक स्थिति उसके मंसूबों को पूरा करने की दृष्टि से अनुकूल थी। दिल्ली की सल्तनत विघटन की ओर थी, दक्षिण भारत दिल्ली से स्वतन्त्र हो चुका था। उत्तर में कश्मीर, मालवा, गुजरात और बंगाल व्यावहारिक रूप से विभिन्न अफगान सुल्तानों के अधीन स्वतंत्र राज्य बन गये थे। राजपूताने के क्षत्रिय शासक भी स्वतन्त्र हो गये थे और मेवाड़ का राणा संग्राम सिंह उत्तर भारत में फिर से हिन्दू राज्य स्थापित करने का स्वप्न देख रहा था। पंजाब दौलत खाँ नाम के विद्रोही अमीर के आधिपत्य में था और इब्राहीम लोदी (१५१५-२६ ई.) के तख्त के लिए स्वयं उसका चाचा आलम खाँ दावेदार था। इस प्रकार बाबर के आक्रमण के समय भारत में कोई शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता नहीं रह गयी थी। उस समय अनेक छोटे-छोटे राज्य वर्तमान थे जो आपसमें लड़ते रहते थे और उनकी इस आंतरिक फूट से बाबर को बहुत मदद मिली।
दौलत खाँ और आलम खाँ ने तो इस उम्मीद में बाबर को भारत पर आक्रमण करने का न्यौता दिया कि वह तैमूर की भाँति दिल्ली की सल्तनत को धाराशायी कर वापस चला जायगा और दिल्ली के तख्त पर इनमें से कोई अपना अधिकार जमा लेगा। इस पृष्ठभूमि में बाबर १५२४ ई. में पंजाब में दाखिल हुआ और लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने भारत में रुकने का इरादा जाहिर किया। इससे दौलत खाँ और आलम खां की आशाओं पर पानी फिर गया और उन्होंने उसका साथ छोड़ दिया। इस प्रकार अकेला पड़ जाने पर बाबर को काबुल लौटना पड़ा, लेकिन अगले वर्ष वह बहुत बड़ी सेना लेकर फिर भारत आ धमका। उसने दौलत खाँ का दमन किया और २१ अप्रैल १५२६ ई. को पानीपत की पहली लड़ाई में सुल्तान इब्राहीम लोदी को परास्त कर उसे मार डाला। इस विजय के बाद बाबर दिल्ली और आगरा का बन गया। उसके अधिकार को भारत के विभिन्न भागों के अफगान सरदार अथवा मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह मानने को तैयार नहीं थे। लेकिन राजपूतों और अफगानों ने एकसाथ इसका प्रतिरोध नहीं किया और बाबर को उनसे अलग-अलग निपटने का मौका मिल गया।
बाबर ने राणा को १६ मार्च १५२७ ई. को खानवा के युद्ध में परास्त किया। इसके बाद उसने यमुना नदी पार कर चन्देरी के किले को सर कर लिया। इस प्रकार उसने राजपूतों के प्रतिरोध को प्रभावशाली ढंग से कुचल दिया। दो वर्ष बाद बाबर ने बंगाल और बिहार के अफगान सरदारों को (६ मई १५२९ ई. को) घाघरा के युद्ध में पराजित कर दिया। यह लड़ाई पटना के निकट घाघरा और गंगा के संगम के पास हुई थी। इन तीन लड़ाइयों को जीतने के बाद बाबर अफगानिस्तान से बंगाल की सीमा तक और हिमालय से ग्वालियर तक के क्षेत्र का शासक हो गया। इस प्रकार बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। लेकिन शीघ्र ही २६ दिसम्बर १५३० ई. को बाबर की मृत्यु हो गयी और उसे इतना समय नहीं मिला कि वह अपने साम्राज्य की शासन-व्यवस्था को सुधार कर उसे मजबूत बना सकता, जैसा कि बाद में उसके पौत्र अकबर (१५५६-१६०५ ई.) ने किया।
बाबर केवल कुशल योद्धा ही नहीं था जिसने दिल्ली पर अधिकार कर अपना साम्राज्य स्थापित किया, वरन् वह साहित्यप्रेमी भी था, जैसा कि उसके संस्मरणों से सिद्ध होता है जो उसने तुर्की भाषा में लिखे और जिनका बाद में अकबर के आदेश से फ़ारसी में अनुवाद कराया गया। (लेन और मूल कृत 'बाबर')

बाम्बे-बर्मा ट्रेडिंग कार्पोरेशन
एक अंग्रेजी व्यापारी कम्पनी, जो उत्तरी आसाम में लट्ठों का रोजगार करती थी। १८८४ ई. में बर्मा की सरकार ने, जो उस समय राजा थिबा द्वारा शासित थी, कम्पनी के ऊपर विभिन्न अभियोगों में २,३०,००० पौंड का जुर्माना कर दिया। बर्मा और भारत की ब्रिटिश सरकार के सम्बन्ध पहले से ही तनावपूर्ण थे। भारत सरकार की इस माँग को कि इस मामले को वाइसराय की मध्यस्थता के लिए सौंप दिया जाना चाहिए, बर्मा सरकार द्वारा ठुकरा देना तृतीय बर्मी युद्ध (१८८५-८६ ई.) का प्रत्यक्ष कारण बन गया जिसके फलस्वरूप उत्तरी बर्मा अंग्रेजों के कब्जे में आ गया था।

बायजीद
बंगाल के शासक सुलेमान करनानी (१५६९-७२ ई.) का पुत्र जो अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। किन्तु शीघ्र ही बंगाल पर मुगल बादशाह अकबर का कब्जा हो गया और वह उड़ीसा भाग गया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गयी।

बायजीद शाह
बंगाल (१४१२-१४ ई.) का नाममात्र का शासक, जिसे कदाचित् राजा गणेश ने अपदस्थ कर दिया था।

बारकर, सर राबर्ट
वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेवा में था और बाद में तरक्की कर प्रधान सेनापति बन गया। उसकी उपस्थिति में १७ जून १७७२ ई. को अवध के नवाब शुजाउद्दौला और रुहेलों के नेता हफीज रहमत खाँ के बीच सन्धि पर हस्ताक्षर हुए थे। इस सन्धि में यह उल्लिखित था कि यदि मराठे रुहेलखंड पर आक्रमण करते हैं तो अवध का नवाब मराठों को निष्कासित करने में रुहेलों की सहायता करेगा और बदले में रुहेले उसे चालीस लाख रुपया देंगे। राबर्ट बारकर संधि पर हस्ताक्षर होने का केवल साक्षी था, उसने कम्पनी अथवा वारेन हेस्टिंग्स की तरफ से संधि के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में कोई आश्वासन नहीं दिया था। बाद में संधि का उल्लंघन होने पर अंग्रेजों को उसे लागू करने के लिए रुहेलखंड में अपनी सेना भेजनी पड़ी।


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