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Bharatiya Itihas Kosh

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पौफम, कर्नल
ईस्ट इंडिया कम्पनी का एक फौजी अफसर। पहले मराठा-युद्ध (दे.) (१७७५-८२ ई.) में उसने १७७९ ई. में बंगाल से स्थल मार्ग द्वारा बम्बई भेजी जानेवाली सेना का गौडर्ड (दे.) के साथ नेतृत्व किया और १७८० ई. में ग्वालियर का किला सर करके भारी नाम कमाया।

प्रतापरुद्र
उड़ीसा का प्रसिद्ध राजा। लगभग १४१० ई. में विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय (दे.) ने उसे पराजित कर दिया।

प्रतापरुद्र
ओरंगल का काकतीय वंशज (दे.) राजा। दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन (दे.) के सिपहसालार उलुगा खां ने १३२३ ई. में उसे हरा दिया और गद्दी से उतार दिया।

प्रतापसिंह, राणा
राणा उदय सिंह का पुत्र तथा उत्तराधिकारी, जिसने मेवाड़ पर १५७२ ई.से १९ जनवरी १५९७ ई. में मृत्यु होने तक राज्य किया। वह बड़ा शूरवीर और सच्चा देशभक्त था। उसने अपनी मातृभूमि मेवाड़ की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बादशाह अकबर की अपने से कहीं बड़ी फौज का मुकाबला किया। अकबर ने चित्तौड़गढ़ पहले ही ले लिया था। वह उस समय दुनिया का सबसे दौलतमंद बादशाह था। जब राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया, अकबर ने आमेर के राजा मानसिंह तथा आसफ खाँ के नेतृत्व में एक बड़ी शाही फौज भेजी। अप्रैल १५७६ ई. में हल्दी घाट (दे.) में लड़ाई हुई। राणा बड़ी वीरता से लड़ा, किन्तु उसकी पराजय हुई। राणा ने भागकर पहाड़ों की शरण ली। शाही सेना ने उसका पीछा किया और उसके कई किलों पर अधिकार कर लिया। फिर भी राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। वह पहाड़ियों में मारा-मारा फिरता रहा, उसके बच्चे कंदमूल पर गुजारा करते रहे, मगर उसने अपना स्वातंत्र्य युद्ध जारी रखा और १५९७ ई. में मृत्यु से पूर्व अपने कुछ मजबूत गढ़ों को फिर से अपने अधिकार में कर लिया। राजपूतों में वही एक ऐसी वीर था जिसने मातृभूमि की स्वतंत्रता का अपहरण न होने देने के लिए मुसलमानों की विशाल सेना से युद्ध किया। उसके बाद उसका पुत्र अमरसिंह गद्दी पर बैठा। उसने १६१४ ई. में बादशाह जहाँगीर की अधीनता स्वीकार कर ली।

प्रतापादित्य
जेसोर (बंगाल) का एक वीर भूमिपति (जमींदार)। उसने अकबर को खिराज देने से इनकार कर दिया और मुगल सेना को हरा दिया। अंत में उसे परास्त कर के बंदी बना लिया गया। जब वह दिल्ली भेजा जा रहा था, रास्ते में उसकी मृत्यु हो गयी।

प्रतिहार (अथवा परिहार)
देखिये, 'गूर्जर-प्रतिहार वंश'।

प्रबोध चंद्रोदय
एक मनोभावात्मक संस्कृत रूपक जिसमें वेदांत दर्शन का सुन्दर निरूपण किया गया है। यह चंदेल राजा कीर्तिवर्मा (दे.) के आश्रय में लिखा गया था, जो ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में राज्य करता था।

प्रभाकरवर्धन
थानेश्वर का राजा, जो पुष्यभूतिवंश (दे.) का था और छठी शताब्दी के अंत में राज्य करता था। उसकी माता गुप्तवंश की राजकुमारी, महासेनगुप्त नामक थी। उसने अपने पड़ोसी राज्यों, मालवों, उत्तर-पश्चिमी पंजाब के हूणों तथा गुर्जरों के साथ युद्ध करके काफी प्रतिष्ठा प्राप्त की। उसने अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि राजा ग्रहवर्मा से कर दिया। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु ६०४ ई. में हुई। उसके बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र राज्यवर्धन उत्तराधिकारी हुआ।

प्रभावती गुप्ता
चन्द्रगुप्त द्वितीय (लगभग ३८०-४१३ ई.) (दे.) की पुत्री। उसका विवाह वाकाटक (दे.) राजा रुद्रसेन द्वितीय से हुआ था। उसके वंशज शताब्दियों तक दक्षिण भारत पर राज्य करते रहे।

प्रवरसेन प्रथम
वाकाटक वंश (दे.) का शासक, जो चौथी शताब्दी ई. में राज्य करता था। उसके राज्य में मध्य प्रदेश तथा दक्षिण का अधिकांश पश्चिमी भाग था। उसके बारे में अधिक ज्ञात नहीं है।


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