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Bharatiya Itihas Kosh

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चरक
प्राचीन भारत का एक सुविख्यात चिकित्सक, जिसने चिकित्साशास्त्र और औषधिविज्ञान पर एक बहुत ही आधिकारिक ग्रन्थ लिखा है, जिसका नाम उसके नाम पर ही 'चरकसंहिता' प्रसिद्ध हो गया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि चरक कुषाण राजा कनिष्क का समसामयिक था, जिसका संरक्षकत्व भी उसे प्राप्त था। इसलिए कुछ इतिहासकारों का मत है कि चरक ईसा बाद दूसरी शताब्दी में हुआ होगा, लेकिन डाक्टर पी. सी. रायने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री आफ हिन्दू केमिस्ट्री' (हिन्दू रसायनशास्त्र का इतिहास) में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि वह प्राक्-बौद्धकाल में हुआ था।

चर्चिल, सर विंस्टन
ब्रिटेन का प्रधानमंत्री, जिसने दूसरे विश्वयुद्ध में विजय प्राप्त की। वह पत्रकार, साहित्यिक, इतिहासकार और मार्लबरों के ड्यूक का वंशज था। उसने अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया और अन्त में ब्रिटेन के सर्वाधिक संकटमय काल में १० मई १९४० ई. को प्रधानमंत्री बना। इस गुरुतर दायित्व को उसने ७ जुलाई १९४५ तक सँभाला। इस अवधि में उसने मिली-जुली सरकार के नेता के रूप में दूसरे महायुद्ध का संचालन किया और ब्रिटेन को उसमें विजयी बनाया। चर्चिल कट्टर 'टोरी' था और उसे भारत के राष्ट्रीय आंदोलन से कोई हमदर्दी नहीं थी। वह उग्र साम्राज्यवादी था और एक अवसर पर घोषणा की थी कि "आपको देर-सबेर गांधी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दमन करना पड़ेगा।" वह गांधीजी तक के लिए 'भारत का नंगा फकीर' जैसे अपशब्दों का प्रयोग करता था और एक अवसर पर बड़े ही दम्भपूर्ण स्वर में कहा था कि "मैंने ब्रिटिश साम्राज्य का विघटन करने के लिए प्रधानमंत्री का पद स्वीकार नहीं किया है।" किन्तु परिस्थितियों के आगे उसकी कुछ नहीं चली। चर्चिल के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद एक-दो वर्षों में ही ब्रिटेन को भारत को आजादी देनी पड़ी। अवश्य ही भारत में ब्रिटेन की दमनमूलक नीति की विफलता का कटु आभास सर विंस्टन चर्चिल को अपनी मृत्यु से पूर्व हुआ होगा।
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चर्बीवाले कारतूस
इन्फील्ड रायफल में, जो १८५६ ई. में ब्रिटिश भारतीय सेना में चालू की गयी थी, इस्तेमाल किये जाते थे। कारतूसों पर चर्बी लगी रहती थी और रायफल में डालने के पहले उन्हें दाँत से काटना पड़ता था। चूंकि अंग्रेजों में किसी भी पशु का मांस वर्जित नहीं है, अतः यह विश्वास किया गया कि इन कारतूसों का प्रचलन हिन्दुओं और मुसलमानों को विधर्मी बनाने के लिए ही किया गया है। अधिकारियों ने पहले तो किसी प्रकार की चर्बी के इस्तेमाल को अस्वीकार किया, किन्तु बाद में जाँच करने पर पता चला कि ऊलविच आयुध कारखाने में जहाँ कारतूस बने थे पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। अतएव सरकारी खंडन से स्थिति और भी छलपूर्ण समझी गयी और ऐसी धारणा फैल गयी कि चर्बीवाले कारतूसों का जान-बूझकर प्रचलन करके ईसाई सरकार हिन्दुओं और मुसलमानों को धर्मभ्रष्ट कर रही है। कारतूसों को बाद में वापस ले लिया गया, लेकिन यह कार्य काफी विलम्ब से हुआ और इसे सरकार की कमजोरी का परिचायक माना गया। सरकार के वक्तव्यों पर विश्वास नहीं किया गया और चर्बीवाले कारतूसों के प्रयोग से सिपाहियों में व्याप्त असन्तोष और भड़क उठा। १८५७ ई. के सिपाही विद्रोह के अनेक कारणों में यह प्रमुख कारण था।

चस्टन
मालवा के महाक्षत्रिय वंश का संस्थापक। उसका शासनकाल पहली शताब्दी इसवी के उत्तरार्ध में था और राजधानी उज्जैन थी। उसने चाँदी और सोने के बहुत-से सिक्के चलाये, जिनमें से कुछ प्राप्त हुए हैं।

चाँद बीबी
अहमदनगर के तीसरे शासक हुसैन निज़ाम शाह की पुत्री, जिसका विवाह बीजापुर के पाँचवें सुल्तान अली आदिलशाह (१५५७-८० ई.) के साथ हुआ था। १५८० ई. में पति की मृत्यु हो जाने पर वह अपने नाबालिग बेटे इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय (बीजापुर के छठे सुल्तान) की अभिभाविका बन गयी। बीजापुर का प्रशासन मंत्रियों द्वारा चलाया जाता रहा। १५८४ ई. में चाँदबीबी बीजापुर से अपनी जन्मभूमि अहमदनगर चली गयी और फिर कभी बीजापुर नहीं गयी। १५९३ ई. में मुगल बादशाह अकबर की फौजों ने अहमदनगर राज्य पर आक्रमण किया। संकट की इस घड़ी में चाँददबीबी ने अहमदनगर की सेना का नेतृत्व किया और अकबर के पुत्र शाहजादा मुराद की फौजों से बहादुरी के साथ सफलतापूर्वक मोर्चा लिया। किन्तु सीमित साधनों के कारण अंत में चाँदबीबी को मुगलों के हाथ बरार सुपुर्द कर उनसे संधि कर लेनी पड़ी। लेकिन इस संधि के बाद जल्दी ही लड़ाई फिर शुरू हो गयी। चाँदबीबी की सुरक्षा-व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि उसके जवित रहते मुगल सेना अहमदनगर पर कब्जा नहीं कर सकी। किन्तु एक उग्र भीड़ ने चाँदबीबी को मार डाला और इसके बाद अहमदनगर किले पर मुगलों का कब्जा हो गया।

चाइल्ड, सर जान
सूरत में स्थित ईस्ट इंडिया कम्पनी की व्यापारिक कोठी का अध्यक्ष। इंग्लैण्ड से मिले निर्देशों के अनुसार उसने पश्चिमी तट पर औरंगजेब की सत्ता को मानने से इन्कार कर दिया किन्तु मुंगलों के आगे उसकी कुछ चल न पायी और पराजय का मुंह देखना पड़ा। मुगलों ने कम्पनी की सूरत स्थित कोठी को जब्त कर लिया। बाद में मुगल बादशाह ने अपने राज्य से अंग्रेजों के निष्कासन का आदेश जारी कर दिया। अंततः अंग्रेजों को झुकना पड़ा और उन्हें सूरत वापस आने की इजाजत फिर मिल गयी।

चाइल्ड, सर जोसिया
ईस्ट इंडिया कम्पनी का चेयरमैन या गवर्नर। कम्पनी के अन्य डाइरेक्टरों के विपरीत सर जोसिया चाइल्ड बहुत ही महत्त्वाकांक्षी था। उसने भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना को अपना लक्ष्य बनाया। १६८५ ई. में उसे राजा जेम्स द्वितीय को इस बात के लिए राजी करने में सफलता मिल गयी कि चटगाँव पर अधिकार और किलेबंदी करने के लिए दस या बारह जहाजों का बेड़ा भेजा जाय। लेकिन यह अभियान बुरी तरह विफल हुआ और अंग्रेजों को १६८८ ई. में बंगाल से निष्कासित कर दिया गया। सर जोसिया का स्वप्न उसके जीवन काल में साकार नहीं हो सका, किन्तु बाद की घटनाएँ इस बात की साक्षी हैं कि उसने जो सपना देखा था, वह दिवास्वप्न नहीं था।

चाणक्य
देखिये, 'कौटिल्य'।

चामी राजेन्द्र, सर राजा
१८६८ से १८९६ ई. तक मैसूर का शासक। देशी रियासतों के प्रशासन में निरंकुशता समाप्त कर उदारवादी नीतियों को अपनाने वाला वह पहला नरेश था।

चामुण्डराज
गंग वंश (दे.) के एक राजा का मंत्री, जो मैसूर पर शासन करता था। उसके ही आदेश से श्रवणबेलगोला में एक पहाड़ी की चोटी पर गोमटेश्वर की ५६.५ फुट ऊँची विशालकाय मूर्ति का निर्माण कराया गया था। यह मूर्ति काले पत्थर की चट्टान को तराश कर बनायी गयी थी। अपनी भव्य विशालता के कारण यह प्रतिमा विश्व में बेजोड़ मानी जाती है।


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