एक आदिवासी जाति, जो आधुनिक मध्य प्रदेश के छतरपुर इलाके में निवास करती थी। बाद में इस जाति ने लूटपाट का काम छोड़कर युद्धों में लड़ने का व्यवसाय शुरू किया। कालांतर में इन्हें राजपूत माना जाने लगा। जेजाकभूक्ति के चन्देल राजा (दे.) सम्भवतः मूलरूप से गोंड़ ही थे।
गोंडवाना
गोंडों का राज्य, जो वर्तमान मध्यप्र देश के उत्तरी भाग में था। उसे गढ़टंगा भी कहते थे। अकबर ने १५६४ ई. में इसपर विजय प्राप्त की और अपने राज्य में मिला लिया (देखिये, रानी दुर्गावती)।
गोण्डोफर्नीज (गोण्डोफारेंस)
भारतीय पार्थियन राजा, जिसने २० से ४८ ई. तक एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया, जिसमें कंदहार, काबुल और तक्षशिला भी शामिल थे। एक किंवदन्ती के अनुसार ईसा मसीह के शिष्य सेण्ट टामस इसी के शासनकाल में यहाँ आये, और यहाँ शहीद हुए थे।
गोकुला
१७वीं शताब्दी में उत्पन्न, उत्तर प्रदेश के मथुरा क्षेत्र (व्रजमंडल) का जाट नेता। वह तिलपत का जमींदार था, उसने मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन के विरुद्ध किसानों के विद्रोह का नेतृत्व किया और असाधारण साहस और वीरता का परिचय दिया। १६६९ ई. में उसने मथुरा के अत्याचारी मुगल फौजदार पर हमला कर उसे मार डाला। इससे सारे जिले में अशांति उत्पन्न हो गयी। गोकुला के विरुद्ध मुगल सेना भेजी गयी, जिसने विद्रोहियों का दमन किया। गोकुला की पराजय हुई और वह मार डाला गया। उसके परिवार के लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बना लिया गया। लेकिन गोकुला का बलिदान विफल नहीं गया। उसके उदाहरण ने जाटों में अदम्य स्फूर्ति और प्रेरणा भर दी, और उन्होंने औरंगजेब की असह्य नीतियों का लम्बे अरसे तक इतना जबरदस्त प्रतिरोध किया कि मुगल साम्राज्य अंदर से जर्जर हो गया। १६९१ ई. में जाटों ने औरंगजेब के अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए अकबर के मकबरे (सिकन्दरा) को बरबारद कर दिया और अकबर की हड्डियाँ कब्र से निकालकर जला दीं।
गोखले, गोपालकृष्ण (१८६६-१९१५)
भारत के महान् राष्ट्रवादी नेता। वे कोल्हापुर के एक मराठा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। उन्होंने फर्गुसन कालेज पूना में इतिहास और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर की हैसियत से जीवन आरंभ किया और १९०२ ई. तक वे इस पद पर रहे। आरंभ से ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंधित रहे। कुछ दिनों तक वे इसके संयुक्त-मंत्री रहे, १९०५ ई. के अधिवेशन में इसके अध्यक्ष बने। १९०२ ई. में वे बम्बई विधान परिषद के सदस्य चुने गये, और तत्पश्चात् वे वाइसराय द्वारा केन्द्रीय विधान परिषदों गैर-सरकारी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने गये। १९०५ ई. में उन्होंने पूना में 'सर्वेंट्स आफ इंडिया सोसायटी' (भारत सेवक समाज) की स्थापना की, जिसके सदस्य आजीवन निर्धन रहने और निस्स्वार्थ भाव से देश की सेवा करने का व्रत लेते थ़े। १९१० ई. में जब केन्द्रीय व्यवस्थापिका परिषद् का विस्तार हुआ तो गोखले उसके एक प्रमुख नेता गिने जाते थे और सरकार के प्रभावशाली आलोचक थे। सरकार की वित्तीय नीतियों की बखिया उधेड़ने में उन्हें विशेष दक्षता प्राप्त थी और वार्षिक बजट पर विवाद के दौरान उनकी असाधारण पांडित्यपूर्ण वक्तृताएँ सुनने लायक होती थीं। उन्होंने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिए एक विधेयक प्रस्तुत किया जो सरकार द्वारा विरोध किये जाने के कारण अस्वीकृत हो गया। १९१२-१५ ई.में वे इण्डियन पब्लिक सर्विस कमीशन के सदस्य रहे। इस हैसियत से उन्होंने सबसे बड़ी देश-सेवा यह की कि कमीशन की सिफारिश पर सरकारी नौकरियों में भारतीयों की संख्या काफी बढ़ा दी गयी। १९१५ ई. में उनकी मृत्यु से देश में संविधानवादी दल की शक्ति का भारी ह्रास हुआ। असहयोग आंदोलन के युग के पहले पुरानी कांग्रेस के वे सबसे श्रेष्ठ और महान् नेता गिने जाते थे। (आर. पी. परांजपे लिखित 'गोपालकृष्ण गोखले' और एस. शास्त्री द्वारा लिखित 'गोपालकृष्ण गोखले का जीवन')।
गोखले, सेनापति
पेशवा बाजीराव द्वितीय (१७९६-१८१८ ई.) का सेनानायक। उसने तृतीय मराठा-युद्ध में पेशवा की सेनाओं का नेतृत्व किया था, किन्तु पराजित हो गया तथा आष्ठी के युद्ध (१८१८ ई.) में मारा गया।
गोगुण्डा का युद्ध
मुगल सम्राट् अकबर तथा मेवाड़ के राणा प्रताप सिंह (दे.) के बीच हुआ। यह युद्ध गोगुण्डा के निकट हल्दीघाटी में लड़ा गया, अतएव इसे हल्दीघाटी का युद्ध भी कहते हैं। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व राजा मानसिंह ने किया। राणा और उनकी सेना ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया तो भी वे पराजित हो गये। राणा को भागना पड़ा और अपनी मृत्यु (१५९७) पर्यन्त वे अकबर के विरुद्ध लड़ते रहे।
गोडर्ड कर्नल (१७४०-८३)
जनरल कूटे के अधीन मद्रास में १७५९ ई. में सैनिक-सेवा आरंभ की और अनेक युद्धों में भाग लिया, जिनके फलस्वरूप १७६१ ई. में पांडिचेरी का पतन हो गया। वह १७७८ ई. तक अनेक सैनिक पदों पर रहा। जब अंग्रेजों तथा मराठों के बीच पहला युद्ध हुआ, उसने वारेन हेस्टिंग्स (दे.) के आदेश से सेना लेकर कलकत्ता से बम्बई की ओर प्रयाण किया। उसने महू और अहमदाबाद छीन लिया, महादजी शिन्दे को हराया, १७८० ई. में बसई पर अधिकार कर लिया और पूना पर चढ़ाई की, किन्तु पीछे हटना पड़ा। १७८२ ई. में सालबाई की संधि होने पर जब मराठा-युद्ध समाप्त हुआ, गोडर्ड को बम्बई में ब्रिटिश सेना का प्रधान सेनाध्यक्ष बना दिया गया। लेकिन स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण वह शीघ्र अवकाश पर चला गया। जब वह १७८३ ई. में समुद्र के रास्ते इंग्लैण्ड जा रहा था, रास्ते में जहाज पर ही मर गया।
गोडोल्फिन, अर्ल आफ
इंग्लैण्ड की महारानी ऐन (१७०२-१४) का प्रधानमंत्री, वह १७०२ से १७०८ ई. तक इस पद पर रहा। उसने १६०० ई. में स्थापित पुरानी ईस्ट इंडिया कम्पनी तथा १६९८ ई. में स्थापित नयी कम्पनी के बीच उठे विवाद में पंच बनकर निर्णय दिया। इस निर्णय के फलस्वरूप दोनों कम्पनियाँ एक दूसरे में मिल गयीं और उनका नामकरण "युनाइटेड कम्पनी आफ मर्चेण्ट्स आफ इंग्लैण्ड ट्रेडिंग टू दि ईस्ट इंडीज" किया गया। जनता में उसका नाम 'ईस्ट इंडिया कंपनी' ही प्रचलित रहा।
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गोदावरी
दक्षिण भारत में पश्चिम से पूर्व की ओर बहनेवाली ८०० मील लम्बी नदी, जो बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्टम के निकट गिरती है। यह भारत की सात पवित्र नदियों में से एक गिनी जाती है।