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Bharatiya Itihas Kosh

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गंड (९९९-१०२५)
चंदेल राजा धंग का पुत्र और उत्तराधिकारी। वह पंजाब के राजा आनंदपाल द्वारा महमूद गजनी का सामना करने के लिए १००८-९ ई. में बनाये गये हिन्दू राजाओं के संघ में शामिल हुआ और सबके साथ हार गया। दस वर्ष बाद गंड के पुत्र विद्याधर ने कन्नौज के शासक राज्यपाल पर हमला कर उसे मार डाला, क्योंकि उसने कायरतापूर्वक महमूद गज़नी का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। इस बात से क्रुद्ध होकर सुलतान गजनी ने गंड के राज्य पर हमला कर दिया और उसे कालंजर का दुर्ग समर्पित कर सुलह करने को बाध्य किया। (स्मिथ.)

गंडमक की संधि
द्वितीय अफगान-युद्ध (दे.) (१८७८-८० ई.) के दौरान मई १८७९ में भारतीय ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन वाइसराय लार्ड लिटन और अफगानिस्तान के अपदस्थ अमीर शेरअली के बड़े पुत्र याकूब खां के बीच हुई थी। इस संधि के अन्तर्गत याकूब खां, जिसे अमीर के रूप में मान्यता दी गयी थी, अपने विदेशी संबंध ब्रिटिश निर्देशन से संचालित करने, राजधानी काबुल में ब्रिटिश रेजीडेंट रखने और कुर्रम दर्रे तथा पिशीन और सीबी जिलों को ब्रिटिश नियंत्रण में देने के लिए राजी हो गया। पिशीन और सीबी जिले बोलन दर्रे के निकट स्थित हैं। गंडमक-संधि लार्ड लिटन की अफगान-नीति (दे.) की सबसे बड़ी उपलब्धि थी और उसने ब्रिटिश भारत को इंग्लैण्ड के तत्कालीन प्रधानमंत्री लार्ड बेकन्सफील्ड के शब्दों में 'वैज्ञानिक सीमा' प्रदान कर दी। किन्तु अंग्रेजों की यह विजय अल्पकालीन थी। गंडमक संधि के केवल चार महीने बाद २ सितम्बर १८७९ ई. को अफगानों ने फिर सिर उठाया और उन्होंने ब्रिटिश रेजीडेण्ट की हत्या कर गंडमक-संधि को रद्द कर दिया। अफगानिस्तान में युद्ध फिर भड़क उठा और वह तभी समाप्त हुआ जब अंग्रेजों ने अपने आश्रित याकूब खां को अफगानों के हाथ समर्पित कर दिया और काबुल में अपना रेजीडेण्ट रखने का विचार तथा संधि के अन्तर्गत मिला समग्र अफगान क्षेत्र त्याग दिया।

गंधार
प्राचीन काल में सिंधु नदी के दोनों तटों पर स्थित उस प्रदेश का नाम, जहाँ आजकल पाकिस्तान के रावलपिण्डी और पेशावर जिले हैं। तक्षशिला और पुष्करावती इसके भी प्रमुख नगर थे। यहाँ के लोग 'गांधार' कहलाते थे और उनका उल्लेख अशोककालीन अभिलेखों में मिलता है। बहिस्तान अभिलेख (लगभग ५२०-५१८ ई. पू. ) (दे.) से पता चलता है कि इस प्रदेश को बाद में फारस के सम्राट् दारा (डेरियस) ने अपने राज्य में मिला लिया। इस राज्य में कुछ समय कश्मीर भी शामिल था। गंधार निश्चित रूप से अशोक के साम्राज्य का अंग था। भारत के साथ उसके घनिष्ठ संबंध थे। महाभारत के अनुसार गंधार की राजकुमारी धृतराष्ट्र की महारानी और दुर्योधन की माता थी। मौर्य वंश के पतन के पश्चात् गंधार भारत और बाख्त्री शासकों के बीच बंट गया। इसके उपरान्त यह प्रदेश कुषाण राज्य का अंग बना। इस प्रकार यह पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों का संगम-स्थल बन गया और उसने कला की एक नयी शैली को जन्म दिया जो 'गांधार शैली' के नाम से विख्यात है।

गक्खड़
कबायली लोग, जिनका दमन १२०४ ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी ने और उसके बाद १५३३ ई. में शेरशाह ने किया। शेरशाह ने इन लोगों को दबाये रखने के लिए रोहतास (पंजाब) में किले का निर्माण भी कराया।

गजनवी
गजनी के शासक। अलप्तगीन प्रथम गजनवी शासक था जिसने ९६३ ई. तक राज्य किया। इसके बाद क्रमशः अमीर सुबुक्तगीन (९७७-९७), सुल्तान महमूद (९९७-१०३०) और बहराम शाह ने राज्य किया। बहराम के पुत्र खुसरो ने गजनी को त्यागकर सन् ११६० में पंजाब में अड्डा जमाया तथा लाहौर को अपना सदर-मुकाम बनाया। उसका पुत्र खुसरो मलिक अंतिम गजनवी था। उसे सन् ११८६ में शहाबुद्दीन गोरी ने उखाड़ फेंका। इसके साथ ही गजनवी वंश नष्ट गया।

गज़नी
अफगानिस्तान का एक पहाड़ी नगर, जो काबुल से दक्षिण-पश्चिम ७८ मील पर स्थित व्यापारिक केन्द्र है। मध्ययुग में यह किले के रूप में था। १०वीं शताब्दी में अलप्तगीन नामक तुर्क ने यहां एक छोटे से राज्य की स्थापना कर गजनी को राजधानी बनाया। अलप्तगीन की मृत्यु ९६३ ई. में हुई। उसका पुत्र सुबुक्तगीन और पौत्र सुल्तान महमूद (९९७-१०३० ई.) था जो महमूद गजनवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गजनी नगर बड़े-बड़े भवनों, चौड़ी सड़कों और संग्रहालयों से परिपूर्ण था, लेकिन सन् ११५१ में गोर के अलाउद्दीन हुसेन ने इस नगर को जलाकर खाक कर दिया। इसके लिए उसे जहांसोज की उपाधि मिली। बाद में शहाबद्दीन गोरी ने इस नगर का उद्धार किया और इसे अपना सदर-मुकाम बनाया व यही गोरी बाद में भारत का भारत का पहला मुस्लिम विजेता बना। यह नगर आधुनिक काल तक महत्त्वपूर्ण सामरिक अड्डा बना रहा। प्रथम अफगान युद्ध (दे.) के दौरान ब्रिटिश जनरल नाट ने इस नगर की किलेबंदी को नष्ट कर दिया।

गजनी खाँ
खान देश का सातवां सुल्तान, जो दाऊद का पुत्र था। गद्दी पर बैठने (सन् १५०८) के दस दिनों के अंदर उसे जहर देकर मार डाला गया।

गजपति प्रतापरुद्र
उड़ीसा का शासक, जिसे विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय (१५१०-३० ई.) ने परास्त किया। इस युद्ध में उदयगिरि का दुर्ग भी गजपति के हाथों से निकल गया।

गजबाहु
श्रीलंका का एक प्राचीन राजा, जिसने सन् १७३ से लेकर १९१ ई. तक राज्य शासन किया। यह तिथि इस दृष्टि से महत्‍त्‍वपूर्ण है कि इससे प्राचीन पाण्ड्य, चेरी और चोल राजाओं की तिथियाँ निश्चित करने में सहायता मिलती है। ये राजा उसके समकालीन थे।

गढ़ कटंगा
गोंडवाना के अन्तर्गत आधुनिक मध्य प्रदेश के उत्तरी जिलों में कहीं पर स्थित था। १५६४ ई. में जब इसका प्रशासन रानी दुर्गावती अपने अल्पवयस्क पुत्र वीरनारायण की अभिभाविका के रूप में चला रही थी, मुगल सम्राट् अकबर ने उस पर हमला किया और उसे अपने साम्राज्य में मिला लिया।


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