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Bharatiya Itihas Kosh

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गौतमीपुत्र शातकर्णी
सातवाहन वंश का एक प्रसिद्ध राजा, जिसने दूसरी शताब्दी ईसवी के प्रथम चतुर्थांश में शासन किया। उसने भूमक द्वारा स्थापित क्षहरात वंश का उन्मूलन कर उसका राज्य अपने राज्य में मिला लिया। गौतमीपुत्र के राज्य में मालवा, काठियावाड़, गुजरात, उत्तरी कोंकण, बरार और गोदावरी से सींचा जानेवाला समग्र प्रदेश शामिल था। उसने विदेशी शकों, यवनों (ग्रीकों) और पल्हवों (पार्थियनों) की शक्ति का विनाशकर देश के गौरव का पुनरुद्धार किया। उसने ब्राह्मणों और बौद्धों को उदारतापूर्वक दान दिये, और वर्णाश्रम धर्म की मर्यादा फिर से स्थापित की। उसने सातवाहन वंश का गौरव फिर से प्रतिष्ठित किया।

गौतमी बालश्री
सातवाहन वंश की एक विधवा रानी, जिसका उल्लेख नासिक अभिलेख में मिलता है। अभिलेख में उसे सत्यनिष्ठ, दानी और धैर्यशाली रानी बताया गया है जो तप, त्याग और आत्मसंयम के साथ जीवन व्यतीत करती थी। वह आदर्श राजर्षिवधू और प्रसिद्ध सातवाहन राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी की माता थी।

ग्यांत्से
तिब्बत का एक व्यापारिक नगर। १९०४ ई. में लार्ड कर्जन ने तिब्बत पर चढ़ाई के लिए अपनी सेना भेजी। संधि के अनुसार इस नगर में ब्रिटिश भारतीय व्यापार मिशन की स्थापना की गयी।

ग्रान्ट, चार्ल्स (१७४६-१८२३)
ईस्ट इंडिया कम्पनी में क्लर्क की हैसियत से १७६७ ई. में भारत में नियुक्त, किन्तु पदोन्नति करते-करते १७६७ ई. में भारत में नियुक्त, किन्तु पदोन्नति करते-करते १७८१ ई. में वह मालदा (बंगाल) स्थित व्यापारिक कार्यवाह (कामर्शियल रेजीडेंट) बन गया। लार्ड कार्नवालिस उसकी ईमानदारी से बहुत प्रभावित था। फलतः १७८७ ई. में ग्राण्ट को व्यापार बोर्ड का चौथा सदस्य मनोनीत किया गया। भारत में वह ईसाई धर्मप्रचार का कट्टर समर्थक था। सेवा से निवृत्त होने पर वह इंग्लैण्ड वापस गया और १७०२ ई. में ब्रिटिश संसद का सदस्य बनाया गया। १८०५ ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी के कोर्ट आफ डायरेक्टर्स का अध्यक्ष बना। इसके बाद १८०९ और १८१५ में भी इस पद पर चुना गया। ब्रिटिश संसद में वह भारतीय मामलों की बहस में प्रमुख भाग लेता था। उसने भारत में शिक्षा-प्रसार और ईसाई धर्मप्रचार के लिए ब्रिटिश संसद से वार्षिक अनुदान स्वीकार कराया।

ग्रान्ट, जेम्स
बंगाल में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेवा में १७८४ से १७८९ ई. तक रहा। उसने प्रान्त में राजस्व की व्यवस्था की देखरेख की और १७९१ ई. में बंगाल की जमींदारी और भूमि-व्यवस्था पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में उस काल की राजस्व-प्रणाली का प्रामाणिक विवरण मिलता है।

ग्राण्ड ट्रंक रोड
शेरशाह (१५४०-४५) (दे.) द्वारा बनावायी गयी। यह सड़क पूर्वी बंगाल के सोनारगांव से पश्चिम में सिंधु नदी तक लगभग १५०० कोस (३००० मील) लम्बी थी। यह अब भी विद्यमान है और कलकत्ता को अमृतसर (पंजाब) से जोड़ती है।

ग्राहम, जनरल
१८८७ ई. में सिक्किम पर हुए तिब्बत के आक्रमण को विफल करनेवाली ब्रिटिश भारतीय फौज का सेनापति।

ग्रिफिन, एडमिरल
एक ब्रिटिश नौसेनाधिकारी। जब १७४७ ई. में डूप्ले (दे.) के नेतृत्व में फ्रांसीसियों ने फोर्ट सेण्ट डेविड पर अधिकार करने की कोशिश की, तब इस आक्रमण को विफल करनेवाले नौसैनिक बेड़े का नेतृत्व ग्रिफिन ने ही किया था।

ग्लैडस्टन, विलियम इबर्ट (१८०९-९८)
एक प्रसिद्ध ब्रिटिश राजनेता। वह महारानी विक्टोरिया के जमाने में उदार दल का नेता था और अपने जीवनकाल में चार बार १८६८-७४, १८८०-८५, १८८६ तथा १८९२-९४ ई. में ब्रिटेन का प्रधानमंत्री रहा। उसने भारतीय प्रशासन में कुछ अंशों तक उदारता की नीति अपनायी थी। वह अनुदार दलवालों की उस प्रसार-नीति का विरोधी था, जिसके फलस्वरूप दो बार अफगान-युद्ध हुआ। उसने लार्ड रिपन को भारत में वाइसराय (१८८०-१८८४) नियुक्त किया था, जिसकी नीतियाँ बहुत लोकप्रिय हुईं। ग्लैडस्टन ने द्वितीय अफगान-युद्ध (१८७८-८०) को समाप्त कराया और अमीर अब्दुर्रहमान को मान्यता प्रदान करते हुए अफगानिस्तान के आन्तरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप न करने का आदेश दिया। ग्लैडस्टन अपने उदार सिद्धान्तों और आयरलैंड के राष्ट्रवाद के प्रति सहानुभूति के कारण भारतीय जनता में भी लोकप्रिय हुआ। भारत में भी वह उदार नीति का समर्थक समझा जाने लगा।

ग्लौकनिकाई
भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के समय यह गण चनाव नदी के पश्चिम, पंजाब के एक भाग में निवास करता था। यह राज्य पुरु (दे.) के राज्य से मिला हुआ था। इस गण राज्य में ३७ पुर थे, जिनमें से प्रत्येक की जनसंख्या १० हजार से अधिक थी। पुरु (पोरस) की पराजय के पश्चात् सिकन्दर ने इस गण को भी पराजित कर अपने अधीन कर लिया। इस गण का नाम ग्लौसी भी मिलता है। (काशीप्रसाद जायसवाल ने इस गण की पहचान पाणिनि के एक सूत्र में आये ग्लुचुकायन गण से की है। -संपादक)


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