फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी का डाइरेक्टर। कम्पनी ने १७५४ ई. में उसे डूप्ले (दे.) के स्थान पर भेजा और भारत में फ्रांसीसियों की स्थिति की जाँच करने का आदेश दिया। यहाँ आने के बाद गोदेहू ने, जिसे डूप्ले ने कोई आपत्ति किये बिना कार्यभार सौंप दिया था, अंग्रेजों के साथ युद्ध बंद कर दिया और उनसे जनवरी १७५५ ई. में अस्थायी संधि कर ली। इस संधि के द्वारा अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने देशी राजाओं के विवाद में हस्तक्षेप न करने का निश्चय किया तथा दोनों के द्वारा अधिकृत कुछ क्षेत्रों को मान्यता प्रदान कर दी। इस संधि पर दोनों कम्पनियों को स्वीकृति देना शेष था, तभी ब्रिटेन और फ्रांस के बीच सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ गया। फलतः भारत में भी अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच पुनः युद्ध छिड़ गया।
गोपचन्द्र
गुप्त साम्राज्य के पतन के समय ६ठीं शताब्दी के पूर्वार्ध के लगभग स्वतंत्र बंग राज्य (जिसमें वर्तमान बंगाल का पूर्वी, दक्षिणी तथा पश्चिमी भाग शामिल था) के आरंभिक तीन शासकों में से एक। अन्य दो के नाम धर्मादित्य तथा समाचारदेव थे। गोचपन्द्र का नाम कुछ दानपत्रों में मिलता है। उसके नाम की कुछ स्वर्णमुद्राएँ भी पायी गयी हैं। उसके पूर्वजों अथवा वंशजों के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
गोपाल प्रथम
बंगाल और बिहार पर लगभग चार शताब्दी तक शासन करनेवाले पालवंश का संस्थापक। उसके पिता का नाम वप्यट और पितामह का नाम दयितविष्णु था। दोनों का सम्बन्ध सम्भवतः किसी राजकुल से नहीं था। आठवीं शताब्दी के मध्य बंगाल और बिहार में अराजकता उत्पन्न होने पर लोगों ने गोपाल (प्रथम) को राजा चुना। गोपाल (प्रथम) का शासन लगभग ७५० से ७७० ई. तक चला। उसने कहाँ-कहाँ विजय प्राप्त की, यह ज्ञात नहीं। लेकिन उसके द्वारा संस्थापित पालवंश ने दीर्घकाल तक शासन किया। इस वंश के अधिकांश राजा बौद्ध थे। १२वीं शताब्दी तक बंगाल-बिहार पर इस वंश के राजाओं का शासन रहा। ११९७ ई. में मुसलमानों ने इस पर विजय प्राप्त की। (हि. ब., खंड १)
गोपाल द्वितीय
बंगाल के पाल वंश का परवर्ती राजा, जो अपने पिता राज्यपाल के बाद गद्दी पर बैठा। उसने सम्भवतः ९४०-५७ ई. तक शासन किया। उसके कार्यों के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। (हि. बं., खंड १)
गोपाल तृतीय
बंगाल के पाल वंश का परवर्ती राजा, जो अपने पिता कुमारपाल के बाद गद्दी पर बैठा। वह राजा रामपाल (दे.) का पौत्र था। उसके चाचा मदनपाल ने ११४५ ई. में उसको गद्दी से उतार दिया। उसके बारे में भी विस्तृत विवरण ज्ञात नहीं है। (हि. बं., खंड १)
गोपुरम्
दाक्षिणात्य शैली के मंदिरों का एक विशेष शिखराकार अंग। खासतौर से चोल राजाओं (दे.) द्वारा निर्मित मंदिर विशाल गोपुर (उत्तुंग शीर्षवाले द्वार) से मंडित मंदिर विशाल गोपुर (उत्तुंग शीर्षवाले द्वार) से मंडित होते थे। कालांतर में कई-कई मंजिलों के गोपुरों का निर्माण किया जाने लगा, जिनकी वास्तु-प्राकृति अत्यंत भव्य होती थी। कुम्भकोणम् का गोपुरम् वास्तुकला की दृष्टिसे अत्यन्त भव्य गिना जाता है।
गोबी मरुस्थल
मध्य एशिया में स्थित, जो पूर्व से पश्चिम १२०० मील लम्बा तथा उत्तर से दक्षिण ८०० मील चौड़ा है। आजकल यह एक रेगिस्तान है, लेकिन प्राचीन काल में इस क्षेत्र के बीच-बीच में समृद्धिशाली भारतीय बस्तियाँ बसी हुई थीं। सर औरेल स्टोन द्वारा पुरातात्विक खुदाई में बौद्ध स्तूपों, बिहारों, बौद्ध एवं हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ, बहुत-सी पांडुलिपियाँ तथा भारतीय भाषाओं एवं वर्णाक्षरों में बहुत से आलेखों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस अवशेषों के बीच घूमते हुए सर औरेल को यह अनुभव होने लगा था कि वे पंजाब के किसी प्राचीन गाँव में घूम रहे हैं। ७वीं शताब्दी में सुप्रसिद्ध चीनी यात्री ह्युएनसांग इसी गोबी मरूस्थल के रास्ते से ही भारत आया और फिर चीन वापस गया। उसे इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म और भारतीय संस्कृति का प्राधान्य दिखाई दिया। ज्यों-ज्यों इस क्षेत्र में रेगिस्तान बढ़ता गया, त्यों-त्यों यहाँ भारतीय संस्कृति के केन्द्र विलुप्त होते गये।
गोमटेश्वर
के नाम से प्रसिद्ध मूर्ति मैसूर के गंग वंशीय राजा के मंत्री चामुण्डराय (दे.) ने ९८३ ई. के लगभग निर्मित करायी थी। यह मूर्ति ५६ फुट से अधिक ऊँची है और श्रवणबेलगोला की एक पहाड़ी पर स्थित है। यह एक काले पत्थर को काटकर बनायी गयी है। वास्तु-कला की दृष्टि से यह मूर्ति विश्व में अपने ढंग की अद्वितीय मानी जाती है।
गोर के सुल्तान
पूर्वी ईरानी वंश के और आरंभ में गजनी के सुल्तानों के सामन्त। गजनवी (दे.) वंश के अशक्त हो जाने पर गोर के शासक स्वाधीन होने का लगातार प्रयास करते रहे और गजनी के सुल्तानों से लड़ते रहे। अंत में ११५१ ई. में अलाउद्दीन हुसेन गोरी ने गजनी पर चढ़ाई करके उसे लूटा और जलाकर खाक कर दिया। इस प्रकार उसने गोर को गजनी से पूर्णतया स्वाधीन कर सुल्तान की उपाधि ग्रहण की। यद्यपि उसका पुत्र सैफुद्दीन महमूद गद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही गुज्ज तुर्कमानों से युद्ध में मारा गया तथापि उसका चचेरा भाई गयासुद्दीन महमूद एक सफल शासक सिद्ध हुआ। उसने ११७३ ई. में गजनी पर कब्जा कर लिया और अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन को वहाँ का हाकिम नियुक्त किया, जो मुईजुद्दीन मुहम्मद बिन साम अथवा मुहम्मद गोरी (दे.) के नाम से विख्यात हुआ। गजनी को ही आधार बनाकर शहाबुद्दीन ने भारत पर हमले शुरू किये। उसका पहला आक्रमण ११७५ ई. में मुलतान पर हुआ। दूसरे हमले के दौरान ११९२ ई. में मुलतान पर हुआ। दूसरे हमले के दौरान ११९२ ई. में तराइन के युद्ध में उसने पृथ्वीराज चौहान को हराया। इसी हमले के फलस्वरूप भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई। १२०३ ई. में सुलतान गयासुद्दीन गोरी मर गया और शहाबुद्दीन गौर, गजनी और उत्तर भारत का शासक बन गया। उसने बहुत थोड़े समय शासन किया। १२०६ ई. में खोकरों ने उसे मार डाला। उसके वंश में कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं था, फलतः उसकी मृत्यु के बाद गोरी वंश का अन्त हो गया।
गोरखा
मंगोलियन आकृति के लोग, जो मुख्यतः नेपाल में बसे हुए हैं। इनके दाढ़ी नहीं उगती, शरीर का रंग कुछ पीला होता है, नाक चपटी और गाल फूले होते हैं। ये लोग हिमालय की ढलानों पर निवास करते हैं और उच्च कोटि के योद्धा माने जाते हैं। पहले ये लोग क्षत्रिय राजाओं की अधीनता में रहते थे। किंतु १७६८ ई. में क्षत्रिय राजवंशों की आपसी कलह से लाभ उठाकर उन्होंने अपने देश में गोरखा शासन स्थापित कर लिया। १८१६ ई. में अंग्रेजों से पराजित हो जानेपर ब्रिटिश फौज में नौकरी करने लगे और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रसार में इन्होंने बड़ी सहायता दी। भारत के कथित 'सिपाही-विद्रोह' या गदर (१८५७) को दबाने में भी गोरखों ने अंग्रेजों की मदद की।