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Bharatiya Itihas Kosh

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इख्तियारुद्दीन मुहम्मद
बख्तियार खिलजी का लड़का तथा बंगाल का पहला मुसलमान विजेता। वह सामान्य रूप से बख्तियार खिलजी के नाम से विख्यात है। उसका व्यक्तित्व बाहर से देखने में अधिक प्रभावशाली नहीं था, परन्तु वह बड़ा साहसी और महत्त्वाकांक्षी था। उसने बिहार पर हमला करके उसकी राजधानी उड्यन्तपुर पर अधिकार कर लिया और वहाँ के महाविहार में रहनेवाले सभी बौद्धभिक्षुओं का वध कर डाला। उसने ११९२ ई. में बिहार जीत लिया। इसके बाद ही, संभवतः ११९३ ई. में, किंवा निश्चित रूप से १२०२ ई. से पहले, उसने अचानक नदिया पर हमला बोल दिया, जो उस समय अंतिम सेन राजा, लक्षमण सेन की राजधानी था। लक्ष्मण सेन पूर्वी बंगाल भाग गया। बख्तियार खिलजी शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी की ओर से बंगाल का सूबेदार बन कर गौड़ (दे.) में रहने लगा।
इस सफलता से बख्तियार खिलजी की महत्त्वाकांक्षा और बढ़ गयी और उसने एक बड़ी मुसलमानी फौज लेकर कामरूप (आसाम) होकर तिब्बत की ओर कूच किया। बंगाल से निकलकर उसकी फौज किस दिशा में आगे बढ़ी अथवा उसका निश्चित लक्ष्‍य क्या था, यह संदिग्ध है। पन्द्रह दिन कूच करने के बाद उसने जिस राज्य पर हमला किया था, उसकी सेना से मुकाबला हुआ। युद्ध में उसकी हार हुई और उसे भारी क्षति उठानी पड़ी। वापस लौटते समय उसकी फौज नष्ट हो गयी। इख्तियारुद्दीन अपने साथ दस हजार घुड़सवार ले गया था। जब वह वापस लौटा तो उनमें सौ घुड़सवार जिन्दा बचे थे। इस हारने उसका साहस भंग कर दिया और वह शोक तथा लांछना से पीड़ित होकर १२०६ ई. में मर गया।

इजिदबख्श
शाहजहाँ के चीथे पुत्र, शाहजादा मुराद का लड़का। औरंगजेब ने उसकी जान बख्श दी और बाद में अपनी पाँचवीं लड़की की शादी उससे कर दी।

इत्मादुद्दौला
बादशाह जहाँगीर द्वारा गद्दी पर बैठने के बाद ही मिर्जा गयास बेग को प्रदत्त उपाधि। गयास बेग ईरान से आया था और अकबर का दरबारी था। वह प्रसिद्ध नूरजहाँ का पिता था, जिससे बादशाह जहाँगीर ने १६११ ई. में विवाह कर लिया। उसे तथा उसके बेटे आसफ खाँ को जहाँगीर ने ऊँचे पद प्रदान किये। उसकी मत्य १६२२ ई. में हुई और उसकी प्यारी बेटी, मलका नूरजहाँ ने उसकी कब्र पर सफेद संगमरमर का सुन्दर मकबरा बनवाया। उसका नाम इत्मादुद्दौला है। "मुगल इमारतों में उसके जोड़ की और कोई दूसरी इमारत नहीं है। अपनी नफासत और महीन पच्चीकारी में यह इमारत अपने आप में एक नमूना है।" (फर्गुसन)
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इत्सिंग
एक चीनी भिक्षु और यात्री, जो ६७५ ई. में सुमात्रा होकर समुद्र मार्ग से भारत आया। वह दस वर्ष, तक नालन्दा विवविद्यालय में रहा और उसने वहाँ के प्रसिद्ध आचार्यों से संस्कृत तथा बौद्धधर्म के ग्रंथों को पढ़ा। उसने ६९१ ई. में अपना प्रसिद्ध ग्रंथ 'भारत तथा मलय द्वीपपुंज में प्रचलित बौद्धधर्म का विवरण' लिखा। इस ग्रंथ से हमें उस काल के भारत के राजनीतिक इतिहास के बारे में तो अधिक जानकारी नहीं मिलती, परंतु यह ग्रंथ बौद्धधर्म और संस्कृत साहित्य के इतिहास का अमूल्य स्रोत माना जाता है।

इन्द्र
एक वैदिक देवता, जिसका प्रधान अस्त्र बज्र था। वैदिक देवताओं में इसका स्थान बहुत ऊँचा था।

इन्द्र
राष्ट्रकूट वंश (दे.) में इस नाम के चार राजा हुए। इन्द्र प्रथम तथा इन्द्र द्वितीय के बारे में उनके नामों को छोड़कर और कुछ ज्ञात नहीं है। इन्द्र तृतीय (९१५-१७ ई.) ने बहुत थोड़े समय तक राज्य किया। इतने ही समय में उसने कन्नौज पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। उसकी मृत्यु के बाद ही कन्नौज छिन गया। इन्द्र चतुर्थ, जिसकी मृत्यु ९८२ ई. में हुई, राष्ट्रकूट वंश का अंतिम राजा था।

इन्द्रप्रस्थ
पांडवों की राजधानी। कौरवों के साथ इनकी लड़ाई महाभारत की मुख्य कथावस्तु है। इस नगर की पहचान दिल्ली के निकट इन्दरपत गाँव से की जाती है।

इबादतखाना (प्रार्थनागृह)
बादशाह अकबर ने फतहपुर सीकरी में १५७५ ई.में बनवाया। इसमें विभिन्न धर्मों के विद्वान् एकत्र होकर धार्मिक विषयों पर विचार करते थे। शुरू में १५७५-७८ ई. तक इसमें केवल मुसलमान धर्मवेत्ता बुलाये जाते थे, परंतु बाद में १५७९-१५८२ ई. के बीच सभी धर्मों के विद्वानों को आमंत्रित किया जाने लगा। अकबर द्वारा 'दीन इलाही' (दे.) की घोषणा कर दिये जाने के बाद इबादतखाने की मजलिसें समाप्त हो गयीं।

इब्न बतूता
एक विद्वान् अफ्रीकी यात्री, जो १३३३ ई. में सुल्तान मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में भारत आया। सुल्तान ने उसका स्वागत किया और उसे दिल्ली का प्रधान काजी नियुक्त कर दिया। १३४२ ई. में सुल्तान के राजदूत के रूप में चीन जाने तक वह इस पद पर बना रहा। उसने अपनी भारत-यात्रा का बहुमूल्य वर्णन लिखा है, जिससे सुल्तान मुहम्मद तुगलक के जीवन और काल के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। उसका वर्णन अतिशयोक्तियों से भरा होने पर भी सामान्य रीति से विश्वसनीय है। उसने, सुल्तान द्वारा जिन कारणों से राजधानी को दिल्ली से हटाकर दौलताबाद ले जाने का आदेश दिया गया और जिस रीति से दिल्ली को पूरी तरह से खाली कराया गया, उसका जो वर्णन किया है, उसे उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किया जा सकता है।

इब्राहीम
सैयद बंधुओं ने १७१९ ई. में जिन चार नाममात्र के मुगल बादशाहों को दिल्ली की गद्दी पर बिठाया था, उनमें अंतिम। वह बहादुरशाह प्रथम (१७०७-१२ ई.) के तीसरे पुत्र रफी-उस-शान का लड़का था। सैयद बंधुओँ ने कुछ समय बाद उसे गद्दी से उतार दिया और मार डाला। उस समय दिल्ली के बादशाहों को बनाना और बिगाड़ना सैयद बंधुओं के हाथ में था।


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