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Bharatiya Itihas Kosh

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आजम, शाहजादा
छठे मुगल बादशाह औरंगजेब (१६५८-१७०७ ई.) का तीसरा बेटा था जिसने अपने बाप के मरने के बाद तख्त के लिए अपने बड़े भाई शाहजादा मुअज्जम से युद्ध किया और आगरा के निकट जाजऊ की लड़ाई में 10 जून 1707 ई. को हारा और मारा गया।

आजीवक
सम्प्रदाय की स्थापना गोशाला ने की थी जो गौतम बुद्ध का समकालीन था। उनके विचार 'सामंय' फल सुत्‍त' तथा 'भगवतीसूत्र' में मिलते हैं। आजीवक पुरुषार्थ में विश्वास नहीं करते थे। वे नियति को मनुष्य की सभी अवस्थाओं के लिए उत्तरदायी ठहराते थे। उनके नियतिवाद में पुरुष के बल या वीर्य (पराक्रम) का कोई स्थान नहीं था। वे पाप या पुण्य का कोई हेतु या कारण नहीं मानते थे। आजीवकों का सम्प्रदाय कभी इतना विशाल नहीं हुआ कि राजनीति पर उसका कोई प्रभाव पड़ता, हालाँकि अशोक के काल में उनका समुदाय महत्त्वपूर्ण माना जाता था। अशोक के पोते ने गया के निकट बराबर पहाड़ियों में निर्मित तीन गुफा-मंदिर आजीवकों को दान कर दिये थे।

आदम, जान
गवर्नर-जनरल की कौसिल का वरिष्ठ सदस्य था। १८२३ ई. में जनवरी से जुलाई तक उसने स्थानापन्न गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया। उसके अल्प शासन में 'कलकत्ता जर्नल' के सम्पादक जान सिल्क बकिंघम को सार्वजनिक मामलों की आलोचना करने के कारण देश से निकाल दिया गया। इस घटना के बाद भारत के सार्वजनिक जीवन में समाचारपत्रों ने भी अपना स्थान बना लिया।

आदि ग्रंथ
सिखों का धर्मग्रंथ। उसका संकलन पाँचवें गुरु अर्जुन (१५८१-१६०६ ई.) ने १६०४ ई. में किया था। उसमें गुरु नानक, उनके तीन उत्तराधिकारियों तथा अन्य संतों की वाणियाँ संकलित हैं।

आदित्य (८८०-९०७ ई.)
चोलवंश के प्रारम्भिक राजाओं में था। उसने पल्लव राजा अपराजित को हराकर पल्लवों की राज्यशक्ति समाप्त कर दी और इस प्रकार अपने पुत्र तथा उत्तराधिकारी के राज्यकाल में चोल राज्य के उत्कर्ष का पथ प्रशस्त कर दिया।

आदित्यवंश
कम्बुज (कम्बोडिया) की जनश्रुतियों के अनुसार इन्द्रप्रस्थ का एक राजा था जिसके पुत्र कौण्डिन्य ने कम्बुज के राजवंश की स्थापना की। इस सम्बन्ध में भारत में कोई ऐतिहासिक सामग्री नहीं मिलती है।

आदित्यसेन
माधवगुप्त का पुत्र था और ६७२ ई. में मध्यदेश में राज्य करता था। उसने अश्वमेध यज्ञ किया और अपनी पुत्री का विवाह मौखरि भोगवर्द्धन से किया। उसकी दौहित्री का विवाह नेपाल-नरेश शिवदेव से हुआ था और उनके पुत्र जयदेव का विवाह कामरूपनरेश हर्षदेव की पुत्री राज्यमती से हुआ था।

आदिलशाही राजवंश
की स्थापना बीजापुर में १४८९ ई. में यूसुफ आदिल खाँ ने की थी। वह जार्जिया-निवासी गुलाम था जो अपनी योग्यता के कारण बहमनी सुल्तान महमूद ९१४८२-१५१८ ई.) के यहाँ ऊँचे पद पर पहुँचा था और उसको बीजापुर का सूबेदार बनाया गया था। बाद में उसने बीजापुर को राजधानी बनाकर स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। उसके राजवंश ने बीजापुर में १४८९ से १६८५ ई. तक राज्य किया। अन्तिम आदिलशाही सुल्तान सिकंदर को औरंगजेब ने पराजित करके गिरफ्तार कर लिया। इस राजवंश में-यूसुफ, इस्माइल, मल्लू, इब्राहीम प्रथम, अली इब्राहीम द्वितीय, मुहम्मद अली द्वितीय और सिकंदर नामक सुल्तान हुए। इस वंश के सुल्तानों ने दक्षिण में अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं। १५८५ ई. में जब मुसलमानों ने संयुक्त रूप से विजयनगर पर हमला किया और तालीकोट का युद्ध जीत कर विजयनगर राज्य को नष्ट कर दिया तो उसमें आदिलशाही सुल्तना भी शामिल थे। आदिलशाही सुल्तानों को इमारतें बनवाने का शौक था। बीजापुर शाहर के चारों और शहरपनाह, बीजापुर की खास मस्जिद, गगन महल, इब्राहीम द्वितीय (१५८०-१६२६ ई.) का मकबरा और उसके उत्तराधिकारी मुहम्मद (१६२६-५६ ई.) का मकबरा भव्य इमारतें हैं जिन्हें कुशल कारीगरों से बनवाया गया था। कुछ सुल्तान, खासतौर से छठा सुल्तान इब्राहीम द्वितीय योग्य और उदार शासक था। वह साहित्यप्रेमी था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुहम्मद कासिम उर्फ फरिश्ता ने आदिलशाही संरक्षण में रहकर अपना प्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थ 'तारीख-ए-फरिश्ता' लिखा था।

आदिवराह
कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार राजा मिहिर भोज (८४०-९० ई.) की उपाधि थी। उसके चाँदी के सिक्कों में यह नाम अंकित मिलता है जो उत्तरी भारत में बहुतायत से मिले हैं।

आदिसूर
बंगाल की साहित्यिक अनुश्रुतियों के अनुसार गौड़ अथवा लक्षणावती का राजा था। उसने बंगाल में ब्राह्मण धर्म को पुनरुज्जीवित करने का प्रयास किया, जहाँपर बौद्ध धर्म छाया हुआ था। उसने कान्यकुब्ज से पाँच श्रेष्ठ ब्राह्मणों को अपने राज्य में बुलाकर बसाया जिन्होंने सनातन हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा की। ये ब्राह्मण ही बंगाल के राढ़ी और वारेन्द्र ब्राह्मणों के पूर्वज थे। आदिसूर का समय 700 ईसवी के बाद का माना जाता है। लेकिन समकालीन प्रमाणों के अभाव में आदिसूर की ऐतिहासिकता में संदेह किया जाता है।


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