किसी वस्तु या व्यक्ति को इस तरह खींचना कि वह अनिच्छापूर्वक ज़मीन पर रगड़ खाते हुए खिंचती चली जाए/खिंचता चला जाए।
घाघरा
<1. स्त्रियों का नीचे की ओर बड़े घेर वाला (यानी घंटे नुमा) कमर में पहना जाने वाला एड़ी तक लंबा वस्त्र। 2. सरयू नदी का एक अन्य नाम।
घाट1
>1. किसी नदी या जलाशय आदि के तट पर नहाने-धोने या नाव पर चढ़ने-उतरने के लिए निश्चित स्थान। जैसे: काशी में दशाश्वमेघ घाट। 2. पर्वतीय क्षेत्रों के बीच आवागमन का मार्ग या ऊँचा नीचा स्थान घाटी। 3. पहाड़ जैसे: पूर्वी घाट। मुहा. घाट-घाट का पानी पीना अनेक जगहों पर रहकर या भटकते हुए विविध प्रकार के अनुभव प्राप्त करना।
घाट2
किसी वस्तु का अपेक्षा से न्यून या कम होना। न्यून, कम, थोड़ा। जैसे: जब तौलो तब घाट।
घातक
शा.अर्थ घात (प्रहार, चोट) करने वाला। अत्यधिक कष्ट या हानि (जिसमें प्राण् गँवाने तक का भय हो) पहुँचाने वाला। उदा. घातक रोग, घातक प्रहार fatal पुं. मार डालने वाला व्यक्ति, हत्यारा।
घालमेल
[< घुलना + मिलना] भिन्न-भिन्न प्रकृति की वस्तुओं या विचारों इत्यादि का इस प्रकार मिल जाना कि बाद में उनमें भेद करना बहुत कठिन हो जाए। पर्या. गड्ड-मड्ड।
घिरनी
1. कोई दाँतेदार पहिया या ऐसे ही पहियों का समूह जो अपने से बड़े और भारी यंत्र के चालन-बल को हलका कर देता है। 2. दरार पड़ा और अपनी धुरी में अटका पहिया जो रस्सी या पट्टे की सहायता से गतिवर्धक होता है और चालन-बल को सुगम बना देता है। पर्या. चरखी पुली
घिसटना
< घृष्टन] अ.क्रि. 1. जमीन पर रगड़ खाते हुए खिंचे चले जाना, घसीटा जाना। 2. ला.अर्थ अनिच्छापूर्वक विवश होकर किसी के साथ जाना या कुछ काम करना। उदा. अफसरों की सेवा में घिसट रहा हूँ।
घिसापिटा [घिसा+पिटा]
(तद्.) शा.अर्थ घिसा हुआ और पिदा हुआ। स्त्री. वि. घिसी-पिटी (घिसी + पिटी) बहुत दिनों से चली आ रही, पुरानी, पड़ चुकी मरणशील। उदा. घिसी-पिटी परंपराएँ।
घुंडी
1. कोई भी गोलाकार गाँठ (नॉब) 2. कपड़े का बना पुराने जमाने का गोलाकार बटन।