साक्षात् आकृत्यंतरण
तर्कशास्त्र में, 'अपूर्ण' आकृतियों (द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ) के वैध विन्यासों को परिवर्तन और प्रतिवर्तन की प्रक्रियाओं की सहायता से पूर्ण आकृति (प्रथम) के किसी वैध विन्यास में बदलने की प्रक्रिया (संकुचित अर्थ में); अथवा किसी भी आकृति के किसी वैध विन्यास को उक्त प्रक्रियाओं की मदद से किसी भी अन्य आकृति के एक वैध विन्यास में बदलने की प्रक्रिया।
Direct Theory Of Knowledge
साक्षात् ज्ञान-सिद्धांत
वह ज्ञानमीमांसीय सिद्धांत जिसमें ज्ञाता को प्रतिमाओं, प्रत्ययों अथवा विज्ञानों की मध्यस्थता के बिना ज्ञेय का ज्ञान प्राप्त होता है। पाश्चात्य दर्शन में नव्य-वस्तुवाद एवं भारतीय दर्शन में बौद्ध-सम्प्रदाय के वैभाषिक मत द्वारा मान्य प्रत्यक्षवाद इसके उत्तम उदाहरण हैं।
Disamis
डीसामीस
तृतीय आकृति का वह प्रामाणिक न्यायवाक्य जिसका साध्य-आधारवाक्य अंशव्यापी विधायक, पक्ष-आधारवाक्य सर्वव्यापी विधायक तथा निष्कर्ष अंशव्यापी विधायक होता हैं।
उदाहरण : कुछ बंगाली कवि हैं;
सभी बंगाली भारतीय हैं;
∴ कुछ भारतीय कवि हैं।
Disjunct
वियुक्तक
वियोजक प्रतिज्ञप्ति (या तो अ या ब) में शामिल विकल्पों में से कोई एक।
Disjunction
वियोजन
वह निर्णय या प्रतिज्ञप्ति जिसमें एक से अधिक विकल्प हों। इसके दो प्रकार हैं : 1. प्रबल या व्यावर्तक (strong or exclusive) तथा 2. दुर्बल या समावेशी (weak or inclusive)।
Disjunctive Proposition
वियोजक प्रतिज्ञप्ति
वह प्रतिज्ञप्ति जिसमें ''या'' के द्वारा व्यक्त विकल्प हों।
Disjunctive Syllogism
वियोजक न्यायवाक्य
वह न्यायवाक्य जिसका पहला आधारवाक्य एक वियोजक वाक्य और दूसरा आधारवाक्य तथा निष्कर्ष दोनों निरूपाधिक वाक्य होते हैं।
जैसे :- यह या तो अ है या ब;
यह अ नहीं हैं;
∴ यह ब है।
Disparate
विसदृश
ज्ञानमीमांसा में, भिन्न ज्ञानेन्द्रियों से संबंधित संवेदनों के गुणात्मक वैषम्य का सूचक विशेषण (जैसे : लाल रंग और शीतत्व के वैषम्य का)। तर्कशास्त्र में, ऐसे पदों के अंतर का सूचक विशेषण जो परस्पर भिन्न है पर व्याधाती नहीं, अथवा (लाइब्नित्ज़ के अनुसार) ऐसे पदों के अंतर का जो जाति और उपजाति के रूप से संबंधित न हो।
Dissuasive
निवर्तक
किसी कर्म को करने से रोकने वाला, हतोत्साहित करने वाला या विरत करने वाला कारक, जैसे दुःख या पीड़ा।
Distribution
व्याप्ति
तर्कशास्त्र में, पद के पूरे या आंशिक विस्तार में प्रयुक्त होने की विशेषता : यदि किसी पद का प्रयोग उसके पूरे विस्तार या वस्त्वर्थ में होता हैं तो वह उस वाक्य में distributed (व्याप्त) कहलाता है और यदि आंशिक विस्तार में होता है तो undistributed (अव्याप्त) कहलाता है।
उदाहरणार्थ : ''सभी बंगाली भारतीय हैं'' में ''बंगाली'' व्याप्त है और ''कुछ बंगाली दार्शनिक हैं'' में वह अव्याप्त है।