अनुभूतिवाद
वह अनुभूति (ऐंद्रिक अनुभव से भिन्न) जो नैतिक, धार्मिक, कलात्मक एवं आध्यात्मिक संवेदनाओं से संबंधित होती है। सामान्य अनुभववाद का संबंध केवल बाह्य ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान के लिए ही किया जाता है किन्तु अनुभूतिवाद शब्द का प्रयोग बाह्य ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा प्राप्त ज्ञान से पृथक् आन्तरिक अनूभूतियों से संबंधित होता है। केवल अर्थक्रियावादी दार्शनिक जैसे : विलियम जेम्स ने अपने अनुभवाद में अनुभव के भीतर बाह्य अनुभव एवं आन्तरिक अनुभूतियों दोनों के लिए किया है। इसी कारण इसके अनुभववाद को उत्कट अनुभववाद (radical empiricism) के नाम से अभिहित किया जाता है।
Experiential Proposition
अनुभूतिमूलक प्रतिज्ञप्ति
वह प्रतिज्ञप्ति जो सामान्य अनुभव से पृथक् किसी नैतिक, धार्मिक, कलात्मक अथवा आध्यात्मिक अनुभूतियों से प्राप्त किसी तथ्य का कथन करती है।
Experimental Empiricism
प्रायोगिक इंद्रियानुभववाद
जॉन ड्यूई का ज्ञानमीमासीय सिद्धांत, जो अनुभव को ज्ञान का स्रोत मानता है और वस्तुओं के ऐंद्रिय गुणों को पारंपरिक रूप में स्थिर न मानते हुए उन प्रयोगों या संक्रियाओं का परिणाम मानता है जो हम उनके ऊपर करते हैं।
Experimentalism
प्रयोगवाद
ड्यूई का वह मत कि संपूर्ण जीवन मनुष्य का सफलतापूर्वक परिस्थितियों से समायोजन करने के उद्देश्य से किया जाने वाला एक प्रयोग है।
Experimental Logic
प्रयोगात्मक तर्कशास्त्र
शिलर एवं ड्यूई के अनुसार, वह शास्त्र जिसका कार्य उन प्रणालियों का अध्ययन करना है जिनका अनुसरण करके प्रयोगात्मक विज्ञान सर्वाधिक सफलता के साथ ज्ञान की प्राप्ति करते है और जिनके आधार पर भावी खोज-कार्य के लिए नियामक निर्धारित किए जा सकते हैं।
Experimental Method
प्रयोगात्मक विधि
विज्ञानों के द्वारा अपनाई जाने वाली अनुसंधान प्रणाली जिसमें, परिस्थितियों को पूरी तरह नियंत्रण में रखकर वैज्ञानिक किसी प्राक्कल्पना की सच्चाई की जाँच करता है। जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने आगमनात्मक तर्कशास्त्र में इन विधियों का सफलतापूर्वक उल्लेख किया है।
Experimentum Crusis
निर्णायक प्रयोग
वह प्रयोग जो किसी प्राक्कल्पना को निर्णायक रूप से सत्य या असत्य सिद्ध कर देता है।
Explanandum
व्याख्येय
वह जिसकी व्याख्या करनी हो, व्याख्या का विषय।
Explanans
व्याख्यापक
जिन प्रत्ययों अथवा पदार्थों के माध्यम से, किसी पद का स्पष्टीकरण किया जाता है।
Explanation
व्याख्या
किसी जटिल अथवा दुर्बोध पद को स्पष्ट करने के लिए तत्संबंधी सरलतर प्रत्ययों के द्वारा उसे बोधगम्य बनाना।