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Awadhi Sahitya-Kosh

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त्रिभुवन दास
ये स्वामी नारदानंद (नैमिषारण्य) के शिष्य थे। इनके द्वारा रचित कृति ‘श्रीराम दर्शन’ की पाण्डुलिपि डॉ. श्यामसुन्दर मिश्र ‘मधुप’ को शिवदत्त मिश्र अशोक नगर, कानपुर से प्राप्त हुई है। इसमें पूरी रामकथा का विशद वर्णन है। यह अवधी के दोहा-चौपाई छंदों में प्रणीत है।

त्रिभुवननाथ शर्मा ‘मथु’
मधु जी का जन्म ६ दिसम्बर १९३२ ई. को ग्राम नगर चौरावाँ (इटौंजा) जनपद लखनऊ में हुआ था। इन्होंने खड़ी बोली और अवधी दोनों में लिखा हैं। अवधी में इन्होने गद्य भी लिखा है। मृगेश जी के साहित्य को प्रकाश में लाने का श्रेय मधु को है। ये संपादक और प्रकाशक के रूप में भी सक्रिय हैं। सम्प्रति बाराबंकी के निवासी हैं।

डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल
शुक्ल जी अवधी साहित्य के प्रति विशेष स्नेह रखते हैं। इन्होंने अवधी में ढेर सारी कविताओं के साथ-साथ अन्य सृजन भी किया। सम्प्रति ये जबलपुर विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं।

त्रिभुवनप्रसाद त्रिपाठी ‘शांत’
ये भक्त कवि हैं। इनका जन्म १९०० में परानपांडे का पुरवा, तिलोई, रायबरेली में हुआ था। ‘प्रश्नोत्तर’ और ‘विज्ञान नौका’ इनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। इनका भक्ति प्रधान काव्य अवधी में रचित है। १९७० में इनकी मृत्यु हो गयी।

डॉ. त्रिलोकी नारायण दीक्षित
मौरावाँ, जनपद उन्नाव के निवासी दीक्षित जी लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से डी.लिट. तक शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने अवधी साहित्य स्वरूप पर इतिहास ग्रंथ प्रणीत कर अवधी के स्वरूप निर्धारण ऐतिहासिक कार्य किया है। इस ग्रंथ में अवधी साहित्यकारों का प्रथम बार परिचय दिया गया है।

त्रिलोचन शास्त्री
शास्त्रीजी का जन्म १९१९ ई. में चिराना पट्टी (सुल्तानपुर) में हुआ। इन्होंने काशी में उर्दू, अंग्रेजी, बंगला, गुजराती, मराठी, तमिल, बर्मी आदि भाषाओं का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। ’हंस’ पत्रिका के सम्पादक के रूप में इन्हें ख्याति प्राप्त हुई। कालान्तर में शास्त्री जी ने ज्ञानमण्डल-शब्दकोश, उर्दू-कोश तथा ‘चित्ररेखा’ मासिक का सम्पादन किया। १९४२ के राष्ट्रीय आन्दोलन में शास्त्री जी ने सक्रिय भूमिका निभाई, फलतः इन्हें दीर्घावधि तक कारावास की यातना भुगतनी पड़ी। सम्प्रति त्रिलोचन जी दिल्ली, सागर विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं और स्वतंत्र साहित्य-सृजन में संलग्न भी। त्रिलोचन जी की प्रकाशित अवधी काव्य कृति है- अमोला। इसमें बरवै छंदों में पूर्वांचल की ग्रामीण व्यवस्था के जीवंत दृश्य हैं। त्रिलोचन जी जनवादी कवि हैं अतएव जनभाषा अवधी में इन्होंने पुष्कल काव्य प्रणयन किया है।

थान कवि
ये रायबरेली के निवासी थे। इनका पूरा नाम थानराय है। इनके पिता का नाम निहालराय था। थान कवि ने बैसवारा के रईस दलेलसिंह के नाम पर ‘दलेल प्रकाश’ नामक रीतिग्रन्थ का प्रणयन संवत् १८४८ में किया। काव्योचित विविधता तथा क्रमबद्धता के अभाव में रचे गये इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा हैं - यदि ‘दलेल प्रकाश’ को भानुमती का पिटारा न बनाया गया होता तो कवि-ख्याति विशद होती’ - (हिन्दी साहित्य का इतिहास)।

दंगल जी
ये बस्ती के निवासी अवधी कवि हैं।

दयानंद जड़िया ‘अबोध’
अबोध जी श्री परमानंद जड़िया ‘परमानन्द’ के अनुज हैं। ये सम्प्रति डाक उप डाकपाल के पद पर कार्यरत हैं तथा अपने पिता के नाम पर ‘श्री वैद्यनाथ धाम’ ५५१ क/४१६, आजाद नगर, आलमबाग, लखनऊ-५ में निवास कर रहे हैं। विगत दस वर्षों के अन्तराल में ‘मधुलिका प्रकाशन’, लखनऊ के माध्यम से इनके कई ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। अवधी में इन्होंने स्फुट काव्य रचनाएँ लिखी है।

दयानंद सिंह ‘मृदुल’
फैजाबाद के निवासी मृदुल जी अवधी साहित्य के एक उदीयमान रचनाकार हैं।


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