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Awadhi Sahitya-Kosh

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ढीवाजी (संत)
ये दादू दयाल के शिष्य थे, जो आजीवन उनकी सेवा में अनुरक्त रहें। इनकी साखियों में अवधी की कई रचनाएँ संकलित है। इनकी भाषा में सधुक्कड़ी प्रयोगों के बावजूद अवधी का स्वर स्पष्ट परिलक्षित होता है।

तड़िता
यह अवधी की एक नई काव्य धारा (छंद) है, जिसका प्रवर्तन श्री सच्चिदानंद तिवारी जी ‘शलभ’ के द्वारा सन् १९८९ में किया गया। इसमें चौपाई के एक चरण + दोहा के दूसरे चरण फिर चौपाई के दूसरे चरण + दोहा के चौथे चरण का प्रयोग होता है। अन्त में लघु का विधान एवं कुल ५४ मात्राओं का योग होता है। जैसे- माता परसै नक्खत बरसै, मघा, अघा नभ भूमि। पत्नी परसे वंश सुसरसै, पाले-पोसे चूमि।।

ताहिर
इनका जीवन परिचय अधिक स्पष्ट नहीं है, फिर भी इनका निवास स्थान शायद आगरा है। कोकसार, गुणसागर नाम की दो कृतियाँ संज्ञान में आई हैं, जिनका रचनाकाल सं. १६७८ है।

तिलक
वाग्दान के अवसर पर वर-कन्या दोनों पक्षों में स्त्रियाँ इस अवधी गीत का गायन करती हैं और अपनी शुभेच्छा व्यक्त करती हैं।

तुरन्तनाथ दीक्षित
बाण, हरदोई के निवासी दीक्षित जी एक उच्चकोटि के अवधी साहित्यकार हैं। इन्होने मुक्त काव्य का सृजन अधिक किया है। ‘वन की झाँकी’ इनकी श्रेष्ठ रचना है।

तुलसी और जायसी की अवधी का तुलनात्मक अध्ययन
यह डॉ. आशारानी तिवारी द्वारा सन् १९७५ में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध है। इस शोधपरक कार्य में उक्त दोनों महाकवियों की अवधी का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।

तुलसीराम वैश्य ‘नाग’
ये लखनऊ के मशहूर अवधी कवि हैं। इन्होने नीतिपरक दोहों का सृजन किया।

तेजनारायण सिंह ’तेज’
अनागत कविता आंदोलन से सम्बद्ध नवोदित रचनाकार श्री तेज का जन्म नौबस्ता कला अमराई गाँव, लखनऊ में ४ फरवरी सन् १९४७ को हुआ। ‘पुरवी तुमरे मन की’ इनका प्रकाशित अवधी गीत-संग्रह है। जिसका प्रकाशन भी हो चुका है। अनेक पत्र पत्रिकाओं में भी इनके लेख, कहानियाँ, कविताएँ गीत एवं अगीत प्रकाशित होते रहते हैं।

तेल मैना
विवाहपूर्व के एक आयोजन- ‘मातृपूजन’ के अवसर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला यह अवधी लोकगीत है। यथा- आनिन बानिन कहैना का तेलु संभार्‌यो आय। लि का तेलु सिरस की फली। और तेलु चढ़ावै कन्या कुँवरि।

तोरन देवी ‘लली’
‘लली’ जी ने खड़ी बोली और अवधी दोनों में काव्य रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। अवधी इनकी मातृभाषा रही है। ये लखनऊ की रहने वाली थीं। परिमार्जित भाषा उनकी ’हम स्वतंत्र’ कविता की मुख्य विशेषता है। जनजीवन के भावों को चित्रित करने में इनकी रचना बहुत सक्षम रही है।


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