लखनऊ जनपद के निवासी मधुकर जी अवधी के ख्याति प्राप्त साहित्यकार हैं। इन्होंने अपनी साहित्य सर्जना से समाज को नयी दिशा देने का भरसक प्रयास किया है।
जनेऊ/जनौ
यह यज्ञोपवीत संस्कार के समय स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला प्रसिद्ध अवधी लोकगीत है। ये गीत प्रायः बड़े भावपूर्ण होते हैं। इन अवधी गीतों में अवध का लोकजीवन, उसकी सुरुचि तथा कलात्मक प्रकृति रूपायित है। ये गीत वाद्य यंत्रों के साथ नहीं गाये जाते।
जयगोविंद
ये द्विवेदी युग के अवधी साहित्यकारों में से एक हैं। इन्होंने पर्याप्त अवधी काव्य सृजित किया है।
जयदेव शर्मा ‘कमल’
‘तुम हथियार गढ़ौ’ नामक इन्होंने प्रेरणापरक अवधी रचना की है।
डॉ. जयवीर सिंह
इनका जन्म १ जनवरी सन् १९६५ को ग्राम लोहार खेड़ा, जनपद सीतापुर में हुआ था। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय से एम.ए., पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने आधुनिक अवधी कवियों पर समीक्षात्मक लेखन कार्य करते हुए स्फुट रचनाएँ भी सृजित की हैं।
डॉ. जलाल अहमद ‘तनबीर’
ये बाराबंकी जनपद के जैसुखपुर-मवई के निवासी हैं। इन्होंने अनेक अवधी लोकगीत लिखकर अवधी भाषा के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित की है।
जानकवि
इनका पूरा नाम न्यामत खाँ है। ‘जान’ उपनाम है। इनके पिता का नाम अलफ खाँ था। इनके ग्रन्थों की संख्या ५६ है। वस्तुतः जानकवि प्रेमगाथा परंपरा के कवि हैं, पर इनका ‘कायमरासो’ वीरकाव्य परंपरा में गण्यमान है। ‘कायम रासो’ जानकवि के खानदान का ऐतिहासिक इतिवृत्त भी प्रस्तुत करता है।
जानकी चरण
इनका समय सं. १८७७ स्वीकार किया गया है। इन्होंने अवधी भाषा में पर्याप्त सृजन किया है। इनके अवधी ग्रंथ हैं- प्रेम प्रधान, सियाराम-रस मंजरी।
जानकी चरणदास
ये रामकाव्य परंपरा से जुड़े शीर्षस्थ महाकवियों में से एक हैं। साहित्यिक अवधी को अपनी भाषा स्वीकृत करते हुए इन्होंने एक महाकाव्य का भी सृजन किया।
जानकी प्रसाद
ये बैसवारा क्षेत्र के निवासी एवं भारतेन्दु युग के अवधी रचनाकार रहे हैं।