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Awadhi Sahitya-Kosh

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सियाशरण मधुकरिया ‘प्रेमअली’
इनका जन्म बिहार प्रदेश के सूपी गाँव में सन् १८६२ में हुआ था। ये रसिक सम्प्रदाय (मधुर उपासना शाखा) के रामभक्त कवि थे। १८८७ ई. में गृहस्‍थ आश्रम छोड़कर प्रेमअली जी अयोध्या आ गये और यहीं स्थायी रूप से बस गये। इन्होंने अवधी भाषा में पदों की जो रचना की है, वह अनुपम है। सन् १९४५ में इनका स्वर्गवास हो गया।

सिलपोहनी
तैल-मातृ-पूजन के उपलक्ष्य में शिला (सिलबट्टा) पूजन की प्रथा विशेष के अवसर पर यह अवधी लोकगीत स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। इस अवसर पर मांगलिक परिधान का बड़ा माहात्म्य है।

सीताप्रसाद
ये सुल्तानपुर (अमेठी) के निवासी एवं रसिकोपासक रामभक्त हैं। इनका जीवनकाल सन् १८४४-१९२५ ई. के बीच वर्णित हैं। इन्होंने ‘इश्क विनोद’ नामक अवधी रचना बरवै छंद के माध्यम से प्रस्तुत कर अपनी अवधी-निष्ठा प्रस्तुत की है।

सीतायन
यह रामप्रियाशरण जी द्वारा रचित अवधी ग्रंथ है। इसमें सीताजी एवं उनकी सखियों के चरित्रों का मनोहारी वर्णन हुआ है। साथ ही साथ इसमें रामचन्द्र जी का चरित्र भी वर्णित हुआ है।

सीताराम त्रिवेदी
इनका जन्म सन् १९२४ ई. में जनपद हरदोई के पलिया नामक ग्राम में हुआ था। ये अयोध्यासिंह इण्टर कालेज, हरदोई में हिन्दी प्रवक्ता थे। इन्होंने बरवै छंद के माध्यम से रामकथा का निरूपण किया है। ‘बरवै शतक’ इनकी अप्रकाशित कृति है।

सीताराम दास
ये जनकपुर के निवासी थे। इन्होंने सन् १९०० ई. के लगभग ‘जनकपुर-माहात्म्य’ नामक एक अवधी ग्रन्थ की रचना की। यह कृति ‘वृहद् विष्णुपुराण’ के आधार पर दोहा-चौपाई शैली में सृजित है।

सीताराम शरण ‘रूपकला’
इनका जन्म सन् १८४० में हुआ था। ये रसिक सम्प्रदाय के रामभक्त कवि थे। इन्होंने लगभग १७ ग्रंथ सृजित किये हैं, जिनमें ‘‘भक्ति सुधा बिन्दु स्वाद तिलक’’ सर्वाधिक प्रसिद्ध अवधी ग्रंथ है। इनका देहावसान सन् १९३२ ई. में हो गया था।

सीता-स्वयंवर
यह अमेठी नरेश माधव सिंह द्वारा प्रणीत अवधी ग्रंथ है, जिसका प्रणयन सन् १८८५ में हुआ था। इसके अन्तर्गत तीन खण्ड हैं। प्रथम में सीता स्वयंवर का वर्णन है। द्वितीय में रघुनाथ चरित में किष्किंधा काण्ड से राम के अयोध्या पुनरागमन का वृत्तांत है और तीसरे लवकुश चरित में रामाश्वमेध यज्ञ से लेकर सीता के लवकुश सहित अयोध्या आगमन की कथा है।

सुखराम
ये बैसवारी अवधी के आधुनिक युगीन कवि हैं।

सुखसागर
यह सतनामी सम्प्रदाय के महात्मा जगजीवन दास (सं. १७२७-१८१७) के शिष्य साहब नेवलदास द्वारा प्रणीत अवधी ग्रंथ है। इसमें सतनामी सम्प्रदाय की उपासना के संदर्भ में वर्णन है।


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