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Awadhi Sahitya-Kosh

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साँईदास
इनका जन्म सं. १५२५ की माघ कृष्ण १३, गुरुवार को बछोकी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम ‘मल्लिराय’ था। इनकी काव्यकृति ’रतनज्ञानि’ से इनकी काव्य कला का परिचय मिलता है। साँईदास का विशेष प्रामाणिक विवरण प्राप्त नही है। इनके काव्य में अवधी भाषा का प्रयोग मिलता है।

साँझ
प्रत्येक मांगलिक-लौकिक आयोजन के पूर्व सन्ध्याकाल पर स्त्रियों द्वारा इस अवधी लोकगीत का गायन किया जाता है। इसमें ‘संझा गोसाइनि’ का मानवीकरण किया गया है। यथा- गलियन गलियन फिरहिं भवानी खोरिया पूँछे बाता, केहिके दुलरवा कै यहि जगि रोपी हम जगि देखन जाब।

साध
यह गीत एक प्रकार से सोहर गीतों का ही अंग है। जब स्त्री गर्भ धारण करती है। तो उसके मन में तरह-तरह की इच्छाएँ (दोहद) जाग्रत होती हैं। उन्ही इच्छाओं को इस गीत के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

साधन
इनकी रचना- ’मैनासत’ का उल्लेख मात्र इतिहास ग्रन्थों में किया गया है। शेष विवरण अप्राप्त है। वस्तुतः इसका रचनाकाल ११वीं शती के पूर्व का है। साधन की आस्था गोरखपंथ पर है किन्तु साम्प्रदायिक बाह्य चिन्हों का अभाव है। इस कृति में योग और भोग का सुन्दर समन्वय हुआ है। इनकी भाषा में अवधी बीज रूप में अंकुरित होने लगी थी।

सालिग्राम ‘अनुरागी’
धनौली, जिला हरदोई के निवासी अनुरागी जी एक समर्पित अवधी साहित्यकार हैं। ‘तमगा’ नामक अवधी कृति इनका मुक्तक काव्य है।

सावन
यह अवधी का एक ऋतु गीत है, जिसे वर्षाऋतु में झूला झूलती हुई स्त्रियाँ सामूहिक रूप से गाती हैं। इसमें नारी-विरह का प्राधान्य होता है साथ ही ऋतु वर्णन भी।

साहेब नेवलदास
ये सतनामी सम्प्रदाय के महात्मा जगजीवनदास के शिष्य और अच्छे कवि थे। इनके आठ ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। ‘सुखसागर’ इनका प्रमुख ग्रंथ है, जिसकी भाषा अवधी है। इस ग्रंथ में सतनामी सम्प्रदाय की उपासना के साधनापरक स्वरूप का वर्णन हुआ है।

साहेब वरदानदास
ये रायबरेली के निवासी एवं अवधी के सन्त कवि हैं।

सिंहासनबत्तीसी
यह परमसुख कायस्थ द्वारा प्रणीत अवधी काव्य ग्रंथ है। इसका प्रणयन सं. १९०५ में हुआ था।

सियाराम मिश्र
इनका जन्म सन् १९४२ ई. में ग्राम घर धनिया, जिला खीरी में हुआ था। शिक्षा प्राप्ति के बाद ये पब्लिक इन्टर कालेज गोला गोकर्ण नाथ जिला खीरी में हिन्दी प्रवक्ता हो गए और आज तक इसी पद पर वहीं कार्यरत हैं। खड़ी बोली और अवधी दोनों में ही सुरुचिपूर्ण कवितायें करते हैं। हिरोशिमा, आंगन की नागफनी, स्टालिनवाद, पंचवटी से कर्बला, हुतात्मा जटायु, अमर शहीद हुसैन तथा महासमर आदि इनकी प्रमुख उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। ‘महासमर’ उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत काव्य-ग्रन्थ है। इनकी कविताओं में राष्ट्रीय भावनाओं का प्राबल्य है। इनकी अवधी भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है। लोकभाषा का सौंदर्य भी विद्यमान है।


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